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बिहार चुनाव: पहले चरण में रिकॉर्ड 64.69% वोटिंग, जब भी 5% से ज्यादा मतदान बढ़ा, सरकार बदल गई, इस बार 8% की बढ़ोतरी

चुनाव आयोग के अनुसार, इस बार पहले चरण में 64.69 फीसदी मतदान हुआ, जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर करीब 56 फीसदी वोट पड़े थे। यानी इस बार करीब साढ़े आठ फीसदी मतदान मतदान दर्ज किया गया है। यह बिहार की चुनावी राजनीति के इतिहास में अभूतपूर्व है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में गुरुवार को मतदाताओं ने रिकॉर्ड तोड़ मतदान किया। इस चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर वोटिंग हुई और 64.69 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। यह अब तक का सबसे ज्यादा मतदान प्रतिशत है, जिसने बिहार के सियासी समीकरणों में नई हलचल पैदा कर दी है।

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रिकॉर्ड तोड़ मतदान- 2020 से 8.5% वोटिंग

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इस बार पहले चरण में 64.69 फीसदी मतदान हुआ, जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर करीब 56 फीसदी वोट पड़े थे। यानी इस बार करीब साढ़े आठ फीसदी मतदान मतदान दर्ज किया गया है। यह बिहार की चुनावी राजनीति के इतिहास में अभूतपूर्व है।

2020 में पहले चरण में 71 सीटों पर चुनाव हुआ था और वोटिंग 56.1 फीसदी रही थी। लेकिन इस बार 121 सीटों पर चुनाव होने के बावजूद मतदान का प्रतिशत कहीं अधिक रहा, जिससे यह साफ है कि जनता का जोश और उत्साह पहले से कई गुना बढ़ा है।

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किन जिलों में कितना मतदान?

पहले चरण में सबसे ज्यादा मतदान मुजफ्फरपुर (70.96%) और समस्तीपुर (70.63%) में हुआ, जबकि पटना (57.93%) जिले में सबसे कम वोटिंग रही। अन्य जिलों में भी शानदार मतदान देखने को मिला-

  • वैशाली: 67.37 फीसदी

  • मधेपुरा: 67.21 फीसदी

  • सहरसा: 66.84 फीसदी

  • खगड़िया: 66.36 फीसदी

  • लखीसराय: 65.05 फीसदी

  • मुंगेर: 60.40 फीसदी

  • सीवान: 60.31 फीसदी

  • नालंदा: 58.91 फीसदी

कुल मिलाकर, बिहार के पहले चरण का औसत मतदान 64.69 फीसदी रहा, जो पिछले विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों का रिकॉर्ड तोड़ चुका है।

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बिहार का ऐतिहासिक वोटिंग पैटर्न

1951-52 से लेकर 2020 तक बिहार विधानसभा चुनाव में सिर्फ तीन बार ही 60 फीसदी से ज्यादा वोटिंग हुई थी-

  • 1990 में 62.04 फीसदी वोटिंग

  • 1995 में 61.79 फीसदी वोटिंग

  • 2020 में 62.57 फीसदी वोटिंग

लेकिन इस बार 64.69 फीसदी मतदान के साथ सारे रिकॉर्ड टूट गए। ऐतिहासिक तौर पर देखा गया है कि जब-जब बिहार में वोटिंग 5 फीसदी से ज्यादा बढ़ी है, तब-तब सत्ता बदली है।

उदाहरण के लिए-

  • 1967 में वोटिंग 7 फीसदी बढ़ी, कांग्रेस हारी और गैर-कांग्रेसी दल सत्ता में आए।

  • 1980 में 6.8 फीसदी बढ़त हुई, तो जनता पार्टी हारी और कांग्रेस की वापसी हुई।

  • 1990 में 5.8 फीसदी इजाफा हुआ, तो कांग्रेस की जगह जनता दल ने सरकार बनाई।

यानी, बिहार का इतिहास बताता है कि जब भी वोटिंग तेजी से बढ़ती है, तब सत्ता में बदलाव देखने को मिलता है।

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सियासी दलों की धड़कनें बढ़ीं

इस बार पहले चरण की 121 सीटों पर 1314 उम्मीदवार मैदान में हैं। पिछले चुनाव (2020) में इन सीटों में से

  • महागठबंधन को 61 सीटें,

  • एनडीए को 59 सीटें,

  • अन्य को 1 सीट मिली थी।

आरजेडी ने इनमें से 42 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी 32 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार समीकरण बदले हैं-

  • चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा फिर से एनडीए के साथ हैं।

  • मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी महागठबंधन में शामिल है।

  • इससे सियासी मुकाबला पहले से कहीं ज्यादा दिलचस्प बन गया है।

पहले चरण में आरजेडी 72 सीटों, कांग्रेस 24, सीपीआई-एमएल 14, वीआईपी और सीपीआई 6-6, और सीपीएम 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। वहीं, जेडीयू 57 और बीजेपी 48 सीटों पर मैदान में हैं।

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पहले चरण से तय होगी सत्ता की दिशा?

इन 121 सीटों पर होने वाला मतदान न केवल पहले चरण का परिणाम तय करेगा, बल्कि आने वाले चरणों में सियासी हवा किस दिशा में बहेगी, इसका भी संकेत देगा। क्योंकि 2020 में जिन सीटों पर कड़ी टक्कर थी, वहां इस बार रिकॉर्ड वोटिंग के बाद नतीजे का अंदाजा लगाना आसान नहीं है। अगर इतिहास दोहराया गया, तो बढ़ा हुआ मतदान सत्ता परिवर्तन का संकेत हो सकता है।

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