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वादे तो केंद्र में बीजेपी और दिल्ली में आप ने ढेर सारे किए, लेकिन दिल्ली में ‘आम आदमी‘ को किसने छला?

आम आदमी पार्टी ने मुहल्ला क्लीनिक और विश्व स्तरीय सरकारी स्कूलों को लेकर काफी ढोल पीटा लेकिन लोगों को धोखा ही मिला, तमाम अन्य वादों के साथ भी यही हुआ।

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आम आदमी पार्टी 2013 में जब सत्ता में आई थी, तब इसने ढेर सारे वादे किए थे- हम हवा साफ कर देंगे, नदी साफ कर देंगे, महिलाएं ज्यादा सुरक्षित होंगी, भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म कर देंगे, और हां, लोकपाल की नियुक्ति भी करेंगे। इसमें कोई हैरत की बात नहीं है, सभी पार्टियां सत्ता हासिल करने के लिए वादे तो करती ही हैं।
जनता की याददाश्त अल्पजीवी होती है, और जब दुबारा चुनाव आते हैं, तो पूरा मीडिया नए वादों की बात करने लगता है। इस सच को जानने की कोशिश नहीं होती कि पिछला वादा क्या था और मिला क्या। तमाम दूसरी प्रतिज्ञाओं के बीच आप की एक प्रतिज्ञा यह भी थी कि इसकी नीतियों और प्रशासन के केन्द्र में 'आम आदमी' रहेगा। लेकिन क्या 'आम आदमी' को वह मिला जिसका उससे  वादा किया गया था।

आम आदमी पार्टी ने मुहल्ला क्लिीनिक और 'विश्व स्तरीय' सरकारी स्कूलों को लेकर काफी ढोल पीटे लेकिन लोगों को धोखा ही मिला (देखेः ‘लंबी है पूरे न होने वाले वादों की सूची’, संडे नवजीवन, 19 जनवरी 2025)। हर चीज जो गड़बड़ हो गई, वह कभी पटरी पर नहीं लौटी। न शहर का प्रदूषण कम हुआ और न ही यमुना की हालत सुधरी। हर चीज के लिए पिछली सरकार, पड़ोसी राज्य की सरकार, केन्द्र सरकार, नौकरशाही और उप-राज्यपाल पर आरोप लगाए गए।

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लेकिन हम लौटते हैं 'आम आदमी' पर।

बेशक, गंदी बस्तियों और झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों में रहने वाली दिल्ली की आबादी इस महानगर में सबसे खराब हालत में जीवन जीने के लिए अभिशप्त होती है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से दिल्ली में 675 स्लम हैं और 1700 झुग्गी बस्तियां। इनमें दिल्ली के तकरीबन 15.5 लाख वोटर रहते हैं। ये दिल्ली की कुल वोटर संख्या के 10 प्रतिशत हैं।

दिल्ली में विधानसभा की दस सीटें ऐसी हैं जहां स्लम और झुग्गियों में रहने वाले वोटर ही निर्णायक भूमिका निभाते हैं। सबसे बड़ी बात है कि इन बस्तियों में मतदान का प्रतिशत बाकी जगहों की तुलना में बहुत ज्यादा होता है। यही वजह है कि सभी पार्टियां उनके वोट हासिल करने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा देती हैं।
कोई हैरत नहीं कि बीजेपी ने भी उनसे बड़े-बड़े वादे किए थे। मसलन, यह कि 2022 तक सब को पक्का घर मिल जाएगा, घर तो नहीं मिले लेकिन पिछले कुछ साल में बहुत से स्लम उजाड़ दिए गए। आम आदमी पार्टी ने मुफ्त बिजली-पानी के वादे के साथ 2015 और 2020 के दो चुनाव जीते, पर ये वादे भी पूरे नहीं हुए।

इन चुनावों में यहां 80 प्रतिशत वोटरों ने आम आदमी पार्टी को वोट दिया था। पार्टी ने एक तरफ तो मुफ्त बिजली-पानी जैसे नारे तो दिए ही थे, साथ ही इन स्लम और झुग्गी बस्तियों के कायाकल्प के भी ढेर सारे वादे किए। इनमें यह वादा भी था कि हर परिवार को एक पक्का मकान दिया जाएगा। लेकिन पूरे दस साल बीतने के बाद भी इन बस्तियों के हालात में कोई बदलाव नहीं हुआ। कुछ जगह तो हालात खराब ही हुए हैं।

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एक तरफ बीजेपी की केन्द्र सरकार है जिसने 'हर घर नल' का नारा दिया है, दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी की प्रदेश सरकार है जो हर परिवार को हर महीने 20 हजार लीटर मुफ्त पानी देने का दावा करती है। लेकिन हर घर नल तो छोड़िए, ज्यादातर ऐसी बस्तियों की किस्मत में एक भी नल का कनेक्शन नहीं है। आज भी इन बस्तियों में टैंकर से पानी की सप्लाई होती है। जैसे ही टैंकर आता है, पानी भरने के लिए घमासान शुरू हो जाता है। 20 हजार लीटर तो बहुत दूर, हर परिवार को दो तीन बाल्टी पानी ही मिल पाता है, वह भी पीने लायक नहीं होता। पीने के पानी का इंतजाम इन लोगों को अलग से करना पड़ता है।
हर घर में शौचालय बनवाने के दावे भले ही किए जाते हों लेकिन इन ज्यादातर बस्तियों के लिए गिने-चुने कुछ ही सामुदायिक शौचालय बनवाए गए हैं जहां सुबह के समय लाइनें लग जाती हैं। 'स्वच्छ भारत' के तमाम नारों के बावजूद सीवेज सड़कों पर बहने की खबरें अक्सर ही आती रहती हैं। सीवेज तो खैर फिर भी मौजूद है, ड्रेनेज नाम की कोई चीज यहां नहीं है जिसकी वजह से बरसात में ये सभी बस्तियां नरक बन जाती हैं।

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केन्द्र सरकार 2015 से 'जहां झुग्गी वहीं घर' का नारा देकर लगातार यह बताने में जुटी है कि उसने प्रधानमंत्री आवास योजना में स्लम और झुग्गी में रहने वालों को पक्का घर देने की योजना बनाई है। असलियत यह है कि दिल्ली में ऐसी योजनाएं लंबे समय से चल रही हैं। झुग्गीवासियों को अपना घर देने की पहली योजना दिल्ली में 1960 में लागू हुई थी। तब स्लम और झुग्गी में रहने वालों को 80 वर्ग गज के प्लाॅट दिए गए थे ताकि वे वहां खुद अपना मकान बनवा सकें। हालांकि जिस तेजी से देश भर के लोग दिल्ली में आकर बस रहे थे, उस तेजी से उन्हें घर देने वाली योजना आगे नहीं बढ़ सकी। इसलिए लाखों लोग बुरी स्थितियों में रहने को बाध्य हैं।

जल्द ही समझ में आ गया कि इस महानगर का दायरा सीमित होने के कारण सभी घर बनाने के लिए जमीन नहीं दी जा सकती। इसके बाद से इन लोगों को फ्लैट देने की योजना बनाई गई। दिल्ली में आपको ऐसे फ्लैट्स की बहुत सारी कालोनियां मिल जाएंगी जिन्हें ज्यादातर जगह जेजे काॅलोनी कहा जाता है। कुछ जगह इन्हें ईडब्लूएस या निम्न आय वर्ग काॅलोनी भी कहा जाता है। ये सभी कालोनियां तिमंजिला घरों की हैं। लेकिन जगह की कमी को देखते हुए अब इसकी जगह मल्टीस्टोरी अपार्टमेंट बनाए जा रहे हैं।

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विधानसभा चुनाव की घोषणा से चार दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पश्चिम दिल्ली के अशोक विहार में स्वाभिमान अपार्टमेंट के उद्घाटन के लिए पहुंचे। उन्होंने यहां 1400 लोगों को फ्लैट्स की चाबी दी। ये सभी लोग जेलरवाला बाग स्लम में रहते थे। जाहिर है कि वे चुनाव के पहले पूरी दिल्ली के स्लमवासियों को यह संदेश देना चाहते थे कि उनका भला करने की योजनाएं उन्हीं के पास हैं। इसी तरह उन्होंने नवंबर 2022 में 3024 परिवारों को कालकाजी में बने अपार्टमेंट में फ्लैट्स दिए थे। वहां भी प्रधानमंत्री ने इसी तरह अपनी पीठ ठोंकी थी। इन दोनों के अलावा ऐसी ही एक योजना कठपुतली कालोनी में चल रही है। वहां भी मल्टीस्टोरी कांप्लैक्स बनाकर स्लमवासियों को फ्लैट्स दिए जाने हैं।
कालकाजी वाली परियोजना की तो नींव भी 2013 में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकारों के समय रखी गई थी। कांग्रेस ने केन्द्र और राज्य सरकार पर आरोप लगाया है कि शीला दीक्षित के समय 46 हजार घर बनाने की जो शुरुआत हुई थी, वह अभी तक निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं और केन्द्र तथा राज्य सरकार उन्हें बनाकर जनता को देने में नाकाम रही है।

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इनमें से शादीपुर डिपो के पास बसी कठपुतली काॅलोनी का काम एक प्राइवेट बिल्डर को सौंपा गया था। यह एक तरह से प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप जैसा करार था। शुरू में यह कहा गया था कि इसमें से एक तिहाई जमीन बिल्डर को अपने इस्तेमाल के लिए दी जाएगी और बाकी में स्लमवासियों के लिए फ्लैट बनाए जाएंगे। बाद में कहा गया कि 60 प्रतिशत पर फ्लैट बनेंगे और 40 प्रतिशत बिल्डर अपने इस्तेमाल के लिए रखेगा। फ्रंटलाइन पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार, अब बिल्डर और दिल्ली डेवलपमेंट अथाॅरिटी ने दो तिहाई हिस्सा अपने पास रख लिया है और एक तिहाई हिस्सा ही स्लमवासियों के लिए बचा है। इस परियोजना का काम 2014 में शुरू हुआ था लेकिन एक दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी लोगों के लिए फ्लैट्स अभी भी एक हसरत ही बने हुए हैं।
कालकाजी में बने फ्लैट्स में लोगों को रहते हुए काफी समय हो गया है। लेकिन वहां रहने वालों से प्रशासन का बर्ताव अभी भी वैसा ही है जैसा कि स्लमवासियों से होता है, घर मालिकों से नहीं। पानी तो घरों में पहुंचने लग गया है लेकिन वह पीने लायक नहीं है। बहुत मांग करने के बाद वहां एक आरओ लगाया गया जो ग्राउंड फ्लोर पर है। वहां अक्सर वैसी ही भीड़ होती है जैसी कि स्लम में टैंकर के पहुंचने पर होती थी।

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निर्माण कार्य की गुणवत्ता खराब होने के कारण तकरीबन सभी जगह दीवारों में सीलन की समस्या है। मल्टीस्टोरी होने के कारण वहां जो लिफ्ट लगाई गई हैं, वे आधे से ज्यादा समय तक खराब ही रहती हैं। लोगों को सुविधाजनक आवास देने के बजाय उन्हें कच्ची जमीन पर बने स्लम्स से हटाकर वर्टिकल स्लम में स्थापित कर दिया गया है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, समस्याएं इतनी ज्यादा हैं कि वहां रहने वाले कुछ लोग तो यह तक कहने लग गए हैं कि इससे अच्छे तो वे स्लम में ही थे। सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले डेढ़ दशक में ऐसी कोई नई योजना नहीं बनी है जिससे सभी स्लमवासियों को अपना फ्लैट देने का सपना निकट भविष्य में पूरा होता नहीं दिखाई देता। 'आम आदमी' को अपनी किस्मत के भरोसे छोड़ दिया गया है।
शायद यही कारण है कि पिछले दिनों कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी नई दिल्ली विधानसभा सीट में पड़ने वाले बाल्मीकी मंदिर पंहुचे। उनके इस दौर में शहर के वंचितों के साथ खड़े होने का संदेश भी था।

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इस जगह का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। इसी मंदिर के एक कमरे में कभी महात्मा गांधी रहते थे। वह कमरा और वहां रखा महात्मा गांधी का सामान आज भी सुरक्षित है। यहीं उनसे मिलने जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल जैसे नेता आते थे जिनकी तस्वीरें वहां आज भी लगी हुई हैं।
यह मंदिर दिल्ली के गोल मार्केट इलाके में पड़ने वाली हरिजन बस्ती काॅलोनी का हिस्सा है। यह काॅलोनी कभी नई दिल्ली का सबसे बड़ा स्लम थी। यह नई दिल्ली चुनाव क्षेत्र में आता है जहां से कांग्रेस के नेता संदीप दीक्षित दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं।
इस स्लम को बाद में एक सुंदर काॅलोनी में बदल दिया गया। उस दौर के बहुत सारे बाल्मीकी परिवार आज भी इस काॅलोनी के फ्लैट्स में रहते हैं। वे कांग्रेस सरकार के शुक्रगुजार हैं कि उसने इस जगह का रूप बदल दिया। 

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