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हरियाणा में एक साल के भीतर दूसरा उपचुनाव हारी बीजेपी, क्‍या शुरु हो गई खट्टर सरकार की उल्‍टी गिनती!

हरियाणा के बरौदा में मिली बीजेपी की हार को केंद्र के तीन कृषि कानूनों पर जनता का फैसला माना गया था। किसान आंदोलन के साए तले हुए ऐलनाबाद उपचुनाव में मिली मात के पीछे भी किसानों का आक्रोश ही बड़ी वजह है।

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हरियाणा की सत्ता में सात साल पूरे होने का जश्‍न मना रही बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है। सिरसा जिले के ऐलनाबाद उपचुनाव में उसको हार का सामना करना पड़ा है। सोनीपत जिले के बरौदा में उपचुनाव हारने के एक साल के अंदर ही मिला दूसरा झटका भगवा दल के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा रहा है। बरौदा में मिली हार को केंद्र के तीन कृषि कानूनों पर जनता का फैसला माना गया था। किसान आंदोलन के साए तले हुए ऐलनाबाद उपचुनाव में मिली मात के पीछे भी किसानों का आक्रोश ही बड़ी वजह है।

हरियाणा के एक छोर पर स्थित सिरसा जिले के ऐलनाबाद के उपचुनाव पर सभी की नजरें टिकी थीं। राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली को तीन तरफ से घेरे हरियाणा की सीमाओं पर 11 महीने से किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ बैठे हैं। आलम यह रहा कि सरकार के रवैये के खिलाफ ऐलनाबाद में किसानों का आक्रोश बीजेपी उम्मीदवार के नामांकन के साथ ही फूट पड़ा था। चुनाव प्रचार के लिए अपना कार्यालय खोलने में भी बीजेपी को पसीने आ गए थे। यहां तक कि चुनाव प्रचार के लिए मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अंतिम दो दिनों में ऐलनाबाद पहुंचे थे।

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एयर होस्‍टेस गीतिका शर्मा के यौन शोषण और सुसाइड प्रकरण में पूरे देश में सुर्खियां बटोरने वाले सिरसा से निर्दलीय विधायक गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा को प्रत्‍याशी बनाने पर भी बीजेपी पर सवाल उठे थे। कहा तो यह भी जा रहा था कि ऐलनाबाद में पहले ही अपनी हार को भांप बीजेपी ने पूरा चुनाव ही कांडा बंधुओं को आउटसोर्स कर दिया था। वह भी काम नहीं आया। पैंतालिया कहा जाने वाला ऐलनाबाद बीजेपी का पूर्वी हिस्सा सेमग्रस्त है। हजारों एकड़ भूमि यहां बंजर हो चुकी है। वहीं ऐलनाबाद का पश्चिमी इलाका सूखे से प्रभावित है। यहां के लोगों को पेयजल के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। इसे लेकर ऐलनाबाद में 125 दिनों से चल रहे धरने को भी बीजेपी सरकार ने आनन-फानन खत्‍म करवाया, लेकिन उसका भी उसे फायदा नहीं मिला।

सारे दांव फेल होने और अब ऐलनाबाद में बीजेपी की हार से प्रदेश में बीजेपी के भविष्‍य की संभावनाओं पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। ऐलनाबाद की 16 राउंड में पूरी हुई मतगणना में कभी भी बीजेपी प्रत्‍याशी गोबिंद कांडा अपनी बढ़त नहीं बना पाए। इनेलो के अभय चौटाला ने 65 हजार 430 मत लेकर जीत हासिल की है।

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30 अक्‍टूबर को हुए मतदान में ऐलनाबाद में 81.38 फीसदी मत पड़े थे। इस बंपर मतदान के बाद ही बीजेपी ने एक तरह से अपनी हार मान ली थी। इससे पहले 2019 के विधानसभा चुनाव में यहां 83.75 प्रतिशत वोट पड़े थे। हालांकि, 2014 में यहां अब तक का रिकॉर्ड 89.30 प्रतिशत मतदान हुआ था। ऐलनाबाद सीट पर यह तीसरा उपचुनाव है। पिछले दो उपचुनावों में भी 80 प्रतिशत से अधिक वोट यहां पड़े थे। साल 1970 में यहां हए उपचुनाव में 82 फीसदी और 2010 में 88 प्रतिशत मतदान हुआ था।

बीजेपी के लिए चिंता की बात इसलिए और है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सिरसा से बीजेपी उम्मीदवार सुनीता दुग्गल को ऐलनाबाद से 34,301 वोट की लीड मिली थी। इसे भी वह बरकरार नहीं रख पाई। बीजेपी की हालत ऐसी थी कि किसान आंदोलन के असर वाले पंजाबी बेल्ट के 10 गांवों में उसके बूथ एजेंट तक नहीं दिखे। ऐलनाबाद के कुछ गांवों में तो 90 फीसदी या इससे ज्‍यादा मतदान हुआ है। इनमें रामपुरा ढिल्लो में सबसे अधिक 92 प्रतिशत, ममेरां खुर्द में 90 प्रतिशत, खेड़ी गोसाइयाना में 90 प्रतिशत और जसानियां में 90 फीसदी वोट पड़े हैं। इनका भी आकलन अपने तरीके से किया जा रहा है।

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भजनलाल परिवार जीता सबसे ज्‍यादा उपचुनाव

इससे पहले सबसे ज्यादा तीन उपचुनाव पूर्व सीएम भजनलाल की परंपरागत सीट आदमपुर में हुए हैं। तीनों बार ही भजनलाल परिवार ही जीता है। प्रदेश में यह 46वां उपचुनाव था। इसमें से 45 उपचुनावों में 27 बार सत्ता पक्ष व 18 बार विपक्ष का उम्मीदवार जीता है। पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल परिवार की तीन पीढ़ियों ने उपचुनाव जीते हैं।

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