दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े महानगरों में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों का स्तर लगातार बढ़ रहा है। यह खुलासा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) बॉम्बे द्वारा किए गए एक अध्ययन में हुआ है।
यह अध्ययन ऐसे समय सामने आया है जब दिल्ली में वायु गुणवत्ता पहले से ही खराब श्रेणी में पहुंच चुकी है और दीपावली के नजदीक आते-आते हालात और बिगड़ने की आशंका जताई जा रही है।
Published: undefined
बुधवार को दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 201 पर दर्ज किया गया, जो 'खराब' श्रेणी में आता है। मंगलवार को यह आंकड़ा 211 था और अनुमान है कि शुक्रवार तक यह बढ़कर 346 तक पहुंच सकता है, जो कि 'बहुत खराब' श्रेणी मानी जाती है। वायु गुणवत्ता में यह गिरावट लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकती है, खासकर बच्चों, बुजुर्गों और सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए।
मुंबई में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। मानसून की वापसी के बाद मुंबई की वायु गुणवत्ता में गिरावट देखी गई है। पिछले सप्ताह शहर का औसत एक्यूआई 153 रहा, जो कि 'मध्यम' श्रेणी में आता है, लेकिन फिर भी यह प्रदूषित माना जाता है। यह आंकड़ा शहर के 30 में से 25 सतत निगरानी केंद्रों के डेटा पर आधारित है।
Published: undefined
आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर मनोरंजन साहू और रिसर्चर आदर्श अलगड़े ने इस अध्ययन का नेतृत्व किया। उन्होंने सैटेलाइट से मिले आंकड़ों की मदद से दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैस के स्तर का विश्लेषण किया।
इसके लिए नासा के ऑर्बिटिंग कार्बन ऑब्जर्वेटरी-2 सैटेलाइट से कार्बन डाइऑक्साइड के आंकड़े और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के सेंटिनल-5पी सैटेलाइट से मीथेन के आंकड़े लिए गए।
Published: undefined
इस अध्ययन में सामने आया कि इन दोनों शहरों में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में न केवल वृद्धि हो रही है, बल्कि यह मौसमी और क्षेत्रीय रूप से भी अलग-अलग दिखती है। यानी किसी खास मौसम या जगह पर गैसों का स्तर ज्यादा हो सकता है। उदाहरण के लिए, मीथेन के 'हॉटस्पॉट,' यानी अधिक मात्रा वाले क्षेत्र, आमतौर पर वहां पाए गए जहां कचरे के ढेर, सीवेज और ज्यादा औद्योगिक गतिविधियां थीं।
शोधकर्ताओं ने शहर-विशेष सांख्यिकीय मॉडल भी विकसित किए ताकि आने वाले समय में गैसों के स्तर का अनुमान लगाया जा सके। उन्होंने सीजनल ऑटोरेग्रेसिव इंटीग्रेटेड मूविंग एवरेज (सारिमा) नामक एक गणितीय मॉडल का उपयोग किया, जो समय के साथ बदलते आंकड़ों का विश्लेषण करता है।
Published: undefined
शोधकर्ताओं ने पर्यावरण विज्ञान और प्रदूषण अनुसंधान पत्रिका में प्रकाशित शोधपत्र में कहा, ''सैटेलाइट से मिले आंकड़े नीति निर्माताओं के लिए काफी फायदेमंद हो सकते हैं। इससे यह पता लगाया जा सकता है कि किस इलाके से ज्यादा प्रदूषण हो रहा है और वहां कैसे सुधार लाया जा सकता है। कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन दोनों गैसों की बढ़ती मात्रा जलवायु परिवर्तन की दिशा में गंभीर संकेत देती है और इस पर तुरंत ध्यान देना जरूरी है।''
इस बीच, दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए केंद्र सरकार के अधीन वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएुपी) के पहले चरण के तहत कुछ सख्त नियम लागू कर दिए हैं।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined