हालात

आर्यन खान मामले में गोसावी और भानुशाली को गवाह बनाकर एनसीबी ने खुद खराब कर लिया अपना केस: कानून विशेषज्ञों की राय

ड्रग केस में बरामदगी का पंचनामा और फोरेंसिक एक्सपर्ट की राय काफी अहम होती है। लेकिन अगर गवाहों की विश्वसनीयता पर सवाल है तो इससे केस पर असर पड़ेगा।

आर्यन खान
आर्यन खान 

एक तरफ जहां कथित ड्रग्स मामले में सुपरस्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की गिरफ्तारी पर आरोप, बहस, तर्क और हैशटैग और सोशल मीडिया जंग जारी है, उसी दौरान विशेषज्ञों के बीच यह चर्चा भी है कि क्या इस सबसे मुकदमे में कोई प्रभाव पड़ेगा।

आर्यन खान को 3 अक्टूबर की रात गिरफ्तार किया गया था और 25 दिन सलाखों के पीछे गुजारने के बाद उन्हें हाईकोर्ट ने 28 अक्टूबर को जमानत पर रिहा कर दिया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि आर्यन खान के व्हाट्सऐप चैट में ऐसा कुछ नहीं मिला था जिससे पता चलता हो कि वे किसी आपराधिक साजिश में शामिल थे या उनकी ऐसी मंशा थी। एनसीबी ने व्हाट्सऐप चैट को ही उनके खिलाफ एकमात्र सबूत के तौर पर अदालत में पेश किया था। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि आर्यन खान के पास से कोई ड्रग बरामद नहीं हुआ था और अब तक हुई जांच में ऐसा कुछ नहीं सामने आया है जिससे साबित होता हो कि अन्य अभियुक्तों अरबाज मर्चेंट और मुनमुन धमेचा के साथ वे कोई साजिश रच रहे थे।

आर्यन खान की गिरफ्तारी के बाद से ही एनसीपी के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री सोशल मीडिया के जरिए एनसीबी के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े के खिलाफ एक के बाद एक विस्फोटक खुलासे कर रहे हैं।

Published: undefined

इन खुलासों और आरोपों में पहला तो यही था कि मनीष भानुशाली और किरण गोसावी आर्यन खान के साथ गिरफ्तारी के समय एनसीबी दफ्तर में मौजूद थे और छापेमारी के वक्त भी वहां पाए गए थे। भानुशाली बीजेपी के सदस्य हैं जबकि गोसावी एक वांछित आरोपी हैं और उनके खिलाफ मुंबई, नवी मुंबई और थाणे में कई केस दर्ज हैं।

इसके जवाब में एनसीबी ने सफाई दी कि भानुशाली और गोसावी दोनों ही स्वतंत्र गवाह के तौर पर इस केस में शामिल हुए हैं। भानुशाली ने हालांकि मीडिया को बताया कि उन्होंने ही क्रूज पर ड्रग्स की जानकारी दी थी जिसके बाद एनसीबी ने छापा मारा था।

कानून विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के आरोपों से केस पर सनुवाई के दौरान विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। वरिष्ठ वकील नितिन सतपुरे का कहना है कि, “सीआरपीसी में इस बात की स्पष्ठ व्याख्या है कि किस तरह के लोगों को किसी केस में गवाह बनाया जा सकता है, और ऐसा भी नियम है कि गवाहों और मुखबिर की जानकारी गुप्त रखी जानी होती है। भानुशाली और गोसावी की पहचान उजागर करके एनसीबी ने अपना ही केस कमजोर किया है। एनसीबी यह जानकारी मुकदमे के दौरान जाहिर कर सकती थी। इसके अलावा गोसावी के खिलाफ आपराधिक मामलों से उसकी विश्वसनीयता पर भी सवालिया निशान लगा है। इन सबका निश्चित रूप से मुकदमे पर असर होना तय है।”

Published: undefined

मुंबई पुलिस की एंटी नारकोटिक्स सेल के मौजूदा अधिकारी इस बारे में कहते हैं कि एनडीपीएस एक्ट एक सख्त कानून है और इससे पूरी प्रक्रिया में गहरा असर पड़ता है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि, “कानून इतना सख्त है कि हम बरामद किए गए ड्रग्स की फोटो तक जारी नहीं कर सकते, क्योंकि इससे बचाव पक्ष के वकील मुकदमे के दौरान दलील दे सकते हैं कि सबूतों से छेड़छाड़ की गई है। इस कानून के ऐसे सख्त नियमों के बावजूद इस केस से जुड़ी जानकारियां जांच की शुरुआत में ही मीडिया के सामने आ जाना सही नहीं है।”

सतपुरे ने भी कहा कि एनसीबी ने प्रभाकर सैल की पहचान उजागर करके भी अपने केस को नुकसान पहुंचाया है। प्रभाकर सैल भी इस मामले में एक गवाह है। प्रभाकर गोसावी का का निजी बॉडीगार्ड है। प्रभाकर ने एक एफिडेविट में दावा किय है कि उससे सादे कागजों पर दस्तखत कराए गए थे। उसका यह भी दावा है कि उसने शाहरुख खान की मैनेजर पूजा डडलानी के साथ हो रही लेनदेने की बातचीत क भी सुना था।

Published: undefined

सेवानिवृत असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर राजाराम मांडगे का प्रभाकर सैल के दावों पर एक अलग नजरिया है। मांडगे मुंबई पुलिस की एंटी नारकोटिक्स सेल में काम कर चुके हैं। उन्होंने कहा, “सैल को एक दबाव वाले गवाह के तौर पर ही सामने रखा जा सकता है। सिर्फ मीडिया में ये सबकुछ कह देने से कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे यह सब शपथपत्र में कहना होगा। एक उसे होस्टाइल विटनेस करार दे दिया गया तो सरकारी वकील उससे जिरह कर सकता है। इसके बाद यह पूरी तरह जज के विवेक पर होगा क वह उसकी बात को माने या न माने।” भानुशाली और गोसावी के मामले में मांडगे का कहना है कि सबकुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि पंचनामा में क्या लिखा है जिस पर उन्होंने दस्तखत किए हैं।

इनके अलावा मुंबई पुलिस के रिटायर्ड एसीपी इकबाल शेख ने भी यही बात कही। उन्होंने कहा कि, “ड्रग केस में बरामदगी का पंचनामा और फोरेंसिक एक्सपर्ट की राय काफी अहम होती है। लेकिन अगर गवाहों की विश्वसनीयता पर सवाल है तो इससे केस पर असर पड़ेगा।”

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined