इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद यूपी सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। अब यूपी में जाति आधारित रैलियों पर रोक होगी। इतना ही नहीं सार्वजनिक जगहों पर, पुलिस रिकॉर्ड्स और सरकारी दस्तावेजों में भी किसी की जाति का जिक्र नहीं किया जाएगा। ये आदेश जातिगत भेदभाव खत्म करने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद लिया गया है।
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कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आरोपी व्यक्तियों, सूचना देने वालों और गवाहों की जाति से जुड़े सभी कॉलम और प्रविष्टियों को हटाकर अपनी पुलिस दस्तावेजी प्रक्रियाओं को दुरुस्त करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने मौजूदा मामले में कहा, “प्राथमिकी और जब्ती मेमो में आरोपियों की जाति माली, पहाड़ी राजपूत ठाकुर, पंजाबी पाराशर और ब्राह्मण के तौर पर दर्ज करने से किसी कानूनी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होता।”
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अब इस आदेश के बाद पुलिस रिकॉर्ड्स, जैसे कि एफआईआर और गिरफ्तारी मेमो में किसी भी व्यक्ति की जाति नहीं बताई जाएगी। इसके अलावा, सरकारी और कानूनी दस्तावेजों में भी जाति वाले कॉलम को हटाने की तैयारी है। सरकार का तर्क है कि इस कदम के जरिए समानता को प्राथमिकता दी जाएगी।
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इसके अलावा जाति आधारित रैलियों और कार्यक्रमों पर पाबंदी रहेगी। इसके अलावा, अगर कोई सोशल मीडिया पर जाति का महिमामंडन करेगा या फिर जाति को लेकर नफरत फैलाने का काम करेगा, तो उसके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की जाएगी।
बता दें कि बीते दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज विनोद दिवाकर की बेंच ने एक शराब तस्करी मामले में सुनवाई की थी। उस मामले में याचिकाकर्ता का नाम प्रवीण छेत्री था। उन्होंने इस बात पर नाराजगी जताई थी कि उनकी गिरफ्तारी के दौरान एफआईआर में उनकी जाति का जिक्र किया गया था।
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