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एक फैसले के लिए सोशल मीडिया ट्रोल्स का शिकार हुए चीफ जस्टिस गवई, VHP ने भी दे दी नसीहत

सीजेआई की पीठ ने खजुराहो मंदिर के परिसर में मौजूद जावरी मंदिर में भगवान विष्णु की सात फुट ऊंची प्रतिमा को पुन: स्थापित करने की मांग वाली एक याचिका मंगलवार को खारिज कर दी थी। प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि यह पूरी तरह से प्रचार हित याचिका है।

एक फैसले के लिए सोशल मीडिया ट्रोल्स का शिकार हुए चीफ जस्टिस गवई, VHP ने भी दे दी नसीहत
एक फैसले के लिए सोशल मीडिया ट्रोल्स का शिकार हुए चीफ जस्टिस गवई, VHP ने भी दे दी नसीहत फोटोः सोशल मीडिया

प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई को एक मामले में फैसले के दौरान टिप्पणी के लिए सोशल मीडिया पर ट्रोल्स का शिकार होना पड़ा है, जिससे आहत होकर उन्होंने आज कहा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। वहीं वीएचपी ने उन्हें नसीहत देते हुए कहा है कि बेहतर रहेगा कि हिंदू धर्म की मान्यताओं का मजाक उड़ाने वाली ऐसी टिप्पणियों से बचा जाए।

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दरअसल उच्चतम न्यायालय की सीजेआई और जस्टिस विनोद चंद्रन की पीठ ने यूनेस्को की विश्व विरासतों में शुमार मध्य प्रदेश में स्थित खजुराहो मंदिर के परिसर में मौजूद जावरी मंदिर में भगवान विष्णु की सात फुट ऊंची प्रतिमा को पुन: स्थापित करने की मांग वाली एक याचिका मंगलवार को खारिज कर दी थी। प्रधान न्यायाधीश ने कहा था, ‘यह पूरी तरह से प्रचार हित याचिका है... जाइए और स्वयं भगवान से कुछ करने के लिए कहिए। यदि आप कह रहे हैं कि आप भगवान विष्णु के अनन्य भक्त हैं, तो आप प्रार्थना कीजिए और थोड़ा ध्यान करिए।’’

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प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई की इसी टिप्पणी के लिए सोशल मीडिया पर उन्हें आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा। देखते ही ऑनलाइन आलोचनाओं की झड़ी लग गई। ऐसा संभवतः पहली बार होगा कि किसी फैसले के लिए चीफ जस्टिस को व्यक्तिगत तौर पर निशाना बनाया जा रहा है। ऑनलाइन आलोचनाओं से आहत सीजेआई ने गुरुवार को कहा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘किसी ने मुझे बताया कि मैंने जो टिप्पणियां की थीं, इन्हें सोशल मीडिया पर गलत ढंग से चित्रित किया गया है... मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं।’’

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हालांकि, सीजेआई के खिलाफ अभियान केवल ऑनलाइन तक ही सीमित नहीं रहा है। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने भी गुरुवार को सीजेआई बी आर गवई की टिप्पणी के लिए उन्हें नसीहत के रूप में चेतावनी देते हुए कहा कि बेहतर रहेगा कि हिंदू धर्म की मान्यताओं का मजाक उड़ाने वाली ऐसी टिप्पणियों से बचा जाए। वीएचपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार नेकहा, ‘‘हमें लगता है कि प्रधान न्यायाधीश की मौखिक टिप्पणी से हिंदू धर्म की मान्यताओं का माखौल उड़ा है। ऐसी टिप्पणियों से बचना ही बेहतर होगा।’’

आलोक कुमार ने कहा कि अदालतें न्याय के मंदिर हैं जिन पर भारतीय समाज की आस्था और विश्वास है। कुमार ने कहा, ‘‘यह हमारा कर्तव्य है कि यह विश्वास न केवल बरकरार रहे, बल्कि और भी मज़बूत हो।’’ उन्होंने कहा, ‘‘खासकर अदालत के अंदर अपनी टिप्पणियों में संयम बरतना भी हमारा कर्तव्य है। यह जिम्मेदारी वादियों, वकीलों और न्यायाधीशों के लिए समान है।’’

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बता दें कि राकेश दलाल ने अपनी याचिका में छतरपुर जिले के जावरी मंदिर में क्षतिग्रस्त मूर्ति को बदलने और उसकी प्राण-प्रतिष्ठा करने की मांग की थी। जावरी मंदिर मध्य प्रदेश में यूनेस्को विश्व धरोहर खजुराहो मंदिर परिसर का हिस्सा है। पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह मामला पूरी तरह से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकार क्षेत्र में आता है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह एक पुरातात्विक खोज है, एएसआई ऐसा करने की अनुमति देगा या नहीं... इसमें कई मुद्दे हैं।’’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इस बीच, अगर आप शैव धर्म के विरोधी नहीं हैं, तो आप वहां जाकर पूजा कर सकते हैं... वहां शिव का एक बहुत बड़ा लिंग है, जो खजुराहो के सबसे बड़े लिंगों में से एक है।’’ दलाल की याचिका में मूर्ति को बदलने या पुनर्निर्माण के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया था और तर्क दिया गया था कि केंद्रीय गृह मंत्रालय और एएसआई को कई बार ज्ञापन दिया गया है। हालांकि कोर्ट ने याचिका को प्रचार याचिका करार देते हुए खारिज कर दिया।

(पीटीआई के इनपुट के साथ)

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