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जंतर मंतर पर किसान संसद में बतौर किसान शामिल हुए दीपेन्द्र हुड्डा, कहा- न विपक्ष की और न किसान की आवाज़ दबेगी

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा है कि सरकार तीनों कानूनों की वापसी का मन बनाकर सदन में चर्चा कराए तो विपक्ष भी उसमें शामिल होगा। मगर ये सरकार राजहठ और घमंड में इस कदर कायम है कि विपक्ष और किसान दोनों की आवाज दबाने की कोशिश कर रही है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने मंगलवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर चल रही किसान संसद में बतौर किसान हिस्सा लिया। उन्होंने किसान आन्दोलन और किसानों की मांगों को अपना पूर्ण समर्थन देते हुए ऐलान किया है कि सरकार कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन न तो विपक्ष की आवाज देगी और न ही किसानों की।

दीपेंद्र हुड्डा के नेतृत्व में पांच अन्य सांसदों ने भी किसान संसद में हिस्सा लिया। इनमें पंजाब से कांग्रेस के राज्य सभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा, बिहार से राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद मनोज झा, छत्तीसगढ़ से कांग्रेस की राज्यसभा सांसद छाया वर्मा, गुजरात से कांग्रेस की राज्य सभा सांसद अमी याज्ञिक और 2 पूर्व सांसद जिनमें आरएलडी अध्यक्ष व पूर्व सांसद जयंत चौधरी व राज्य सभा के पूर्व सांसद शाहिद सिद्दकी मौजूद रहे।

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इसम मौके पर केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि कृषि मंत्री कह रहे हैं कि वो किसानों से बातचीत तो करेंगे मगर उनकी बात नहीं मानेंगे, इसका कोई अर्थ नहीं है। सरकार खुले मन से किसानों से बिना शर्त बातचीत के द्वार खोले तो मुझे पूरा विश्वास है कि किसान भी आगे आयेंगे। सरकार तीनों कानूनों की वापसी का मन बनाकर सदन में चर्चा कराए तो विपक्ष भी उसमें शामिल होगा। मगर ये सरकार राजहठ और घमंड में इस कदर कायम है कि विपक्ष और किसान दोनों की आवाज दबाने की कोशिश कर रही है। न विपक्ष की आवाज दबेगी न किसान की आवाज़ दबेगी।

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इससे पहले दीपेन्द्र हुड्डा ने राज्यसभा में मंगलवार को भी किसानों के मुद्दे पर नियम 267 के तहत चर्चा कराने का नोटिस दिया। जिसे अस्वीकार कर सभापति ने सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी। मानसून सत्र के तीसरे हफ्ते में भी सरकार और विपक्ष के बीच कड़ा गतिरोध बना हुआ है। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि वो लगातार नियम 267 के तहत चर्चा कराने का नोटिस दे रहे हैं, लेकिन माननीय सभापति बिना चर्चा कराये उसे खारिज कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि सरकार चर्चा ही नहीं चाहती।

उन्होंने कहा कि 8 महीनों में 400 से ज्यादा शव किसान धरनों से वापस गाँवों में जा चुके फिर भी किसान मौसम और सरकार की मार सहकर सड़कों पर आन्दोलनरत हैं। क्या देश के अन्नदाता देश के नागरिक नहीं हैं सरकार जवाब दे।

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दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि ऐसा लगता है सरकार सड़क पर किसानों से और संसद में उनके मुद्दों पर बात करना ही नहीं चाहती। ये समझ से परे है कि सरकार नियमों के तहत संसद का काम रोककर सबसे पहले किसानों के मुद्दे पर चर्चा कराने की बजाय चर्चा से भाग क्यों रही है। सरकार के अड़ियल रवैये से साफ़ है वो किसानों का हित नहीं चाहती। उन्होंने चेताया कि जब तक सरकार संसद में किसानों की बात नहीं सुनेगी, हम भी सरकार की बात नहीं सुनेंगे। हमारी लड़ाई जारी रहेगी।

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