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भारत-चीन संबंधों पर कांग्रेस का हमला, जयराम रमेश बोले– चीन के सामने झुकी मोदी सरकार, PM मानसून सत्र में करेंगे चर्चा?

जयराम रमेश की ओर से जारी बयान में उन्होंने कहा कि भारत-चीन संबंधों को लेकर सरकार जनता को गुमराह कर रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के सामने पूरी तरह झुक चुके हैं।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश (फाइल फोटो - Getty Images)
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश (फाइल फोटो - Getty Images) 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के चीन दौरे के बाद दिए बयान को लेकर केंद्र सरकार पर बड़ा हमला बोला है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश की ओर से जारी बयान में उन्होंने कहा कि भारत-चीन संबंधों को लेकर सरकार जनता को गुमराह कर रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के सामने पूरी तरह झुक चुके हैं।

कांग्रेस ने कहा कि 14 जुलाई 2025 को चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग के साथ अपनी बैठक में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत-चीन द्विपक्षीय संबंध "पिछले अक्टूबर में कजा़न में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद से लगातार सुधार रहे हैं" और यह भी कहा कि “हमारे संबंधों का निरंतर सामान्य होना दोनों देशों के लिए लाभदायक हो सकता है।”

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शायद विदेश मंत्री को याद दिलाना ज़रूरी है कि प्रधानमंत्री की राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई पिछली मुलाक़ात के बाद भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों में क्या-क्या घटनाक्रम हुए हैं:

  • चीन ने ऑपरेशन सिंधु के दौरान पाकिस्तान को पूरा समर्थन दिया। पाकिस्तान ने इस ऑपरेशन को नेटवर्क-केंद्रित युद्ध प्रणाली और हथियारों जैसे - J-10C फाइटर, PL-15E एयर-टू-एयर मिसाइल और ड्रोन के लिए टेस्टिंग ग्राउंड्स की तरह इस्तेमाल किया। भारतीय सेना के उपसेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत ने सिंधु में तीन दुश्मनों से लड़ - जिनमें चीन भी शामिल था, जिसने पाकिस्तान को ख़ुफ़िया इन्पुट्स, यानि रियल-टाइम इंटेलिजेंस मुहैया कराया। निकट भविष्य में पाकिस्तान को चीनी J-35 स्टेल्थ लड़ाकू विमान मिलने की भी पूरी संभावना है।

  • चीन ने भारत को रेयर-अर्थ मेटल्स, विशेष उर्वरक, और टनल-बोरिंग मशीनों जैसी महत्वपूर्ण सामग्रियों के निर्यात को सीमित कर दिया है, जो भारत की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए ज़रूरी हैं। दवाइयां, फार्मा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में भारत अब भी चीनी आयात पर बुरी तरह निर्भर है, जबकि भारत का व्यापार घाटा बढ़कर रिकॉर्ड 99.2 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है।

  • भारत में Foxconn के प्लांट्स से सैकड़ों चीनी कर्मचारी वापस जा चुके हैं, एप्पल स्मार्टफोन के वैकल्पिक ग्लोबल सप्लाई हब बनने की भारत की योजना के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकती है।

  • भारतीय गश्ती दल अब भी देपसांग, डेमचोक और चुशूल जैसे इलाकों में अपने निर्धारित गश्त बिंदुओं तक पहुँचने के लिए चीन की सहमति पर निर्भर हैं। गलवान, हॉट स्प्रिंग और पेंगोंग झील में बनाए गए “बफर ज़ोन” मुख्य रूप से भारतीय दावे की सीमा के भीतर आते हैं, जिससे हमारी सेना उन इलाकों तक नहीं पहुँच पा रही है जहां अप्रैल 2020 से पहले वह बिना किसी बाधा के नियमित गश्त करती थी।

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कांग्रेस ने आगे लिखा कि बेशक, मोदी सरकार का चीन के सामने इस तरह झुकना हैरान नहीं करता है, क्योंकि विदेश मंत्री स्वयं दो साल पहले एक साक्षात्कार में यह आपत्तिजनक बयान दे चुके हैं - "देखिए, वे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। मैं क्या कर सकता हूँ? एक छोटी अर्थव्यवस्था होने के नाते क्या मैं बड़ी अर्थव्यवस्था से भिड़ जाऊं?" उनके आका, लाल आंखों वाले प्रधानमंत्री, ने भी ठीक इसी तरह 19 जून 2020 को दिए अपने बयान में चीन को सार्वजनिक रूप से क्लीन चिट दे दी थी, जब उन्होंने कहा था - "ना कोई हमारी सीमा में घुस आया है, ना ही कोई घुसा हुआ है"।

यह एक खुला झूठ था, जिसका इस्तेमाल चीन ने दुनिया भर में यह दिखाने के लिए किया कि उसने भारतीय क्षेत्र का उल्लंघन नहीं किया है। इस बयान ने न सिर्फ सवालों पर परदा डाला, बल्कि भारत की बातचीत की स्थिति को भी गंभीर रूप से कमजोर किया।

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विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री, भारत की जनता को विश्वास में लेकर चीन के मुद्दे पर विस्तार से बहस कब करेंगे? इस मुद्दे पर बहस की मांग भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पिछले पांच वर्षों से लगातार करती आ रही है। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री इस बार मानसून सत्र में इस पर चर्चा के लिए सहमत होंगे।

जब नवंबर 1962 में, चीन के आक्रमण के सबसे भीषण दौर में भी संसद में सीमा की स्थिति पर खुली बहस संभव थी, तो आज यह चर्चा क्यों नहीं हो सकती? विशेषकर तब, जब दोनों देश संबंधों को सामान्य करने की बात कर रहे हैं (भले ही पूर्वी लद्दाख में मई 2020 की यथास्थिति बहाल किए बिना ही सही।)

यह बेहद ज़रूरी है कि चीन के वैश्विक विनिर्माण महाशक्ति के रूप में उभरने और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने - तथा आने वाले दशक में अमेरिका को पीछे छोड़ने की संभावना - से उत्पन्न हो रहे गंभीर सुरक्षा और आर्थिक खतरों पर राष्ट्रीय सहमति बने, ताकि भारत अपनी सुरक्षा और आर्थिक रणनीति को स्पष्टता और एकजुटता के साथ तय कर सके।

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