कांग्रेस ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग प्रमुख की पसंद पर मोदी सरकार से असहमति जताई है। कांग्रेस ने कहा है कि सरकार ने इस अहम पद पर चयन के लिए जाति और समुदाय के संतुलन को नजरंदाज किया है। कांग्रेस ने चयन को “एक पूर्व निर्धारित फैसला” करार दिया है। कांग्रेस ने कहा है कि इस फैसले में “आपसी परामर्श और आम सहमति की स्थापित परंपरा को नजरअंदाज किया” गया है। कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी सरकार पर चयन समिति में अपने बहुमत के दम पर नियुक्ति को अंतिम रूप देने और इस प्रक्रिया में भारत की विविधता की उपेक्षा करने का आरोप लगाया है।
कांग्रेस की तरफ से जारी असहमति नोट में पार्टी अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हस्ताक्षर किए हैं। इस पत्र को एनएचआरसी अध्यक्ष के लिए नामों को शॉर्टलिस्ट करने और राष्ट्रपति को सिफारिश करने वाली चयन समिति को सौंपा गया है। बता दें कि सोमवार (23 दिसबंर, 2024) को मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वी रामसुब्रमण्यम को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का नया अध्यक्ष नियुक्त करने की घोषणा की।
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कांग्रेस ने पत्र में यह तर्क देते हुए कि एनएचआरसी अध्यक्ष और सदस्यों के चयन में योग्यता प्राथमिक मानदंड है, कहा कि “राष्ट्र की क्षेत्रीय, जाति, समुदाय और धार्मिक विविधता को प्रतिबिंबित करने वाला संतुलन बनाए रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।”
कांग्रेस के नोट में कहा गया है कि जाति और समुदाय का संतुलन “यह सुनिश्चित करता है कि मानवाधिकार आयोग समावेशी दृष्टिकोण के साथ काम करे, जो समाज के सभी वर्गों के अनुभवों के प्रति संवेदनशील हो।” नोट में कहा गया है, “इस महत्वपूर्ण सिद्धांत की उपेक्षा करके, समिति इस प्रतिष्ठित संस्था में जनता के विश्वास को खत्म करने का जोखिम उठा रही है।”
18 दिसंबर को समिति को सौंपे गए कांग्रेस के असहमति नोट में कहा गया है कि, "समिति द्वारा अपनाई गई चयन प्रक्रिया मूल रूप से दोषपूर्ण थी...विचार-विमर्श को बढ़ावा देने और सामूहिक निर्णय सुनिश्चित करने के बजाय, समिति ने नामों को अंतिम रूप देने के लिए संख्या के बहुमत पर भरोसा किया और बैठक के दौरान उठाई गई वैध चिंताओं और दृष्टिकोणों की अनदेखी की।"
गौरतलब है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष का चयन करने वाली समिति की अगुवाई प्रधानमंत्री करते हैं। इसमें लोकसभा अध्यक्ष, केंद्रीय गृह मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता और राज्यसभा के उपसभापति सदस्य होते हैं।
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मोदी सरकार ने जिन जस्टिस रामसुब्रमण्यन को एनएचआरसी का अध्यक्ष नियुक्त किया है, वे तीन साल से ज़्यादा समय तक सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर काम करने के बाद 29 जून, 2023 को रिटायर हो गए थे। सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान, वे कई महत्वपूर्ण मामलों में बेंच का हिस्सा रहे। इनमें 2023 में केंद्र की नोटबंदी योजना को बरकरार रखने वाली पांच जजों की बेंच और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के उस सर्कुलर को रद्द करने का फ़ैसला शामिल है, जिसमें कहा गया था कि वह क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े व्यक्तियों और व्यवसायों को सेवाएं नहीं देगा।
असहमति नोट के अनुसार, कांग्रेस ने न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति कुट्टीयल मैथ्यू जोसेफ के नाम प्रस्तावित किए थे। नोट में कहा गया है कि ये सिफारिशें योग्यता और “समावेश की आवश्यकता” दोनों को ध्यान में रखते हुए की गई थीं क्योंकि नरीमन अल्पसंख्यक पारसी समुदाय से हैं और जोसेफ ईसाई समुदाय से हैं। नोट में कहा गया है कि अगर इन दोनों में से किसी को आयोग का अध्यक्ष बनाया जाता तो इससे “भारत के बहुलवादी समाज का प्रतिनिधित्व करने के लिए एनएचआरसी की प्रतिबद्धता के बारे में एक मजबूत संदेश जाता।”
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राष्ट्रीय मावनाधिकार आयोग के सदस्यों के लिए , कांग्रेस ने न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति अकील अब्दुल हमीद कुरैशी के नामों की सिफारिश की थी। कांग्रेस ने कहा था कि, “मानवाधिकारों को बनाए रखने में दोनों ही जजों का शानदार रिकॉर्ड रहा है।” नोट में कहा गया है, “उनके सदस्य के रूप में आयोग में शामिल होने से एनएचआरसी की प्रभावशीलता और विविधता के प्रति इसकी प्रतिबद्धता मजबूत होती।”
मुरलीधर अगस्त 2023 में ओडिशा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। फरवरी 2020 में मुरलीधर ने दिल्ली दंगों में पुलिस की निष्क्रियता पर तत्काल याचिकाओं से निपटने वाली तीने सुनवाइयों की अध्यक्षता की थी। अपने आवास पर आधी रात को आपातकालीन सुनवाई के बाद, मुरलीधर ने अन्य आदेशों के अलावा एक आदेश जारी किया था, जिसमें पुलिस को दंगे में घायल हुए लोगों की सुरक्षा करने और उचित सुविधाओं वाले अस्पताल में उनका सुरक्षित स्थानांतरण सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। इन आदेशों के तुरंत बाद, केंद्र ने मुरलीधर का तबादला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में कर दिया था।
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कुरैशी 2022 में राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने पहले गुजरात हाईकोर्ट में सेवाएं दी थी, जहां कुरैशी ने दो महत्वपूर्ण फैसले सुनाए थे जिसके कारण तत्कालीन मोदी सरकार को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था। 2010 में, उन्होंने एक ट्रायल कोर्ट के आदेश को दरकिनार करते हुए सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री और अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की दो दिन की हिरासत में भेज दिया था। इसके अलावा 2011 में, कुरैशी की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने गुजरात की तब की राज्यपाल कमला बेनीवाल के हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आर ए मेहता को राज्य का लोकायुक्त नियुक्त करने के फैसले को बरकरार रखा था, जिसका मोदी ने विरोध किया था।
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