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कोरोना ने देश को सबसे खराब और चुनौतीपूर्ण दौर में पहुंचाया, स्वास्थ्य सेवाएं-अर्थव्यवस्था चरमराई, रोजगार पर संकट

भारतीय अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाली संस्था, सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनमी, सीएमआईई के एक ताजा अध्ययन के मुताबिक अप्रैल में 75 लाख लोगों की नौकरी चली गई है। पिछले चार महीनों में बेरोजगारी की दर सबसे ऊंची पाई गई है।

फोटो: DW
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कोविड-19 महामारी ने भारत को इस समय अपने सबसे खराब और सबसे चुनौतीपूर्ण दौर में पहुंचा दिया है। न सिर्फ लोग बीमार हो रहे हैं और मारे जा रहे हैं, बल्कि स्वास्थ्य सेवाएं भी चरमराती नजर आती हैं। एक तरफ ये विकरालता है तो दूसरी तरफ लोगों की दुश्वारियां बढ़ाता रोजगार पर आया संकट है।

Published: 07 May 2021, 11:42 AM IST

सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनमी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कोरोना के कहर के बीच बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढ़ी है। जीवन और रोजगार के हाहाकार के बीच सरकारों के पास राहत के लिए फिलहाल कोई तात्कालिक नीति नजर नहीं आती। क्या भारत एक नए संकट की ओर बढ़ रहा है जिसमें जीवन स्वास्थ्य भोजन रोजगार पर्यावरण सब कुछ दांव पर लगा है या यह समय नीतियों की दूरदर्शिता और आपात एक्शन प्लान के दम पर बदला जा सकता है, यह सवाल विशेषज्ञों और नीति नियंताओं से लेकर एक्टिविस्टों और आमलोगों तक में पूछा जाने लगा है।

Published: 07 May 2021, 11:42 AM IST

कोविड-19 की दूसरी लहर और उसके चलते विभिन्न राज्यों में स्थानीय स्तरों पर लगाए गए सीमित अवधि वाले लॉकडाउन या कर्फ्यू से आर्थिक गतिविधियों में ठहराव आ गया था। कहीं वे पूरी तरह से थम गईं तो कहीं अवरुद्ध हो गई और इसका असर नौकरियों पर भी पड़ा है। चार महीने में बेरोजगारी की दर आठ फीसदी हो चुकी है। इसमें शहरी इलाकों में साढ़े नौ फीसदी से ज्यादा की दर देखी गई है, तो ग्रामीण इलाकों में सात प्रतिशत की दर। मार्च में राष्ट्रीय दर साढ़े छह प्रतिशत थी, शहरी और ग्रामीण इलाकों में भी तदानुसार कम ही थी।

Published: 07 May 2021, 11:42 AM IST

सीएमआईई के मुताबिक चिंता यह भी है कि न सिर्फ बेरोजगारी की दर ऊंची बनी रह सकती है, बल्कि श्रम शक्ति की भागीदारी की दर भी गिरने का खतरा है। हालांकि पहले लॉकडाउन की तरह हालात उतने गंभीर नहीं हैं, जब बेरोजगारी 24 प्रतिशत की दर तक पहुंच गई थी। वैसे यह भी सच है कि पिछले साल डांवाडोल हुआ रोजगार बाजार पूरी तरह संभला भी नहीं था कि यह नए दुष्कर हालात बन गए।

Published: 07 May 2021, 11:42 AM IST

लेकिन अकेले महामारी पर इसका दोष मढ़ देना क्या जमीनी हकीकत से मुंह फेरने की तरह नहीं होगा? संख्या के लिहाज से देखें तो इस साल जनवरी में रोजगार से जुड़े लोगों की संख्या थी 40 करोड़। मार्च में यह 39.81 करोड़ पर पहुंच गई और अप्रैल में और गिरकर 39 करोड़ ही रह गई। महामारी की बढ़ती दहशत, रोजाना संक्रमण और मौत के बढ़ते आंकड़े, हालात की भयावहता दिखा रहे हैं। टीकाकरण की बहुत सुस्त रफ्तार को भी चिंता का कारण बताया जा रहा है।

Published: 07 May 2021, 11:42 AM IST

पिछले साल मई के पहले हफ्ते में सीएमआईई के डाटा के मुताबिक बेरोजगारी की दर 27 प्रतिशत थी। नवंबर 2020 में देश में कुल रोजगार 39 करोड़ से कुछ ज्यादा रह गया जबकि 2019 में यह संख्या 40 करोड़ से कुछ ज्यादा थी। महिलाओं की स्थिति तो और भी बुरी रही।

Published: 07 May 2021, 11:42 AM IST

रिपोर्ट के मुताबिक वैसे भी महिला श्रम बाजार में 71 प्रतिशत पुरुष हिस्सेदारी है और महिला भागीदारी महज 11 प्रतिशत की रह गयी है। फिर भी बेरोजगारी में उनकी दर पुरुषों से अधिक है. छह प्रतिशत के मुकाबले 17 प्रतिशत। देखा जाए तो पिछले साल के आर्थिक नुकसान का वास्तविक खामियाजा अब सामने दिखने लगा है।

Published: 07 May 2021, 11:42 AM IST

वेतनभोगी कर्मचारियों पर 2020-21 भारी गुजरा और उनका रोजगार छूट गया। माना जाता था कि चूंकि वेतन की सुरक्षा कवच में रहते हुए यह वर्ग कोविड-19 की भीषणताओं को झेल जाएगा और उस पर वैसी मार नहीं पड़ेगी जैसे अन्य वर्गों पर लेकिन इस साल और इस असाधारण हालात ने वह भ्रम भी तोड़ दिया। एक अनुमान के मुताबिक सप्ताहांत मे भारत की आधा से ज्यादा आबादी घरों में ही सिमट कर रह गई थी।

Published: 07 May 2021, 11:42 AM IST

कोविड-19 की पहली लहर में जिनकी नौकरियां चली गई थीं वे अब कहां हैं। जानकारों और अलग अलग रिपोर्टों और सीएमआईई एजेंसी के अध्ययन की मानें तो उनमें से ज्यादातर प्रवासी कामगार खेती में लौट चुके होंगे या ग्रामीण इलाकों में खेती से जुड़े छोटेमोटे काम धंधों या मजदूरी आदि में लगे होंगें।

Published: 07 May 2021, 11:42 AM IST

हो सकता है कुछ वापस शहरों को लौटकर दोबारा किस्मत आजमाने शहरों को लौट आए हैं लेकिन अभी इसका विधिवत डाटा नहीं है कि कितने लौटे कितने रह गए कितनों का काम छूटा और कितनों का काम मिल पाया और काम मिला भी तो वे किस तरह का मिला और उससे उनकी आय में सुधार आया या गिरावट आई। ये सब बिंदु एक विशाल सामाजिक संकट की ओर भी इशारा करते हैं जो कोविड-19 और सरकारों की कार्यशैलियों की वजह से दरपेश है।

Published: 07 May 2021, 11:42 AM IST

सीएमआईई का डाटा हालात की अत्यधिक गंभीरता का अंदाजा ही नहीं देता और न ही यह सिर्फ नौकरियों के हाल और गांवों शहरों की मौजूदा तकलीफों और दबावों और नई असहायताओं को आंकड़ों की रोशनी में बयान करता है, बल्कि यह सरकारों के लिए भी खासकर केंद्र सरकार के लिए आपात ऐक्शन की जरूरत भी दिखाता है।

Published: 07 May 2021, 11:42 AM IST

बेरोजगारी के इस संकट से निपटने के लिए आखिरकार केंद्र को ही प्रोएक्टिव कदम उठाने होते हुए मजबूत दूरगामी नीति बनानी होगी. और उसमें सभी राज्यों और आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य, चिकित्सा और विधि विशेषज्ञों को साथ लेना होगा। ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' के नारे को वास्तविक लोकतांत्रिक अर्थों में अमल में लाए बिना तो इस कठिन हालात पर काबू पाना नामुमकिन है। केंद्र ही नहीं राज्यों की सरकारों की कार्यक्षमता के लिए भी ये कड़े इम्तहान का वक्त है।

Published: 07 May 2021, 11:42 AM IST

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Published: 07 May 2021, 11:42 AM IST