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कोरोना वैक्सीनेशन: जानें कौन है वो शख्स? जिसे देश में सबसे पहले लगा कोरोना टीका

आज देश भर में लगभग 3000 केंद्रों पर 3 लाख लोगों को कोरोना की वैक्सीन दी जाएगी। सबसे पहले दिल्ली स्थित एम्स में कोरोना का पहला वैक्सीन लगाया गया। इसके कुछ ही मिनटों बाद एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया को कोरोना का वैक्सीन लगाया गया।

फोटो: ANI
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लंबे समय का इंतजार अब खत्म हो गया है। भारत में भी कोरोना वैक्सीनेशन अभियान की शुरूआत हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दुनिया के सबसे बड़े कोरोना वैक्सीनेशन अभियान की शुरुआत कर दी है। दिल्ली स्थित एम्स में सफाई कर्मी को कोरोना का पहला वैक्सीन लगाया गया। बता दें कि एम्स में सबसे पहला टीका जिस सैनिटेशन डिपार्टमेंट के एक कर्मचारी को लगा उसका नाम मनीष कुमार है। इसके साथ ही मनीष कुमार कोरोना का वैक्सीन लेने वाले देश के पहले नागरिक बन गए हैं।

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इसके कुछ ही मिनटों बाद एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया को कोरोना का वैक्सीन लगाया गया। बता दें कि डॉ गुलेरिया देश के टॉप चिकित्सा विशेषज्ञ हैं. डॉ गुलेरिया ने ये वैक्सीन लेकर सभी तरह की आशंकाओं को निराधार साबित कर दिया है।

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आपको बता दें, आज देश भर में लगभग 3000 केंद्रों पर 3 लाख लोगों को कोरोना की वैक्सीन दी जाएगी। इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा कि कोरोना वैक्सीन लगने के बाद भी हमें सावधानी की जरूरत होगी। प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वैक्सीनेशन कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कहा आज के दिन का बेसब्री से इंतजार था। कोरोना की वैक्सीन आ गई है।मोदी ने कहा कि वैक्सीन बनाने वालों ने कड़ी मेहनत की है।पीएम ने कहा कि उन्होंने न त्योहार की चिंता की न घर छुट्टी मनाने गए।पीएम ने कहा कि ऐसे ही दिन के लिए राष्ट्रकवि दिनकर ने कहा था कि मानव जब जोर लगाता है तो पत्थर पानी बन जाता है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में आगे कहा कि कोरोना काल में हमारे कई साथी ऐसे रहे जो बीमार होकर अस्पताल गए तो लौटे ही नहीं। पीएम ने कहा कि संकट के उसी समय में, निराशा के उसी वातावरण में, कोई आशा का भी संचार कर रहा था, हमें बचाने के लिए अपने प्राणों को संकट में डाल रहा था। ये लोग थे हमारे डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, एंबुलेंस ड्राइवर, आशा वर्कर, सफाई कर्मचारी, पुलिस और दूसरे फ्रंटलाइन वर्कर्स।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे कहा कि इस बीमारी ने लोगों को अपने घर से दूर रखा। माताएं बच्चों के लिए रो रही थीं, लेकिन वो अपने बच्चों के पास नहीं जा सकती थीं। लोग अस्पताल में भर्ती अपने घर के बुजुर्गों से मिल नहीं सकते थे, कई हमारे साथी जो इस बीमारी की चपेट में आकर हमसे दूर चले गए, ऐसे लोगों का हम अंतिम संस्कार भी नहीं कर सके।

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