हालात

इतनी बदइंतजामी कि क्वारंटाइन सेंटर के नाम से रूह कांप जाए, कहीं ये इंतजाम ही संक्रमण फैलने का कारण न बन जाएं

बीते दिनों उत्तर प्रदेश के आगरा के एक क्वारंटाइन सेंटर में लोगों को दूर से फेंककर पानी और बिस्किट के पैकेट देने का वीडियो वायरल हुआ तो वहां की हालत उजागर हुई। ज्यादातर सेंटरों का यही हाल है, जिससे डर है कि कहीं ये सेंटर ही संक्रमण फैलने का कारण न बन जाएं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

कोरोना से बीमार होने का जितना डर है, यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में लोगों को उससे ज्यादा भय इस बात से है कि कहीं आइसोलशन या क्वारंटाइन सेंटर में भर्ती न होना पड़े। सरकारें गलतियों और कमियों से सीखती हैं, यहां तो हो यह रहा है कि इन सेंटरों में दिनोंदिन व्यवस्थाएं बद से बदतर हो रही हैं। यह बीमारी ऐसी है जिसमें निकट या दूर के रिश्तेदारों को दूर रहने को कहा जा रहा है। बीमारी को फैलने से रोकने के लिए यह जरूरी भी है, लेकेिन ऐसे में, इन सेंटरों में व्यवस्थाएं और पुख्ता की जानी चाहिए थीं। हो इसके उलट रहा है।

आगरा का सेंटर ऐसा उदाहरण है जो हांडी के एक चावल की तरह है। उनका नाम ज्योति वर्मा है। आगरा की रहने वाली हैं। ये वही ज्योति हैं जिन्होंने आगरा के एक क्वारंटाइन सेंटर के कैंपस के बंद दरवाजे के बाहर से फेंककर पानी के बोतल वगैरह देते व्यक्ति का वीडियो बनाया था। यह वीडियो देखते-देखते वायरल हो गया और फिर प्रशासन सक्रिय हुआ और यह दावा किया गया कि सब कुछ दुरुस्त कर दिया गया है।

कथित तौर पर दुरुस्त होने से पहले इस सेंटर की स्थिति क्या थी और दुरुस्त हो जाने के बाद क्या है, इस पर गौर करने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाकी क्वारंटाइन सेंटरों की स्थिति कैसी होगी। ज्योति वर्मा ने 27 अप्रैल को दोपहर नवजीवन से बातचीत में वहां की स्थितियों के बारे में जानकारी दी।

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क्या है पूरा मामला

ज्योति वर्मा के पिता श्रीकृष्ण वर्मा को हल्का बुखार और सर्दी-जुकाम होने पर घरवालों ने जिला अस्पताल में ले जाकर कोरोना का टेस्ट कराया। उनसे कहा गया कि टेस्ट निगेटिव है इसलिए उन्हें अपने फैमिली डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। फिर, वे लौट आए। 25 अप्रैल को सुबह पुलिस ने श्रीकृष्ण वर्मा को जांच के लिए एस.एन मेडिकल अस्पताल ले जाने के नाम पर शारदा ग्रुप ऑफ इंसटीट्यूशंस में ले जाकर रख दिया गया। फिर परिवार के बाकी लोगों को भी ऐसे ही टेस्ट कराने के नाम पर ले जाया गया और शारदा इंस्टीट्यूशंस में रख दिया गया।लोगों ने वहां तैनात पुलिसवालों से पूछा तो बताया गया कि दो घंटे में उनका टेस्ट लेकर उन्हें जाने दिया जाएगा। लेकेिन ऐसा न होना था और न हुआ।

उठ रहे तमाम सवाल

अब इससे कई तरह के सवाल उठते हैं। पहला, क्या किसी व्यक्ति को क्वारंटाइन में ले जाना हो तो उसे बताना नहीं चाहिए क्या? न तो ज्योति या उसके परिवार वालों को क्वारंटाइन के बारे में बताया गया और न ही शारदा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस सेंटर पर रह रहे और लोगों को। प्रशासन ने जिन भी लोगों को क्वारंटाइन करने का फैसला किया होगा, उनके पास उसके वाजिब कारण होंगे। लेकेिन क्या उसे बता नहीं देना चाहिए था? उन्हें अंधरे में रखकर वहां ले जाकर क्वारंटाइन करने की क्या जरूरत थी? ज्योति कहती हैं, “ सही या गलत ये तो बाद की बात है। अगर उन्हें हमें क्वारंटाइन ही करना था, तो जानकारी तो देनी चाहिए थी। वे बहाने बनाकर हम पूरे परिवार वालों को यहां ले आए।”

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दूसरा, किसी जगह को अगर क्वारंटाइन सेंटर बनाना है तो वहां कैसी सुविधाएं होनी चाहिए, इसका कोई पैमाना है क्या? शारदा इंस्टीट्यूशंस में पांच फ्लोर हैं और हर फ्लोर पर 25-30 लोगों को रखा गया है। हर फ्लोर पर एक वॉशरूम। वॉशरूम का बेसिन इतना गंदा कि हाथ भी न धोया जाए। बाहर एक नलका, फारिग होकर लोग उसी से हाथ धोते हैं। पीने के पानी का कोई इंतजाम नहीं, उसी नलके से आ रहे पानी को पीना भी है। लोगों ने पीने के पानी के लिए पूछा तो कहा गया कि इस बाहर वाल नलके को आरओ से जोड़ दिया गया है। वाकई जुड़ा है या नहीं, पता नहीं।

वीडियो वायरल होने के बाद 26 अप्रैल की शाम को एडीएम आए और उन्होंने तीन हैंड सैनेटाइजर दिए। कहा कि और भिजवा देंगे, लेकेिन नहीं मिला। पांच फ्लोर, हर फ्लोर पर 25-30 लोग और उन पर तीन हैंड सैनेटाइजर। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इससे केितनों का और कब तक काम चल सकता है। साफ-सफाई की कोई व्यवस्था नहीं। वॉशरूम में इतनी गंदगी है कि कुछ महिलाओं को इन्फेक्शन जैसा महसूस हो रहा है। कोविड-19 के संक्रमण से बचने के लिए साफ-सफाई जरूरी है और लगातार इस बात की जागरुकता फैलाई जा रही है कि लोग अपना ध्यान रखें, बार-बार हाथ धोएं, जहां सुविधा हो सैनेटाइजर का इस्तेमाल करें। लकेिन इस सेंटर पर सफाई की बुनियादी सुविधा का भी ख्याल नहीं रखा जा रहा। एक-दूसर से उचित दूरी बनाकर रखने की ओर किसी का कोई ध्यान नहीं।

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25 तारीख को दोपहर में तमाम लोगों को सेंटर पर लाया गया था, लेकेिन पहला खाना अगले दिन शाम को मिला। वो भी, फेंक कर दे रहे थे और वो भी सिर्फ पानी और बिस्किट। वीडियो वायरल होने के बाद अब पैकेट में खाना दिया जा रहा है। लेकेिन पानी की सप्लाई का हाल देखिए, 27 तारीख को सुबह 9 बजे तक वॉशरूम में पानी नहीं आ रहा था। इस सेंटर पर ज्यादातर लोग आने के बाद से नहा नहीं सके हैं। उन्हें यह कहकर लाया गया था कि उनका टेस्ट होगा, लेकेिन वो नहीं होने पर लोग बार-बार पूछते रहे जिसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।

मिली जानकारी के मुताबिक वीडियो के वायरल होने के बाद जब एडीएम न सेंटर का दौरा किया तो उन्होंन लोगों को टेस्ट कराने का आश्वासन दिया और तब जाकर 26 तारीख को रात 10 बजे के आसपास तमाम लोगों की थर्मल स्कैनिंग हुई और 27 तारीख को तड़के 4-5 बजे जांच के लिए सैंपल ले जाया गया। प्रशासन की ओर से लोगों को कहा गया है कि जिनकी जांच रिपोर्ट निगेटिव आएगी, उन्हें होम क्वारंटाइन कर दिया जाएगा। यहां सवाल यह उठता है कि अगर उन्हें टेस्ट कराने के लिए ही ले जाया गया था, तो इतनी देरी क्यों हुई। और अगर देरी होनी ही थी, तो लोगों की न्यूनतम सुविधाओं का ध्यान क्यों नहीं रखा गया?

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ज्योति कहती हैं, “बाकी सुविधाओं का जो हाल है, वो तो है ही, लकेिन मुझे सबसे ज्यादा चिंता अपने पिता को लेकर हो रही है। उन्हें आइसोलेशन बिल्डिंग में रखा गया है। उनके कमरे में एक और रोगी है। वह एस.एन. अस्पताल का कर्मचारी है। अगर उसे कोरोना हुआ और उससे मेरेे पिता को संक्रमण हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा। मैं चाहती हूं कि मुख्यमंत्रीजी को पता चले केि यहां की व्यवस्था कैसी है और ये लोग कैसा व्यवहार करते हैं।”

यहां एक और बात है, जो चिंताजनक है। सरकार और प्रशासन की ओर से लोगों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है कि कोराना के लक्षण होने पर अस्पताल जाएं, जांच कराएं और रिपोर्ट आने तक खासतौर पर खुद को दूसरों से अलग रखें। लेकिन अगर इस तरह की कहानियां सामने आएंगी तो इससे वे लोग सामने आने से हिचकेंगे जिनमें कोरोना का कोई लक्षण उभर रहा हो। जाहिर है, इसका नतीजा यह होगा कि इस संक्रमण को रोकने के प्रयास विफल हो जाएंगे।

दूसरी अहम बात.यह है कि आखिर सरकारी आदशों को नीचे तक पहुंचने में कहां क्या कमी रह जाती है कि निहायत जरूरी उपाय भी नहीं हो पाते। बहरहाल, .यही कह सकते हैं कि अगर इस क्वारंटाइन सेंटर का जो हाल है, वह अपवाद है तो कोई बात नहीं, लकेिन अगर ऐसा ही बाकी या अधिकतर सेंटरों पर हो रहा है तो कहीं संक्रमण को रोकने की जगह ये सेंटर इसे बढ़ाने का कारण न बन जाएं।

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