हालात

फसलों की एमएसपी पर कमेटी बनाने को लेकर गंभीर नहीं है मोदी सरकार, किसान नेताओं ने सरकार की नीयत पर उठाए सवाल

किसान नेताओं का कहना है कि, “जब तक एमएसपी पर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने की अनिवार्यता नहीं होती तब तक इस मुद्दे पर बात करने का कोई औचित्य नहीं है।”

File Photo : Getty Images
File Photo : Getty Images 

आखिर संयुक्त किसान मोर्चा ने मोदी सरकार के उस प्रस्ताव को क्यों खारिज कर दिया जिसमें उसे एमएसपी पर बनने वाली कमेटी में शामिल किया जाना था। करीब 40 किसान संगठनों का संयुक्त संगठन किसान मोर्चा द्वारा साल भर से अधिक समय तक किए गए आंदोलन में एक मांग एमएसपी की गारंटी भी थी। मोर्चा के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक इस सवाल का एक ही जवाब है और वह है सरकार की बेईमानी और गुमराह करने की कोशिश।

नेशनल हेरल्ड ने इस मुद्दे को समझने के लिए कई किसान नेताओं से बात की, कि आखिर किसान नेताओं ने सरकार का प्रस्ताव क्यों नहीं माना? ऑल इंडिया किसान संगठन के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने कहा कि मुद्दा ईमानदारी या नीयत का है। उन्होंने कहा, “सरकार की असली नीयत एमएसपी पर चर्चा या इस पर कमेटी बनाना है, बल्कि सरकार का इरादा इस बहाने लोगों को गुमराह करना है कि देखो मोदी सरकार किसानों का कितना ध्यान रखती है।”

Published: undefined

उन्होंने आगे कहा, “क्या कोई कमेटी फोन पर बनाई जा सकती है या फिर एमएसपी जैसे किसी गंभीर मसले पर सिर्फ फोन पर चर्चा हो सकती है? सरकार दरअसल अपने ही वादों पर महीनों से दम साधे बैठी है और अचानक उसे ध्यान आया कि चलो एमएसपी पर चर्चा करते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है?” मोल्लाह ने कहा कि एमएसपी गंभीर विषय है और इस पर गंभीरात से ही चर्चा होनी चाहिए।

ध्यान रहे कि अभी 22 मार्च को केंद्रीय कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने भारतीय किसान यूनियन नेता युद्धवीर सिंह को फोन कर कहा कि, ‘संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से दो तीन नाम भेज दो जिन्हें सरकार की तरफ से एमएसपी पर बनने वाली कमेटी में शामिल किया जाना है।’

इस फोन के जवाब में संयुक्त किसान मोर्चा ने कृषि सचिव को 24 मार्च को ईमेल भेजकर कमेटी के बारे में विस्तृत जानकारी की मांग की। इसमें कमेटी के अधिकार, इसकी प्रक्रिया आदि के विषय में पूछा। लेकिन सरकार की तरफ से इसका कोई जवाब नहीं आया।

Published: undefined

इसके बाद 30 मार्च को मोर्चा ने फिर सरकार को एक पत्र भेजा, लेकिन उसका भी अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। आखिरकार संयुक्त किसान मोर्चा ने पहली अप्रैल को सार्वजनिक बयान जारी किया। बयान में कहा गया कि, “संयुक्त किसान मोर्चा का मत है कि एमएसपी पर बनने वाली कमेटी पहले से तय स्पष्ट शर्तो पर आधारित होनी चाहिए और इस कमेटी के अधिकार आदि पर स्पष्टता होनी चाहिए। जब तक हमें इस कमेटी की प्रकृति और एजेंडा के बारे में सबकुछ ज्ञात नहीं होगा, हमारा ऐसी किसी भी कमेटी में हिस्सा लेना उचित नहीं होगा।”

इस मुद्दे पर भारतीय किसान यूनियन के एक नेता ने मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा। नेशनल हेरल्ड के साथ फोन पर बातचीत में उहोंने कहा कि, “आदर्श चुनाव संहिता के नाम पर सरकार महीनों तक इस मुद्दे पर हाथ पर हाथ धरे बैठी रही, और इसने अपना वादा पूरा नहीं किया और प्रचार के दौरान किसानों को गुमराह कर रिझाने की कोशिश की। और अब वे चाहते हैं कि हम कमेटी का हिस्सा सिर्फ फोन पर हुई बातचीत के आधार पर हो जाएं।”

Published: undefined

याद दिलादें कि 9 दिसंबर 2021 को केंद्र सरकार ने किसानों को लिखित में आश्वासन दिया था कि एमएसपी पर एक कमेटी बनाई जाएगी। इसके बाद ही किसानों ने साल भर से अधिक समय से चल रहे अपने आंदोलन को वापस लिया था। बीकेयू नेता ने कहा कि, “आदर्श चुनाव संहिता सरकार को पहले से घोषित किसी भी फैसले को लागू करने से नहीं रोकती है।”

दरअसल नीयत के अलावा इस मुद्दे पर सरकार का गैर संजीदा रवैया भी किसानों को अखर रहा है। किसानों का कहना है कि एमएसपी जैसे मुद्दे पर इस तरह का रवैया सरकार के इरादों को जाहिर कर देता है। किसानों के एक धड़े का मानना है कि यूपी में बीजेपी और पंजाब में आप की जीत के कारण उनके असली मुद्दे पीछे छूट गए हैं। पंजाब के एक किसान नेता ने कहा कि, “जब तक कमेटी की सिफारिशों को लागू करने की अनिवार्यता नहीं होती तब तक इस मुद्दे पर बात करने का कोई औचित्य नहीं है।”

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined