नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में चुनाव से ठीक पहले मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण करने के फैसले को मंगलवार को संविधान विरोधी करार दिया। अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘1.50 करोड़ से अधिक बिहारी अपने राज्य से बाहर काम कर रहे हैं। वे नामांकन के लिए फॉर्म कैसे भरेंगे? वे वोट कैसे देंगे? वे अपने मृतक माता-पिता के प्रमाणपत्र कहां से लाएंगे?’’
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जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री कुलगाम में पत्रकारों से बात कर रहे थे, जहां वह पार्टी के एक कार्यक्रम में भाग लेने गए थे। उन्होंने कहा, ‘‘जब बी आर आंबेडकर ने संविधान बनाया था, तब सभी को वोट देने का अधिकार था। फिर 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों को वोट देने का अधिकार देने के लिए इसमें संशोधन किया गया। आज, वे (निर्वाचन आयोग) एक नया कानून लेकर आए हैं जो संविधान के खिलाफ है। वे अपने आका को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं। अपने आका को खुश करने के लिए वे सब कुछ त्यागने को तैयार हैं।’’
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अब्दुल्ला ने कहा कि इन ‘‘षडयंत्रों’’ के प्रति जागने की जरूरत है क्योंकि यह भारत के लोगों को स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘जागना होगा। अफसोस के साथ मैं कहता हूं कि यह भारत के लोगों को स्वीकार्य नहीं है। अगर वे इसे आगे बढ़ाते हैं, तो संविधान को बचाने के लिए आंदोलन होगा और यह पहले के आंदोलन से भी बड़ा होगा। अल्लाह उन्हें संविधान की रक्षा करने की सद्बुद्धि दे।’’
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गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग ने 24 जून को बिहार में मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण करने के निर्देश जारी किए, जिसका उद्देश्य अपात्र नामों को हटाना और केवल पात्र नागरिकों के नाम ही मतदाता सूची में शामिल करना है। बिहार में ऐसा अंतिम पुनरीक्षण 2003 में किया गया था। हालांकि, चुनाव से महज कुछ दिन पहले और वो भी केवल 25 दिन में इस प्रक्रिया को पूरा कर लेने के आयोग के दावे पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्षी दलों ने आयोग के कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिस पर 10 जुलाई को सुनवाई होगी।
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