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कोरोना से मरने वालों पर दारुल उलूम का फतवा, मृतक शरीर अछूत नहीं, पूरे रिवाज से कब्रिस्तान में करें दफन

कोरोना वायरस से मरने वालों के कफन-दफन पर दारुल उलूम फिरंगी महली द्वारा एक फतवा जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि कोरोनो वायरस से मरने वालों को पूरे धार्मिक रीति-रिवाज के साथ सम्मान से सुपुर्द-ए-खाक करना चाहिए और उनके शरीर को अछूत नहीं माना जाना चाहिए।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

कोरोना वायरस से मरने वालों के कफन-दफन को लेकर मुस्लिम समाज में फैली गलतफहमियों को दूर करने के लिए लखनऊ स्थित दारुल उलूम फिरंगी महल द्वारा एक फतवा जारी किया गया है। फतवे में साफ कहा गया है कि कोरोनो से मरने वालों को पूरे धार्मिक रीति-रिवाज से सम्मान के साथ सुपुर्द-ए-खाक करना चाहिए और उनके शरीर को अछूत नहीं माना जाना चाहिए।

दरअसल बुधवार को लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में एक 64 वर्षीय शख्स की कोरोना से मौत हो गई थी, जिसे दफनाने से ऐशबाग कब्रिस्तान में कुछ लोगों ने रोक दिया था। गुरुवार को पुलिस को उसे कहीं और दफनाना पड़ा। लखनऊ के अतिरिक्त डीसीपी बताया कि स्थानीय लोगों ने मृतक को दफनाने का विरोध किया था, क्योंकि उनका मानना है कि इससे यह वायरस फैल सकता है।

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इसी को लेकर लखनऊ के रहने वाले सईद एजाज अहमद ने कोरोनो से मरने वाले के अंतिम संस्कार पर दारुल उलूम फिरंगी महल से फतवा मांगा था। उन्होंने कफन-दफन, नमाज ए जनाजा और सार्वजनिक कब्रिस्तानों में दफनाने से पहले किए जाने वाले अंतिम स्नान के बारे में जवाब मांगा था। इसी पर मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली, मौलाना नसरुल्लाह, मौलाना नईम रहमान सिद्दीकी और मौलाना मोहम्मद मुश्ताक की ओर से सामूहिक रूप से फतवा दिया गया।

इस फतवे में कहा गया कि दिवंगत को अंतिम स्नान दिया जाना चाहिए, लेकिन इसका तरीका अलग होना चाहिए। इसके लिए केवल बॉडी बैग पर पानी डाला जाना चाहिए, जिसके अंदर शरीर को रखा जाता है। बॉडी बैग खोलने या अलग कफन का इस्तेमाल करने की कोई जरूरत नहीं है। फतवे में साफ कहा गया है कि बॉडी बैग को ही कफन माना जाना चाहिए।

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इसी के साथ फतवे में कहा गया है कि कोरोना वायरस से बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए जनाजे की नमाज आयोजित की जानी चाहिए और शव को सार्वजनिक कब्रिस्तान में ही दफनाया जा सकता है। फतवे में लखनऊ में बुधवार को कोरोना मृतक के कफन-दफन के बहिष्कार की भी निंदा की गई और कहा गया कि यह केवल शरीयत के खिलाफ ही नहीं हा, बल्कि सामाजिक शिष्टाचार और मानवीय व्यवहार के खिलाफ भी है।

एक वीडियो संदेश के माध्यम से पत्रकारों से बात करते हुए मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने 24 मार्च के अपने दिशानिर्देशों में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि एक कोरोनो वायरस शरीर अछूत नहीं है और उसका पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए।

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गौरतलब है कि पूरी दुनिया में इस समय कहर बरपा रहे कोरोना वायरस से भारत में मरने वालों के मृत शरीर के साथ अछूत जैसा व्यवहार करने की खबरें हर दिन कहीं न कहीं से आ रही हैं। कहीं परिवार वालों द्वारा कोरोना पीड़ित की लाश का अंतिम संस्कार से इनकार करने तो कहीं लोगों द्वारा किसी कब्रिस्तान में कोरोना से मरे शख्स को दफनाने से रोकने के मामले आए दिन सामने आ रहे हैं।

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