प्रिय प्रधानमंत्री,
भारत और पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से बीते एक साल से जूझ रही है। इस दौरान बहुत से लोगों ने अपने उन बच्चों को एक साल से नहीं देखा है जो दूसरे शहरों में रह रहे हैं। दादा-दादी ने अपने नाती-पोतों को नहीं देखा है। शिक्षकों ने बच्चों को कक्षा में नहीं देखा है। बहुत से लोगों की रोजी-रोटी छिन चुकी है और लाखों लोग गरीबी के गर्त में घिरे गए हैं। महामारी की दूसरी लहर में लोग अचंभित हैं कि आखिर कब उनकी जिंदगी सामान्य तौर पर पटरी पर आएगी।
बहुत सी चीजें हैं जो महामारी से लड़ने के लिए की जा सकती हैं, लेकिन सबसे बड़ा काम होगा वैक्सीनेशन यानी टीकाकरण कार्यक्रम में तेजी लाना। इस सिलसिले में मैं कुछ सुझाव देना चाहता हूं। मैं इन्हें आपके विचारार्थ भेज रहा हूं ताकि आप इसे रचनात्मक सहयोग मानते हुए कदम उठाएंगे, क्योंकि मैं सहयोग में सदा विश्वास करता रहा हूं।
सबसे पहले, सरकार इस बात को सामने रखे कि वैक्सीन की खुराक के विभिन्न वैक्सीन निर्माताओं को अगले 6 महीने के लिए क्या ऑर्डर दिए गए हैं और उन्होंने उसे कितना स्वीकार किया है। अगर हम इस समयसीमा में एक निर्धारित संख्या में लोगों को वैक्सीन देना का लक्ष्य रखते हैं तो हमें समय रहते वैक्सीन का ऑर्डर देना होगा ताकि वैक्सीन निर्माता समयबद्ध उपलब्धता और आपूर्ति सुनिश्चित कर सकें।
दूसरी बात, सरकार इस बात को साफ करे कि जो भी वैक्सीन की आपूर्ति होगी, उसे देश भर के सभी राज्यों में पारदर्शी तरीके से किस तरह राज्यों तक पहुंचाया जाएगा। केंद्र सरकार इस आपूर्ति का 10 फीसदी अपने पास रख सकती हैं ताकि आपात स्थिति में वैक्सीन उपलब्ध कराई जा सके। लेकिन राज्यों को इस बात के स्पष्ट संकेत मिलें कि उन्हें कितनी और कब वैक्सीन उपलब्ध होगी ताकि वे टीकाकरण की योजना बना सकें।
तीसरी बात, राज्यों को इस मामले में कुछ रियायत देनी चाहिए कि वे अपने हिसाब से फ्रंटलाइन वर्कर्स की श्रेणी तय कर सकें, भले ही उनकी आयु 45 वर्ष से कम ही क्यों न हो। मसलन, कुछ राज्य अपने यहां स्कूली शिक्षकों, बस, थ्री व्हीलर और टैक्सी ड्राइवरों, म्युनिसिपल और पंचायत कर्मचारियों और संभवत: अदालत दाने वाले वकीलों को फ्रंटलाइन वर्कर्स की श्रेणी में डालना चाहें। इन सभी लोगों को वैक्सीन दी जा सके, भले ही उनकी उम्र 45 वर्ष से कम ही क्यों न हो।
चौथी बात, बीते एक दशक में वैक्सीन उत्पादन में भारत दुनिया भर में शीर्ष निर्माता के तौर पर उभरा है, और इसका श्रेय सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियों और इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी प्रोटेक्शन को जाता है। वैक्सीन बनाने की क्षमता निश्तिक रूप से निजी क्षेत्र के पास है। देश के सामने आई इस जन आपदा के समय में सरकार को सक्रिय रूप से वैक्सीन निर्माताओं का साथ देना चाहिए ताकि वे अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा सकें, इसके लिए सरकार की तरफ से उन्हें रियायतें और फंड उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इसके साथ ही मैं समझता हूं कि इस समय लाइसेंस की अनिवार्यता पर भी पुनर्विचार करना चाहिए ताकि विभिन्न वैक्सीन निर्माता एक लाइसेंस के तहत वैक्सीन का उत्पादन कर सकें। मुझे याद आता है कि ऐसा पहले भी किया गया था जब एचआईवी/एड्स से लड़ने के लिए दवा निर्माण की बात आई थी। कोविड-19 के संबंध में मैंने पढ़ा है कि इजरायल ने वैक्सीन के सिलसिले में लाइसेंस के प्रावधान को अपने यहां लागू कर दिया है और ऐसे में भारत में इसे जल्द से जल्द करने की जरूरत है।
पांचवी बात, चूंकि घरेली आपूर्ति सीमित हैं, ऐसे में यूरोपीय मेडिकल एजेंसी या यूएसफएडीसे द्वारा स्वीकृत किसी भी वैक्सीन को भारत में आयात कर उसका ट्रायल किया जा सकता है, ताकि वैक्सीन की उपलब्धता का अंतर कम किया जा सके। हम एक असाधारण आपदा का सामना कर रहे हैं, और मैं समझता हूं कि विशेषज्ञ भी इस बात से सहमत होंगे कि इस तरह की रियायत आपात स्थिति में न्यायोचित होगी। इन वैक्सीन को लेने वाले सभी लोगों को इस बात की साफ जानकादी दी जानी चाहिए कि इस वैक्सीन को विदेशों में विभिन्न प्राधिकरणों द्वारा स्वीकृति के आधार पर उपलब्ध कराया गया है।
कोविड-19 से लड़ाई में हमारा ध्यान वैक्सीन को तेज करने पर सबसे ज्यादा होना चाहिए। हम कितने लोगों को वैक्सीन दे पा रहे हैं इसके आंकड़ों से हमें बहुत उत्साहित नहीं होना चाहिए बल्कि फोकस इस बात पर होना चाहिए कि कितने प्रतिशत आबादी का टीकाकरण हुआ है। वर्तमान में देश की आबादी के एक बहुत छोटे हिस्सा का ही वैक्सीनेशन हुआ है। मुझे विश्वास है कि सही नीतियों को अपनाकर हम इसमें और तेजी ला सकते हैं।
उम्मीद है कि सरकार इन सुझावों को मानते हुए इन पर त्वरित कार्यवाही करेगी।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined