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गांधी जयंती विशेष: जब खादी के डायरी-कैलेंडर में पीएम मोदी के चित्र को लेकर हुआ था विवाद...

5 जनवरी 2018 को इसी विवाद के बीच हरियाणा की बीजेपी सरकार के अनिल विज तो यहां तक बोल पड़े कि अब करेंसी नोटों से भी गांधी की फोटो हटाने का वक्त आ चुका है। बकौल उनके आज की तारीख में मोदी तो गांधी से भी बड़े ब्रांड बन चुके है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया खादी के डायरी-कैलेंडर में गांधी की जगह छपा था पीएम मोदी का चित्र

गांधी डायरी-कैलेंडर को लेकर पिछले साल खादी की पूरी बिरादरी ही सकते में आ गई थी, जब उन्होंने नया साल आते ही पाया कि खादी डायरी-कैलेंडर पर जहां हर साल चरखे से ऊन कातते गांधी जी की तस्वीर दिखाई पड़ती है, उसकी जगह एक दिन अचानक पीएम मोदी की तस्वीर देखने को मिली। लोग भूले नहीं हैं कि तब देश-विदेश के मीडिया में इसे लेकर खूब किरकिरी हुई थी।

समाचार पत्रों ने यहां तक टिप्पणी करने में कोई कोताही नहीं की, "मोदी ने खादी कैलेंडर, डायरी से गांधी को बाहर कर दिया।" जाहिर है देश-विदेश में लाखों गांधीवादियों के लिए यह घटनाक्रम एक तरह से डरावने सपने जैसा था। मोदी सरकार की सबसे ज्यादा किरकिरी सोशल मीडिया पर हुई। इस घटनाक्रम का मजाक इस कदर बना कि 1930 में गांधी के नेतृत्व में चले ऐतिहासिक दांडी मार्च में गांधी की तस्वीर की जगह फोटोशॉप के जरिए पीएम मोदी की तस्वीर लगा दी गई जो खूब वायरल भी हुई।

चरखे से सूत कातते हुए गांधी जी की यह बहुत पुरानी फोटो 9 जून 1925 की है जो उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर के कताई मिल में ली गई थी। कई पीढ़ियां इस चित्र को देखते हुए जवान हुई हैं। बीजेपी और उससे जुड़े कट्टरपंथी संगठन हिंदू-मुस्लिम एकता की महात्मा गांधी की विचारधारा का खुला विरोध करते हैं। उन्हें अतीत से ही इस बात का बखूबी अहसास रहा कि गांधी की सोच को भारतवासियों का भारी समर्थन है और उनकी धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा संघ की हिंदुत्व के कट्टरवाद के एजेंडे के प्रचार-प्रसार में सबसे बड़ा रोड़ा है। करीब 70 बरस पूर्व महात्मा गांधी की हत्या उनके खिलाफ चलाए गए इसी घृणित अभियान का हिस्सा रही है।

खादी चूंकि स्वदेशी स्वावलंबन और राष्ट्रीय नवजागरण में महात्मा गांधी की विचारधारा का अहम हिस्सा रहा है, इसलिए यह संघ परिवार के निशाने पर रहा। बीबीसी की एक रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि हाथ से बने खादी के भारतीय कपड़े जब 1920 में प्रचलन में आए तो यह एक किस्म की विचारधारा को प्रतिबिंबित करती थी। ज्ञात रहे कि आज भी खादी सियासी जमात में खूब प्रचलित है। सांसद, विधायक और समाज के दूसरे क्षेत्रों में काम करने वाले लोग खादी के कपड़े पहन रहे हैं। हालांकि इस बात पर सवाल पूछे जाते हैं कि खादी के कपड़ों को आधुनिक फैशन बाजार का हिस्सा बनाने की सरकारी होड़ किस सीमा तक सफल हो पाएगी।

स्वतंत्र भारत में कुछ ही मौकों पर ऐसा हुआ होगा जब गांधी जी कि तस्वीर की जगह कुछ बदलाव करते हुए कामकाजी महिलाओं की कुछ तस्वीरें लगा दी गई हों, लेकिन ऐसा पहली बार देखने को मिला जब खादी के सालाना डायरी कैलेंडर में गांधी की चिरपरिचित तस्वीर और उनकी भावभंगिमा की जगह पीएम मोदी के चित्र को चस्पां कर दिया गया।

फर्क महज इतना था कि गांधी जी की फोटो एक पुराने चरखे से ऊन कातते टेबल कैलेंडर-डायरी की दिख रही है, जबकि मोदी अपने हस्ताक्षरों के साथ एकदम ब्रांडेड कुर्ता-पायजामा और रंगीली जवाहर जैकेट पहने आधुनिक चरखे के साथ पूरे स्टाइल के साथ नमूदार हैं।

तब केवीआईसी के चेयरमैन विनय कुमार सक्सेना ने खुद विवाद में हस्तक्षेप करते हुए पल्ला झाड़ दिया था, “इस बार कुछ भी अपवाद नहीं है। पहले भी ऐसा हो चुका है जब गांधी जी के चित्र की जगह खाली छोड़ी गई।” उन्होंने गांधी जी की जगह प्रधानमंत्री मोदी का चरखा कातते हुए चित्र के इस्तेमाल को सही ठहराते हुए कहा कि उनके प्रयासों की वजह से ही 2016 में खादी की बिक्री में 34 प्रतिशत का इजाफा हुआ।

5 जनवरी 2018 को इसी विवाद के बीच हरियाणा की बीजेपी सरकार के अनिल विज तो यहां तक बोल पड़े कि अब करेंसी नोटों से भी गांधी की फोटो हटाने का वक्त आ चुका है। बकौल उनके आज की तारीख में मोदी तो गांधी से भी बड़े ब्रांड बन चुके है। विज का बयान खादी की डायरी- कैलेंडर में गांधी जी के चरखे वाले चित्र की जगह पीएम मोदी का चित्र लगने के विवाद के तूल पकड़ने के बाद आया। देश-विदेश में आलोचकों ने खुली आशंका प्रकट की है कि इस तरह की कोशिशें गांधी के चित्रों और उनके नाम से जुड़ी संस्थाओं से उनकी पहचान मिटाने की शुरुआत है। केवीआईसी के कर्मचारियों तक में जबर्दस्त प्रतिक्रिया देखने को मिली। कर्मचारियों ने तो सरकार की सद्बुद्धि के लिए मुंह पर काली पट्टी बांधकर विरोध मार्च तक किया।

Published: 02 Oct 2018, 12:17 AM IST

गांधी के खादी कैलेंडर को लेकर विवाद जब इस साल जनवरी में तूल पकड़ता ही गया तो बीजेपी को मजबूरन बयान जारी करना पड़ा कि राष्ट्रपिता की जगह कौन ले सकता है। हालांकि राहुल गांधी से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक चरखे के साथ मोदी के चित्र पर जमकर बरसे। राहुल गांधी ने ट्विटर पर यह भी टिप्पणी कर डाली कि यह "मंगलायन इफेक्ट" है।

तत्कालीन सूक्ष्म एवं लघु उद्योग मंत्री कलराज मिश्र को भी यह कहते हुए सरकार के बचाव में उतरना पड़ा कि गांधी जी का अपना स्थान है, उनकी जगह कोई नहीं ले सकता।

Published: 02 Oct 2018, 12:17 AM IST

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Published: 02 Oct 2018, 12:17 AM IST