नोटबंदी भारत जैसे देश के लिए सही फैसला नहीं था। नोटबंदी की तैयारियों और इसके प्रभाव से निपटने में जो समय सरकार ने बरबाद किया उसका इस्तेमाल जीएसटी की तैयारियों में करना चाहिए उसके बाद ही इस टैक्स को लागू किया जाना चाहिए था। यह कहना था अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की नई चीफ इकोनॉमिस्ट गीता गोपीनाथ का। गीता गोपीनाथ ने यह बात पिछले साल दिसंबर में एक इंटरव्यू में कही थी। यह इंटरव्यू दिसंबर 2017 में पहली बार प्रकाशित हुआ था जिसे बिज़नेस स्टैंडर्ड अखबार ने फिर से प्रकाशित किया है। गीता गोपीनाथ को सोमवार (पहली अक्टूबर) को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का चीफ इकोनॉमिस्ट नियुक्त किया गया है। इससे पहले गीता गोपीनाथ हार्वर्ड में इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर थीं।
इस इंटरव्यू में जब गीता गोपीनाथ से पूछा गया था कि क्या नोटबंदी सही फैसला था? उन्होंने कहा था कि, “नहीं, कोई भी अर्थशास्त्री इस फैसले को सही नहीं बता सकता। यह बिल्कुल सही फैसला नहीं था। यह ऐसा फैसला था जिसे भारत जैसे देश में तो बिल्कुल भी नहीं लागू करना चाहिए था जहां विकास की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।” उन्होंने कहा था कि “नोटबंदी लागू करने में बिना नकदी के लेनदेन का तर्क सही नहीं था क्योंकि भारत में तो नकदी का कुल सर्कुलेशन ही जीडीपी का 10 फीसदी है, जबकि जापान जैसे देश में नकदी का सर्कुलेशन 60 फीसदी है। और यह कोई कालाधन नहीं है।“
जीएसटी लागू किए जाने पर गीता गोपीनाथ ने कहा था कि, “जीएसटी एक अच्छा आर्थिक सुधार है, लेकिन इसे लागू करने में जो कोताहियां बरती गईं उससे पूरी अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई।” उन्होंने कहा था कि, “नोटबंदी लागू करने, उसकी तैयारियों और उसके प्रभाव से निपटने में सरकार ने जो ऊर्जा और समय लगाया, उतना समय अगर जीएसटी की तैयारियों में लगाया जाता तो इसके अच्छे नतीजे मिल सकते थे।”
आर्थिक मोर्चे पर सरकार के काम में पारदर्शिता की कमी के सवाल पर गीता गोपीनाथ का जवाब था कि, “नीतियों और फैसलों की पारदर्शिता के लिए जरूरी है कि आपके पास सही आंकड़ें हों। किसी भी देश के लिए यह खराब स्थिति होती है जब हर कोई आपके जीडीपी आंकड़ों को संदेह की नजर से देखता है।”
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उन्होंने कहा था कि, “मैं एक पेपर पर काम कर रही हूं जिससे यह पता लगाया जा सके कि नोटबंदी का भारत की अर्थव्यवस्था पर कैसा प्रभाव पड़ा? लेकिन जो आंकड़े उपलब्ध हैं वह उलझाने वाले हैं।” उन्होंने बताया कि नोटबंदी से भारत के अलग-अलग राज्य अलग-अलग तरीके से प्रभावित हुए थे, लेकिन सरकार के पास इस प्रभाव को आंकने के लिए आंकड़े ही नहीं हैं।
डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत के बारे में उन्होंने कहा था कि, “भारत में नीतियां बनाने वालों ने समय से इसकी चिंता नहीं की। पूरी दुनिया में होता यह है कि केंद्रीय बैंक इस पर नजर रखता है, क्योंकि आप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसी मुद्रा में व्यापार करते हैं, लेकिन भारत में ऐसी व्यवस्था नहीं है।”
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