लद्दाख का गलवान घाटी, जहां एलएसी पर भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा है, उसका संबंध यहां के गलवान परिवार के साथ गहरा और भावनात्मक है। इस घाटी का नाम एक स्थानीय एक्सप्लोरर गुलाम रसूल गलवान के नाम पर रखा गया था। एलएसी पर जारी तनाव के बारे में बात करते हुए उनके पोते मोहम्मद अमीन गलवान ने कहा कि वह उन जवानों को सलाम करते हैं, जिन्होंने चीनी सेना के साथ लड़ते हुए अपना बलिदान दिया। उन्होंने कहा, "युद्ध विनाश लाता है, आशा है कि एलएसी पर विवाद शांति से हल हो जाएगा।"
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परिवार के साथ घाटी के गहरे संबंध को याद करते हुए उन्होंने बताया कि उनके दादा गुलाम रसूल गलवान पहले इंसान थे जो इस गलवान घाटी की ट्रैकिंग करते हुए अक्साई चीन क्षेत्र में पहुंचे थे। उन्होंने साल 1895 में अंग्रेजों के साथ इस घाटी में ट्रैकिंग की थी। उस दौरान उन्होंने यहां फंस गए अंग्रेजों के दल की जान बचाई थी, जिसके ईनाम के तौर पर इस घाटी का नाम उनके नाम पर रखा गया।
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अमीन गलवान ने बताया, "अक्सई चीन जाने के दौरान रास्ते में मौसम खराब हो गया और ब्रिटिश टीम को बचाना मुश्किल हो गया। मौत उनकी आंखों के सामने थी। हालांकि किसी तरह रसूल गलवान ने टीम को मंजिल तक पहुंचाया। उनके इस कार्य से ब्रिटिश काफी खुश हुए और उन्होंने उनसे पुरस्कार मांगने के लिए कहा, फिर उन्होंने कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए बस इस नाले का नामकरण मेरे नाम पर कर दिया जाए।"
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मोहम्मद अमीन गलवान ने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब चीन ने इस घाटी पर कब्जा करने की कोशिश की है, बल्कि अतीत में भी ऐसे कई प्रयास भारतीय सैनिकों द्वारा निरस्त किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि चीन की नजर 1962 से घाटी पर थी, लेकिन हमारे सैनिकों ने उन्हें खदेड़ दिया। अब फिर वे ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं। दुर्भाग्य से हमारे कुछ जवान शहीद हो गए, हम उन्हें सलाम करते हैं।" उन्होंने कहा कि एलएसी में विवाद अच्छा संकेत नहीं है और सबसे अच्छी बात यह होगी कि मुद्दों को शांति से हल किया जाए।
(आईएएनएस के लिेए लेह से जफर इकबाल की रिपोर्ट)
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