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बिहार में SIR पर सुप्रीम कर्ट में सुनवाई आज, क्या उच्चतम न्यायालय मतदाता सूची के मामले में दखल देगा!

पिछले महीने 28 जुलाई को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की संज्ञान लिया था कि ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल्स से करीब 65 लाख वोटर के नाम काटे गए हैं। उस दौरान कोर्ट ने मौखिक तौर पर कहा था कि इस बाबत अगर सही तर्क सामने नहीं आए तो कोर्ट को बिहार के एसआईआर में दखल देना पड़ेगा।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

सुप्रीम कोर्ट आज बिहार में जारी एसआईआर मामले की सुनवाई करेगा। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की बेंच ने याचिकाकर्ताओं को भरोसा दिया था कि अगर बड़े पैमाने पर लोगों के नाम वोटर लिस्ट से काटे गए हैं तो कोर्ट इस मामले में दखल देगा। ऐसे में यह सवाल भी है कि क्या याचिकाकर्ता कोर्ट को यह विश्वास दिला पाएंगे कि बड़े पैमाने पर नागरिकों को उनके मतदाधिकार से वंचित कर दिया गया है।

पिछले महीने 28 जुलाई को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की संज्ञान लिया था कि ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल्स से करीब 65 लाख वोटर के नाम काटे गए हैं। उस दौरान कोर्ट ने मौखिक तौर पर कहा था कि इस बाबत अगर सही तर्क सामने नहीं आए तो कोर्ट को बिहार के एसआईआर में दखल देना पड़ेगा।

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जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ताओं से कहा था, “हम यहां हैं और आपकी बात सुनेंगे...।” वहीं जस्टिस बागची ने कहा था कि, “अगर बड़े पैमाने पर लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं, तो तुरंत इस मामले में दखल देंगे। आप 15 ऐसे जीवित लोगों को लेकर आइए जिनके नाम मृत बताकर काट दिए गए हैं...।” ऐसा माना जा रहा है कि याचिकाकर्ताओं ने शपथपत्र देकर 15 से अधिक ऐसे लोगों की सूची कोर्ट में दाखिल की है। अब आज इसी बेंच में मामले की सुनवाई होनी है।

याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि चुनाव आयोग के दावों के उलट बूथ लेवल अफसरों (बीएलओ) ने घर-घर जाकर सर्वे नहीं किया और न ही एक महीने की अवधि के दौरान वे तीन बार वेरिफिकेशन के लिए कहीं गए। यह भी कहा गया कि चुनाव आयोग का यह दावा भी गलत है कि किसी ने भी मसौदा सूची पर आपत्ति या दावा पेश नहीं किया है, जबकि  बड़ी संख्या में ऐसे लिखित दावे पेश किए गए हैं।

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बता दें कि बिहार एसआईआर के बाद सामने आ रही ग्राउंड रिपोर्ट्स में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां लगातार बताई जा रही हैं। लेकिन चुनाव आयोग इस बाबत संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रहा है। इतना ही नहीं अभी 9 अगस्त को चुनाव आयोग ने शपथपत्र देकर कह दिया कि वह उन 65 लाख लोगों के नाम काटे जाने का कारण नहीं बताएगा और न ही उनकी सूची उपलब्ध कराएगा। उसका दावा है कि उसने ऐसी सूची राजनीतिक दलों के बूथ स्तर के एजेंट्स को दे दी है, लेकिन राजनीतिक दल इससे इनकार करते हैं।

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