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दिल्ली में बीजेपी की हार और जीत के ये हो सकते हैं 10 बड़े कारण

दिल्ली के चुनावी नतीजों का ऐलान 11 फरवरी को होगा, लेकिन एग्जिट पोल आम आदमी पार्टी की जीत और बीजेपी की हार का संकेत दे रहे हैं। आइए देखते हैं कि अगर बीजेपी हारती है तो इसके क्या कारण हो सकते हैं और अगर कहीं जीत हासिल करती है तो किस कारण से।

फोटो सौजन्य : द क्विंट
फोटो सौजन्य : द क्विंट 

जैसा कि एग्जिट पोल के रुझान बता रहे हैं कि दिल्ली में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ सकता है, तो इसके कुछ अहम कारण हो सकते हैं जो किसी भी राजनीतिक दल को मंथन के लिए मजबूर करेंगे। ये रहे वह कारण जो बन सकते हैं बीजेपी की हार का कारण:

गरीब वोटर रहा बिल्कुल खामोश

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह दो सौ यूनिट बिजली और महीने में 20 हजार लीटर पानी मुफ्त कर दिया, उससे आम जन और गरीब परिवारों की जेब पर बोझ कम हुआ है। इस योजना का फायदा उठाने वाला गरीब तबका चुनाव में खामोश वोटर बना नजर आया। बिजली कंपनियों के आंकड़ों की बात करें तो एक अगस्त को योजना की घोषणा होने के बाद दिल्ली में कुल 52,27,857 घरेलू बिजली कनेक्शन में से 14,64,270 परिवारों का बिजली बिल शून्य आया। ऐसे में अगर इन परिवारों ने मतदान के दिन झाड़ू पर बटन दबाया है तो फिर आम आदमी पार्टी की वापसी की राह आसान होगी।

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मुसलमानों का झुकाव

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नागरिकता संशोधन कानून आने के बाद से मुस्लिमों की बड़ी आबादी के मन में डर बैठ गया है। मुसलमान उस पार्टी को वोट देना चाहते थे जो बीजेपी को हरा सके। कांग्रेस का दिल्ली चुनाव प्रचार बहुत अधिक नजर नहीं आया, ऐसे में मुसलमानों का अधिकतर वोट आम आदमी पार्टी के पक्ष में अगर गया है तो आश्चर्य नहीं होगा। ध्यान रहे कि दिल्ली की कम से कम 4 सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं।

महिलाओं को भी आप ने बनाया वोट बैंक

आम आदमी पार्टी ने जितना महिलाओं पर फोकस किया, उतना बीजेपी ने नहीं। केजरीवाल सरकार ने बसों में 30 अक्टूबर को भैयादूज के दिन से मुफ्त सफर की महिलाओं को सौगात दी। एक आंकड़े के मुताबिक प्रतिदिन करीब 13 से 14 लाख महिलाएं दिल्ली में बसों में सफर करतीं हैं।

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स्कूलों की फीस न बढ़ने देना

दिल्ली में स्कूलों की हालत सुधरने को जो दावे हों, मगर सबसे ज्यादा लाभ प्राइवेट स्कूलों की फीस पर अंकुश लगाने से मध्यमवर्गीय जनता को पहुंचना बताया जा रहा है। केजरीवाल सरकार ने निजी स्कूलों में फीस पर नकेल कस दी। इसका लाभ मध्यमवर्गीय परिवारों को हुआ है। यह वर्ग मतदान में भी बड़ी भूमिका निभाता है।

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बीजेपी की सेना बनाम अकेले खड़े केजरीवाल

राजनीतिक विश्लेषकों के एक वर्ग का मानना है कि बीजेपी का हद से ज्यादा आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान फायदा देने की जगह नुकसान दे गया। केजरीवाल खुद बीजेपी की भारी-भरकम बिग्रेड का बार-बार हवाला देते हुए खुद को अकेला बताते रहे। ऐसे में जनता की अगर केजरीवाल के प्रति सहानुभूति उमड़ी तो उन्हें इसका फायदा हुआ होगा।

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इसके अलावा अगर तमाम एग्जिट पोल को गलत साबित करते हुए बीजेपी दिल्ली में जीत हासिल करती है तो इसके ये कारण हो सकते हैं:

जबरदस्त ध्रुवीकरण

बीजेपी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण की आक्रामक पिच तैयार की। शाहीन बाग का प्रदर्शन मानो मुंह मांगी मुराद जैसा हाथ लग गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित अन्य छोटे से लेकर बड़े नेता हर रैली और सभाओं में शाहीन बाग-शाहीन बाग का मुद्दा उछालते रहे। सभाओं में जनता के बीच सवाल उछालते रहे- आप शाहीन बाग के साथ हैं या खिलाफ? साथ ही जेएनयू, जामिया हिंसा को भी बीजेपी ने मुद्दा बनाकर बहुसंख्यक वोटर्स को साधने की कोशिश की।

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धुआंधार प्रचार

छोटे से केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के लिए बीजेपी ने जितनी ताकत झोंकी, उतनी बड़े-बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी मेहनत नहीं की। बीजेपी ने गली-गली मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद-विधायकों की फौज दौड़ा दी। कोई मुहल्ला नहीं बचा, जहां बड़े नेताओं ने नुक्कड़ सभाएं नहीं कीं। इससे बीजेपी ने अपने पक्ष में जबरदस्त माहौल बनाने की कोशिश की।

व्यापारियों का झुकाव

दिल्ली के व्यापारियों को सीलिंग का भय हमेशा सताता रहा है। व्यापारियों को लगता है कि केंद्र में बीजेपी की सरकार होने के कारण वह सीलिंग से राहत दिला सकती है। शायद यही वजह रही कि मतदान से एक दिन पहले शुक्रवार को दिल्ली के व्यापारियों के सबसे बड़े संगठन कैट ने बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। इस संगठन से दिल्ली में 15 लाख व्यापारी जुड़े हैं, जिनका दावा है कि वे 30 लाख लोगों को रोजगार देते हैं। ऐसे में अगर सचमुच व्यापारी समुदाय बीजेपी के साथ आया तो नतीजे अलग हो सकते हैं।

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एंटी इन्कमबेंसी

दिल्ली में शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी को अगर छोड़ दें तो इंफ्रास्ट्रक्चर के मोर्चे पर अपेक्षित काम नहीं हुआ है। 2015 में आम आदमी पार्टी की प्रचंड लहर में चुनाव जीतने में कामयाब रहे विधायकों के बाद में जनता से दूर हो जाने की शिकायतें आम हैं। यही वजह है कि केजरीवाल को अपने कई विधायकों के टिकट काटने पड़े। पांच साल सत्ता में रहने पर केजरीवाल को एंटी इन्कमबेंसी लहर झेलनी पड़ सकती है।

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बीजेपी के चुनावी वादे

बीजेपी ने अपने घोषणापत्र के जरिए दिल्ली के लोगों के मन से यह डर निकालने की कोशिश की है कि उसकी सरकार बनने पर बिजली, पानी मुफ्त की योजना बंद हो जाएगी। बीजेपी ने इन योजनाओं के जारी रहने की बात कही। साथ ही दिल्ली की 1700 से अधिक अवैध कालोनियों में रजिस्ट्री की शुरुआत कर वहां के लोगों में बैठे डर को दूर कर दिया। दो रुपये किलो की दर से आटा, गरीब बच्चियों को इलेक्ट्रिक स्कूटी, 376 झुग्गियों में रहने वाले दो लाख से अधिक परिवारों को दो-दो कमरे के मकान का वादा कर रिझाने की कोशिश की है। इन वादों पर अगर जनता ने भरोसा किया तो भाजपा चुनाव में सबको चौंका सकती है।

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