हालात

पाकिस्तानी सत्ता में 'शरीफों' की वापसी का रास्ता साफ, इमरान खान के दिन पूरे, सेना से आंख मिलाना पड़ा भारी

पाक सरकार में इमरान खान के दिन अब गिनती के ही बचे हैं। अभी तक उनकी सारी सिसायी कामयाबी सेना के समर्थन से ही मिलती रही है, लेकिन अब बिना सेना के आशीर्वाद के वे राजनीतिक रूप से क्या कर पाएंगे, यह देखने वाली बात होगी।

Getty Images
Getty Images 

पाकिस्तान के संयुक्त विपक्ष ने नेशनल असेंबली (पाकिस्तानी संसद) में प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया है। इस प्रस्ताव की सफलता इस बात पर निर्भर है कि इमरान खान के सहयोगी दल विपक्ष के इस प्रस्ताव का समर्थन करेंगे या नहीं। इमरान खान सरकार को 4 बड़े सहयोगी दलों का समर्थन हासिल है। इनमें 6 सांसदों वाली पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क्यू), 5 सांसदों वाली बीएपी और 7 सांसदों वाली एमक्यूएम (मुहाजिर कौमी मूवमेंट) शामिल हैं। अभी तक के संकेत तो यही बताते हैं कि ये तीनों दल विपक्ष के साथ जा सकते हैं और इमरान खान को सत्ता से बेदख कर देंगे।

संयुक्त विपक्ष फिलहाल मियां शाहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री बनाए जाने पर सहमत हो गया है। शाहबाज शरीफ पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के छोटे भाई हैं। नवाज शरीफ इन दिनों लंदन में निर्वासित जीवन गुजार रहे हैं। 2017 में पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें आजीवन पाकिस्तान की राजनीति से बेदखल कर दिया था। लेकिन प्रधानमंत्री पद के लिए शाहबाज शरीफ के नाम पर विपक्ष की सहमति से साफ है कि पाकिस्तान की राजनीति में नवाज शरीफ की वापसी हो रही है। ऐसा माना जा रहा है कि छोटे भाई के प्रधानमंत्री बनते ही नवाज शरीफ भी पाकिस्तान वापस लौट आएंगे।

Published: undefined

संयुक्त विपक्ष ने पाक संविधान के दायरे में 8 मार्च को संसद के स्पीकर के पास अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। और अब नेशनल असेंबली के स्पीकर का दायित्व है कि वे 14 दिन के अंदर संसद का सत्र बुलाएं और संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश होने के बाद 7 दिन के अंदर उस पर वोटिंग कराएं। स्पीकर ने 25 मार्च को संसद का सत्र बुलाया, क्योंकि 22 से 24 मार्च के बीत पाकिस्तान में ओआईसी विदेश मंत्रियों की बैठक चल रही थी। कल यानी 28 मार्च को संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश हो गया और संभावना है कि 3 या 4 अप्रैल को इस पर वोटिंग होगी।

अभी तक के हालात से स्पष्ट है कि इमरान खान प्रस्ताव हारने जा रहे हैं और पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन होना तय है। इमरान खान दरअसल सैन्य प्रतिष्ठान यानी पाकिस्तानी सेना का वरदहस्त हासिल कर सत्ता में आए थे। उनकी राजनीतिक ताकत सेना का समर्थन ही थी। लेकिन अब विपक्ष का कहना है कि सेना ने राजनीतिक मामलों पर निष्पक्ष रुख अख्तियार कर लिया है, इसलिए इमरान के पास कोई समर्थन नहीं बचा है। इमरान खान ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि पाकिस्तान की अंदरूनी सियासत से पाक सेना का कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन इसके साथ ही इमरना खान ने सेना के इस बदले रुख पर नाराजगी भी जताई है। क्योंकि सेना के निष्पक्ष होने का अर्थ है कि इमरान खान को सेना का समर्थन नहीं मिलेगा। ऐसा माना जाता है कि इमरान खान के सहयोगी दल भी सेना के कथित तौर पर निष्पक्ष होने के बाद पाला बदल रहे हैं। उनका मानना है कि निष्पक्षता का अर्थ है कि सेना अब इमरान खान के साथ नहीं है, इसीलिए पाला बदलने का समय आ गया है।

Published: undefined

इमरान खान के प्रधानमंत्री बनते ही यह साफ था कि बिना सेन्य प्रतिष्ठान यानी पाक सेना की मदद के वह सरकार नहीं चला सकते। इमरान खान ने सैन्य प्रतिष्ठान की मदद से ही चार साल तक पाकिस्तान पर राज किया। दरअसल उनके नाम का प्रस्ताव भी विपक्षी दलों ने ही किया था। लेकिन किसे अंदाजा था कि पिछले साल यानी 2021 के अक्टूबर में आईएसआई के डायरेक्टर जनरल के तबादले से पैदा विवाद इमरान खान और सैन्य प्रतिष्ठान के बीच खटास का कारण बन जाएगा और सैन्य प्रतिष्ठान उनको दिए अपने समर्थन से हाथ खींच लेगा।

इमरान खान लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को आईएसआई के डायरेक्टर जनरल पद पर बनाए रखना चाहते थे, जबकि सैन्य प्रतिष्ठान उन्हें हटाना चाहता था। दरअसल आईएसपीआर ने तो फैज हमीद के तबादले के आदेश भी जारी कर दियए थे, लेकिन इमरान खान ने इसका प्रतिरोध किया। पाकिस्तानी संविधान के मुताबिक आईएसआई के डीजी के तबादले और नई नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री के दस्तखत जरूरी हैं। इमरान खान तीन सप्ताह तक इसे टालते रहे और इमरान खान और सेना के बीच तनाव बढ़ता रहा। आखिरकार उन्हें सैन्य प्रतिष्ठान के सामने हथियार डालने पड़े और उन्होंने तबादले के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए। लेकिन इन तीन सप्ताह के दौरान इमरान खान और सैन्य प्रतिष्ठान के बीच जो खाई पैदा हुई, वहीं इमरान के पतन का सबब बन रही है।

Published: undefined

इमरान खान अब विदेशी ताकतों को उनकी सरकार के खिलाफ साजिश रचने के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। अभी 27 मार्च को इस्लामाबाद में हुई रैली में उन्होंने यही आरोप दोहराया। उन्होंने दावा किया कि उनके पास इस बात का सबूत है कि उन्हें सत्ता से हटाने में विदेशी दखल है। उन्होंने एक पत्र भी दिखाया, लेकिन उसे सार्वजनिक नहीं किया कि इस पत्र में क्या है। उन्होंने कहा कि इस पत्र को सार्वजनिक करना राष्ट्रहित में नहीं होगा। अलबत्ता उन्होंने किसी भी कथित विदेशी शक्ति का नाम नहीं लिया, लेकिन इशारा अमेरिका की तरफ था। रोचक है कि वे उन्हें सत्ता से बेदखल करने के लिए सैन्य प्रतिष्ठान यानी पाकिस्तानी सेना का नाम तक नहीं ले रहे हैं।

उधर शाहबाज शरीफ के नाम पर सहमति से स्पष्ट हो गया है कि शरीफ खानदान और सैन्य प्रतिष्ठान के बीच सबकुछ सामान्य हो गया है। वैसे शाहबाज शरीफ हमेशा से सैन्य प्रतिष्ठान के साथ अच्छे रिश्तों की वकालत करते रहे हैं। उहोंने अपनी पार्टी में भी हमेशा सेना के पक्ष में आवाज उठाई है। शायद यही कारण है कि सेना को उनके नाम पर कोई एतराज नहीं है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सरकार में इमरान खान के दिन अब गिनती के ही बचे हैं। अभी तक उनकी सारी सिसायी कामयाबी सेना के समर्थन से ही मिलती रही है, लेकिन अब बिना सेना के आशीर्वाद के वे राजनीतिक रूप से क्या कर पाएंगे, यह देखने वाली बात होगी।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined