हालात

आड़ी, तिरछी और अनाड़ी एसआईआर और चुनिंदा बीएलओ की पीठ थपथपाता चुनाव आयोग

जब बीएलओ ‘पोस्टर बॉय’ या ‘पोस्टर गर्ल’ बन जाते हैं, तो निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता स्वतः सवालों के घेरे में आ जाती है।

Getty Images
Getty Images 

दिसंबर के अंत में एसआईआर के समाप्त होने के बाद (दो बार समय सीमा बढ़ाए जाने के बावजूद) मसौदा मतदाता सूची जारी होने का बेसब्र इंतजार करीब भी नहीं आया था कि एक नया विवाद खड़ा हो गया है। भारत निर्वाचन आयोग और भारतीय जनता पार्टी के नेता चुनिंदा राज्यों, खासतौर से उत्तर प्रदेश में बूथ स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) को सम्मानित करने में जुट गए हैं। जहां आयोग अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर कुछ बीएलओ की ‘अनुकरणीय कार्य’ के लिए तारीफ करता दिखा, वहीं स्थानीय भाजपा नेता उनके ‘अच्छे काम’ का जश्न मनाने के लिए समानांतर कार्यक्रम आयोजित करते दिखाई दिए।

सवाल उठने ही थे, खासकर इसलिए भी क्योंकि उत्तर प्रदेश में एसआईआर की प्रक्रिया यूं भी खासी विवादास्पद और चर्चा में रही है। चुनाव आयोग का बुलेटिन बताता है कि उत्तर प्रदेश में 99.61 प्रतिशत एसआईआर फार्म 11 दिसंबर को दोपहर 3 बजे तक (मूल समय सीमा) डिजिटाइज यानी अपलोड किए जा चुके थे। ऐसे में  स्वाभाविक सवाल उठा कि अगर सब कुछ इतना ही अच्छा चल रहा है, तो समय सीमा पूरे दो सप्ताह बढ़ाकर 26 दिसंबर करने की क्या जरूरत थी?

Published: undefined

जब उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर रहे थे कि इस पूरी प्रक्रिया में और अधिक समय की आवश्यकता है, तो इसे शुरू से ही ध्यान में क्यों नहीं रखा गया? संभव है अगर पहले ही ऐसा हो जाता तो उन हताश बूथ स्तरीय अधिकारियों को आत्महत्या से रोका जा सकता था, जो न सिर्फ चंद समुदायों के मतदाताओं को सूची से बाहर करने के दबाव में थे, काम के भारी बोझ और कम समय सीमा के दबाव से भी जूझ रहे थे और उन्हें शायद ही कोई प्रशिक्षण मिला था?

इन वास्तविकताओं को नकारते हुए, आयोग ने निर्धारित समय से पहले प्रपत्रों का ‘100 फीसद डिजिटलीकरण’ पूरा कर लेने के लिए कुछ चुनिंदा बीएलओ (ज्यादातर महिलाएं) का चयन किया। आयोग ने उनके नाम, तस्वीरें और निर्वाचन क्षेत्र सार्वजनिक किए, जो स्पष्ट रूप से उनके ‘बेहतर’ प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किए जाने का संकेत दे रहा था।

स्थानीय बीजेपी नेता अपने फैसले का बचाव करते नजर आए। फिरोजाबाद के जसराना निर्वाचन क्षेत्र में बीजेपी जिला अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह ने पूछा, “मिठाई बांटने या इस निःस्वार्थ कार्य के लिए सार्वजनिक रूप से आभार प्रदर्शन में गलत क्या है?” मेरठ के फूलबाग स्थित जेमिनी इंटर कॉलेज में बीएलओ को सम्मानित करने वाले बीजेपी नेता अंकित चौधरी ने भी सिंह की बात का समर्थन किया।

Published: undefined

नौरंगिया ब्लॉक के बसंतपुर की एक ग्राम सभा में बीजेपी विधायक विवेकानंद पांडे द्वारा कई बीएलओ को सम्मानित करने पर प्रतिक्रिया देते हुए धनंजय सिंह ने कहा, “सभी बीएलओ बीजेपी के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं, इसलिए जाहिर है कि बीजेपी सार्वजनिक रूप से उनके प्रति आभार जता रही है। इसमें आश्चर्य की क्या बात है?”

हालांकि ईमानदारी और निष्ठा से अपना काम करने वाले बीएलओ ऐसे ‘असाधारण कार्य’ को ‘सुविधा के अनुरूप लचीली हो जाने वाली’ इतनी सख्त समयसीमा में पूरा करने के लिए धन्यवाद के पात्र हैं, लेकिन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओ.पी. रावत उन्हें इस तरह ‘पोस्टर बॉय’ या ‘पोस्टर गर्ल’ बनाकर प्रस्तुत किया जाना किसी भी नजरिये से उचित नहीं मानते। उनका मानना है कि इस पर “प्रतिबंध लगना चाहिए, क्योंकि इस तरह की घटनाओं से संबंधित बीएलओ की निष्पक्षता सवालों के घेरे में आ जाती है।”

पूर्व उप चुनाव आयुक्त और उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी रहे नूर मोहम्मद जोर देकर कहते हैं कि ऐसी प्रक्रिया न सिर्फ निष्पक्ष होनी चाहिए, बल्कि निष्पक्ष दिखनी और मानी भी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्कृष्ट कार्य को सिर्फ चुनाव आयोग द्वारा ही मान्यता मिलनी या पुरस्कृत किया जाना चाहिए, न कि राजनीतिक दलों द्वारा।

Published: undefined

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बिहार में बीएलओ के काम की सराहना की थी, जहां गणना प्रपत्रों को इकट्ठा करने की प्रक्रिया बिना किसी विस्तार के 30 दिन में पूरी कर ली गई थी। हालांकि यह तारीफ इस जमीनी हकीकत के बावजूद की गई कि प्रपत्र भरने और अपलोड करने में निर्धारित नियमों का पालन नहीं हुआ था। कई बीएलओ ने कथित तौर पर मतदाताओं और उनके पतों के सत्यापन के लिए अनिवार्य रूप से घर-घर जाकर निरीक्षण की शर्त भी नहीं पूरी की। बिहार में चुनाव आयोग ने एसआईआर समाप्त होने तक इंतजार किया, लेकिन उत्तर प्रदेश में तो एसआईआर प्रक्रिया जारी रहते हुए ही ‘अभिनंदन समारोह’ आयोजित होने लगे हैं।

राज्य में बीएलओ को समय से पहले सम्मानित करने से एक और सवाल खड़ा होता है: अगर इन उच्च प्रदर्शन करने वालों ने वास्तव में मूल समय सीमा (11 दिसंबर) से पहले ‘100 फीसद डिजिटलीकरण’ का लक्ष्य हासिल कर लिया था, तो फिर आयोग  के पास समय सीमा दो अतिरिक्त हफ्तों तक बढ़ाने का क्या कारण था?

‘नवजीवन’ ने टिप्पणी के लिए चुनाव आयोग से संपर्क किया। लेकिन (प्रेस में जाने तक) कोई जवाब न मिलने पर, हमने उन्हीं सवालों पर जमीनी स्तर पर मौजूद लोगों से बात की।

Published: undefined

एसडीएम रामवीर सिंह की झुंझलाहट फोन पर साफ समझ में आ रही थी जब उनसे उनके अधीन काम करने वाले एक दर्जन बीएलओ को चुनाव आयोग द्वारा समय से पहले काम पूरा करने के लिए सम्मानित किए जाने के बारे में पूछा गया। उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई जानकारी के बारे में कुछ नहीं पता है। भड़क कर बोले, “आप यह किस आधार पर कह रहे हैं? आपने जो देखा है, वह मुझे भेजिए। जब काम अभी चल ही रहा है तो वे (आयोग) इस तरह की बात ट्वीट कैसे कर सकते हैं?”

एसडीएम की प्रतिक्रिया हैरान करने वाली थी, क्योंकि कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) के खड्डा विधानसभा क्षेत्र में एक दर्जन बीएलओ को चुनाव आयोग द्वारा फॉर्म सफलतापूर्वक डिजिटाइज करने और ‘100 फीसद मैपिंग’ पूरी करने के लिए विशेष रूप से सम्मानित किया गया था। (जानकार सूत्रों के अनुसार मैपिंग में मतदाताओं के नाम और पूर्ववृत्त का 2002-03 की मानक सूची से मिलान करना शामिल है।) चुनाव आयोग ने 8 दिसंबर 2025 की दोपहर को बधाई संदेश वाले ऐसे कई ट्वीट पोस्ट किए थे।

आखिर कौन सी बात है जो इन बीएलओ को बाकियों से अलग करती थी और इन्होंने अपना काम पूरा करने के लिए जमीन पर जूझते अन्य बीएलओ से अलग क्या किया? खड्डा वाले बीएलओ के फोन नंबर ढूंढना मुश्किल नहीं था, क्योंकि उनके नंबर मतदाताओं और राजनीतिक दलों के साथ साझा किए गए थे। हालांकि अधिकांश ने टेलीफोन पर हुई बातचीत में वीडियो इंटरव्यू देने से इनकार कर दिया था, इसलिए हमने ऑडियो रिकॉर्डिंग की, लेकिन बातचीत आश्चर्यजनक होने के साथ-साथ कई बार बेहद हास्यास्पद साबित हुई।

Published: undefined

हमने सबसे पहले आंगनवाड़ी कार्यकर्ता रुक्मिणी देवी (निजता बनाए रखने के लिए सभी बीएलओ और उनके परिवार के सदस्यों के नाम बदल दिए गए हैं) को फोन किया। उनके बेटे धर्मेंद्र ने फोन उठाया और कहा कि मां से बात करने का कोई फायदा नहीं है, और काम तो वह खुद संभाल रहे हैं, लेकिन उनके पास समय नहीं है। वह ऑनलाइन डेटा फीड करने में बहुत ज्यादा व्यस्त हैं।

हमारी अगली कॉल विनीता देवी को थी और वहां भी जवाब उनके बेटे सुनील ने दिया, जो अपेक्षाकृत ज्यादा खुलकर बात कर रहा था। उसने बताया कि परिवार के चारों सदस्य काम में लगे थे। दावा किया कि अधिकांश फॉर्म उसने खुद भरे थे और यह भी बताया कि सर्वर आधी रात के बाद ही ठीक से काम करते थे। सर्वर की गड़बड़ी वाली आम समस्या की पुष्टि अन्य लोगों ने भी की, जिसका मतलब ही था कि देर से शुरुआत कर सुबह तड़के तक काम करना और उसके बाद  दोबारा फील्ड में जाना।

दसवीं तक पढ़ी उषा देवी ने बताया कि उनका काम अभी खत्म नहीं हुआ है। सबसे बड़ी मुश्किल शादी के बाद इस क्षेत्र में आई महिलाओं के ब्योरे की पुष्टि करना था। उन्हें इन बहुओं के मायके के निर्वाचन क्षेत्र, बूथ और सीरियल नंबर के साथ-साथ उनके माता-पिता के पार्ट नंबर की जानकारी जुटाने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी। उषा देवी के पति फॉर्म बांटते और जमा करते थे, जबकि उनके दो बच्चे- बी.एड. की पढ़ाई कर रही बेटी और 17 वर्षीय बेटा, फॉर्म अपलोड करने में मदद करते थे। उन्हें मिले 1,083 फॉर्मों में से लगभग सौ फॉर्म अपलोड होने अभी बाकी थे। हां, उन्हें कोई इनाम नहीं मिला था, बल्कि चुनाव आयोग से हर महीने 500 रुपये जरूर मिलते थे।

Published: undefined

समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर मुजफ्फरनगर की शिल्पा ने कुछ विसंगतियों की ओर इशारा किया: चुनाव आयोग के पोर्टल पर उनके बूथ में 903 मतदाता दिखाए गए थे, जबकि फार्म उन्हें 911 मिले थे। जिन मतदान अधिकारियों से हमने बात की, उनमें से अकेली शिल्पा ही थीं, जिन्होंने कहा कि उन्हें एक दिन का ‘प्रशिक्षण’ मिला था और यह भी माना कि उन्हें एसडीएम द्वारा सम्मानित किया गया था। पुरस्कार स्वरूप एक केतली, शॉल और एक प्रमाण पत्र मिला।

हमने जिन महिलाओं से बात की, अधिकांश ने बताया कि उनके पति और बच्चे मदद कर रहे थे। शशिकला ने मिथिलेश यादव के प्रति गहरी कृतज्ञता जताई जो एसडीएम के अनुरोध पर सहायता के लिए उनके साथ रहीं। उन्होंने सहयोग के लिए प्रधानाध्यापक और एक स्थानीय शिक्षक का भी आभार जताया।

अनेक अन्य बीएलओ के साथ बातचीत में दो बातें खासतौर से उभरीं: पहली, सरसरी तौर पर उन्हें जो प्रशिक्षण दिया गया, अपर्याप्त था; दूसरी, निर्धारित समय सीमा जमीनी जरूरत से काफी दूर थी।

ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग ने समय से पहले डिलीवरी का दावा करते समय हकीकत बयान करने में कोताही बरती और सच को छिपाया। अगर समारोहों का उद्देश्य प्रोत्साहन और मनोबल बढ़ाना था तो सोशल मीडिया पर अभियान की कमियों ने आयोग की सार्वजनिक छवि और विश्वसनीयता को कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचाया है।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined