https://x.com/ECISVEEP/status/1902665164832243838
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने गुरुवार को जारी बयान में कहा है कि, “इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन वोटिंग अधिकारों के इस्तेमाल के लिए आधार को हमारी चुनावी व्यवस्था में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ने का विरोध करता है।“ फाउंडेशन ने कहा है कि यह प्रस्ताव अत्यधिक तकनीकी दृष्टि अपनाते हुए स्मार्टफोन के माध्यम से मतदान करने की जादुई सोच से प्रेरित लगता है। फाउंडेशन ने आगे कहा है कि इस परिकल्पना से पूरी चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता खतरे में पड़ सकती है, जो पहले से ही विश्वसनीयता के सवालों से जूझ रही है।
वकील और फाउंडेशन के संस्थापक निदेशक अपार गुप्ता द्वारा जारी बयान में आधार के अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों से जोड़ने का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि ऐसा करने से बड़े पैमाने पर वोटरों के मतदाता सूची से बाहर होने का सीधा और असली खतरा है, डेटा का दुरुपयोग हो सकता है और सरकार इस डेटा का इस्तेमाल नागरिकों की निगरानी के लिए कर सकती है।
Published: undefined
फाउंडेशन ने चुनाव आयोग से पारदर्शिता का आग्रह किया है साथ ही अपील की है कि आयोग को ऐसे सोशल मीडिया सेल बनाने के बारे में विचार करना चाहिए जो विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा डेटा का अपने प्रचार के लिए इतेमाल करते हैं जोकि प्रचार के लिए खर्च की सीमा का उल्लंघन करने के दायरे में आता है।
बयान में आगे कहा गया है कि चूंकि आधार संख्या नागरिकता का प्रमाण नहीं है, ऐसे में आधार को ईपीआईसी (वोटर कार्ड) से जोड़ने से गैर-नागरिकों को मतदाता सूची में जगह मिल सकती है। फाउंडनेशन ने इस बात पर जोर देते हुए कि आधार को बेदाग मानना एक गलती है, कहा है कि भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) सहित कई अधिकारियों ने आधार डेटाबेस की पवित्रता पर सवाल उठाए हैं। बयान में कहा गया है कि आधार परियोजना “बड़े पैमाने पर बहिष्कार, धोखाधड़ी, लीक और बायोमेट्रिक विफलता” के मामलों से ग्रस्त है।
फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट के 18 सितंबर 2023 को दिए गए निर्देशों का हवाला दिया है, जिसमें चुनाव आयोग ने अंडरटेकिंग दिया था कि, "निर्वाचक पंजीकरण (संशोधन) नियम 2022 के नियम 26-बी के तहत आधार नंबर देना अनिवार्य नहीं है और इसलिए चुनाव आयोग उस उद्देश्य के लिए पेश किए गए फॉर्म में उचित स्पष्टीकरणात्मक परिवर्तन (बदलाव का सर्कुलर) जारी करने पर विचार कर रहा है।" फाउंडेशन ने कहा है कि 'स्पष्टीकरणात्मक परिवर्तन' अभी तक नहीं किए गए हैं।
Published: undefined
इसके अलावा, भारत सरकार ने फॉर्म 6बी में संशोधन को खारिज कर दिया, जो यह मानने में नाकाम रहा है कि गैर-प्रकटीकरण (नॉन-डिस्क्लोजर) को उचित ठहराने के लिए मतदाताओं पर जिम्मेदारी डालने को एक कथित स्वैच्छिक प्रक्रिया में अनिवार्य रूप से बदल देता है। इसलिए, "न केवल मतदाता पहचान पत्र से आधार को जोड़ना अनिवार्य बनाने के लिए किसी स्पष्ट कानूनी आधार की कमी है, बल्कि इसके उलट अंतर्निहित कानून के अनुसार इसे स्वैच्छिक होना चाहिए और इसके लिए चुनाव आयोग द्वारा आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए।"
फॉर्म 6बी ऐसे मतदाताओं को पहचान का कोई और दस्तावेज पेश करने का विकल्प देता है जिनके पास आधार नहीं है। नतीजतन संशोधन किए जाने से चुनाव आयोग उन मतदाताओं के लिए आधार नंबर देना अनिवार्य बनाना चाहता है जिनके पास आधार है, जबकि तथ्य यह है कि आधार को वोटर कार्ड से जोड़ने के पहले किए गए प्रयास नाकाम साबित हुए है और इससे बड़े पैमाने पर वोटरों के नाम मतदाता सूची से कट गए थे।
Published: undefined
चुनाव कानून (संशोधन) कानून 2021 और मतदाता पंजीकरण (संशोधन) नियम 2022 आने के बाद लाए गए फॉर्म 6 बी से वोटरों के सामने एक ऐसा मिथ्या विकल्प रखा गया था, जिसमें यह मांग की गई है कि जो व्यक्ति आधार नंबर देने से इनकार करते हैं, उन्हें स्पष्ट रूप से घोषित करना होगा कि उनके पास आधार नंबर नहीं है, जिससे संभावित रूप से नागरिकों को गलत बयान देने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
भारतीय चुनाव आयोग ने इसी सप्ताह वोटर कार्ड और आधार डेटाबेस को जोड़ने की योजना को आगे बढ़ाने के अपने इरादे का ऐलान किया है। इसका ऐलान चुनाव आयोग, कानून और गृह मंत्रालयों के साथ-साथ आधार की निगरानी करने वाले भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के अधिकारियों की एक बैठक के बाद किया गया था।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined