विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (एएआईबी) ने 12 जुलाई की रात 1 बजे एयर इंडिया की उड़ान AI-171 हादसे पर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट जारी कर दी। न प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई, न मीडिया ब्रीफिंग। जांच निष्कर्षों को प्रासंगिक या तर्कसंगत बनाने की कोई कोशिश भी नहीं दिखी, न ऐसा सरोकार कि सुरक्षा को लेकर जनता की चिंताएं दूर करने के लिए भी कुछ होना चाहिए। एक सरकारी पोर्टल पर 15 पन्नों के दस्तावेज चुपचाप अपलोड कर दिए गए और कर्तव्यों की इतिश्री हो गई, मानो यही पर्याप्त था।
जैसा कि तय था, रिपोर्ट दुर्घटना के ठीक एक महीने बाद प्रकाशित हुई। दुर्घटना जिसमें अहमदाबाद से लंदन की उड़ान भरने के बमुश्किल 32 सेकंड बाद ही बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर में सवार सभी 260 लोग मारे गए थे। धुंध दूर करने के बजाय, रिपोर्ट में शामिल और छोड़ दी गई जानकारियों ने हाल के दिनों में देश की सबसे भयावह विमानन दुर्घटना से जुड़े रहस्य को और गहरा दिया है।
गुरुवार, 17 जुलाई के ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने एक अनाम अधिकारी के हवाले से, सबसे बड़ी चूकों में से एक की रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें कहा गया: “12 जून को अहमदाबाद से लंदन गैटविक के लिए उड़ान भरने से कुछ ही घंटे पहले, वही विमान दिल्ली से अहमदाबाद ला रहे पायलट ने तकनीकी लॉग में ‘स्टेबलाइजर पोजिशन ट्रांसड्यूसर डिफेक्ट’ देखा।” यह सेंसर की एक गंभीर खराबी है जो विमान का पिच नियंत्रित करने के साथ ही उड़ान नियंत्रण प्रणाली को जरूरी संकेत भेजता है। हालांकि, रखरखाव इंजीनियरों ने बोइंग की मानक प्रक्रियाओं का पालन करते हुए समस्या दुरुस्त कर ली, लेकिन अधिकारियों ने इसे गंभीर बताते हुए चेतावनी दी है कि ऐसी खराबी उड़ान नियंत्रण प्रतिक्रियाओं में बाधा डाल सकती है और संभावित रूप से ईंधन बंद करने जैसे अनपेक्षित आदेश ट्रिगर कर सकती है।
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तकनीकी लॉग में दर्ज अतिरिक्त कारणों में एक विद्युत संबंधी गड़बड़ी शामिल है, जिसके कारण एक उड़ान रद्द हुई और एक अन्य उदाहरण में ईंधन प्रणाली की गलत चेतावनी का मामला दिखा। जांचकर्ता अब सेंसर या सॉफ्टवेयर से जुड़ी कमजोरियों के संभावित पैटर्न का पता लगाने के लिए ये रिकॉर्ड खंगाल रहे हैं।
सवाल है कि क्या इन महत्वपूर्ण बिंदुओं को प्रारंभिक रिपोर्ट में दर्ज नहीं किया जाना चाहिए था?
विमानन में, पारदर्शिता उतनी ही जरूरी है, जितनी हवाई रफ्तार। तकनीकी तौर पर एएआईबी ने अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (आईसीएओ) के अनुलग्नक 13 के मानदंडों का पालन भले कर दिया हो, जिसके तहत हादसे के 30 दिन के भीतर प्रारंभिक रिपोर्ट देना अनिवार्य है, लेकिन आलोचकों का मानना है कि वह नियमों का पूरी तरह पालन करने में विफल रहा है। आईसीएओ की सिफारिश है कि हादसों, खासकर उच्च-मृत्यु दर वाली दुर्घटनाओं के मामलों में, प्रारंभिक निष्कर्षों के साथ जानकरियां सार्वजनिक भी की जानी चाहिए ताकि बेवजह की अटकलबाजियों से बचा जा सके। चुपके से जारी की गई इस रिपोर्ट के बाद ऐसी ही बातों को मौका मिल गया है।
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इंडिगो के पूर्व परिचालन प्रमुख और विमानन एक्सपर्ट शक्ति लुंबा कहते हैं, “प्रारंभिक रिपोर्ट जवाब देने से कहीं ज्यादा सवालों को जन्म देती है।” प्रारंभिक रिपोर्ट में बोइंग, एयर इंडिया और जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) को क्लीन चिट देने से “पूरी जांच प्रक्रिया ही खटाई में पड़ गई है”। खासकर इसलिए क्योंकि रिपोर्ट में ईंधन स्विच को लेकर सर्विस बुलेटिन का महज सरसरी तौर पर जिक्र हुआ है, जो अमेरिका में एफएए जारी करता है और जिसे सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, नियामकों और एयरलाइंस दोनों द्वारा अनदेखा किया गया था। लुम्बा ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, “सुरक्षा को प्राथमिकता देने वाली कोई भी एयरलाइन एफएए द्वारा निर्धारित जांच किसी भी कीमत पर अवश्य करेगी, इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े।”
लुम्बा भारत में बड़ी नागरिक हवाई दुर्घटनाओं के बाद न्यायिक जांच की पुरानी परंपरा की याद दिलाते हुए कहते हैं कि मौजूदा जांच जिस तरह बोइंग और जीई के पक्ष में झुकी लगती है, हादसे में ऐसी जांच जरूरी है।
राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने उन रिपोर्टों पर नाराजगी जताई कि भारतीय मीडिया से पहले ही जांच निष्कर्षों की जानकारी विदेशी मीडिया को हो चुकी थी। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एयरलाइन पायलट्स एसोसिएशन (आईएफएएलपीए) ने भी लीक से हटकर दिए अपने सार्वजनिक बयान में जांचकर्ताओं से समय से पहले निष्कर्ष निकालने और अटकलों पर आधारित हस्तक्षेप से बचने का आग्रह किया।
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शुरुआती निष्कर्ष अपने आप में चौंकाने वाले हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि उड़ान भरने के बाद, उड़ान AI-171 ने सामान्य गति पकड़ी और 13:38:42 IST पर 180 नॉट्स (उड़ान भरने की गति) तक पहुंच गई। इसके लगभग तुरंत बाद, दोनों ईंधन नियंत्रण स्विच अचानक ‘रन’ से ‘कटऑफ’ की स्थिति में चले गए। ईंधन न मिलने के कारण, दोनों इंजनों की शक्ति चंद सेकंड में ही समाप्त हो गई।
रैम एयर टर्बाइन (आरएटी) और ऑक्सिलरी पावर यूनिट (एपीयू) चालू हो चुके थे। कॉकपिट क्रू ने इंजन चालू करने की कोशिश की- एक इंजन आंशिक रूप से फिर से चालू भी हो गया। रनवे से महज डेढ़ किलोमीटर दूर, उड़ान शुरू होने के बमुश्किल 32 सेकंड बाद ही विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। मौसम में गड़बड़ी, पक्षी के टकराने, यांत्रिक खराबी या भार असंतुलन का कोई संकेत नहीं था। फिर भी, दोनों इंजन बंद हो गए। वजह? कोई नहीं जानता!
कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (सीवीआर) में रिकॉर्ड हुई एक छोटी सी बातचीत ने उलझन और बढ़ा दी है: ‘एक पायलट दूसरे से पूछता सुनाई देता है कि उसने स्विच क्यों बंद कर दिया! दूसरा पायलट जवाब देता है कि उसने ऐसा नहीं किया।’ यह पहचान नहीं हो पाई कि कौन सी आवाज किसकी है। किसी स्रोत माइक्रोफोन का जिक्र भी नहीं है; यानी यह भी स्पष्ट नहीं कि पहला वक्ता कैप्टन था या सह-पायलट। बातचीत के इस छोटे से टुकड़े की अस्पष्टता इसकी कई तरह की व्याख्याओं का अवसर दे देती है- जिसमें वह बेतुकी और संवेदनहीन बात भी शामिल है कि दोनों पायलटों में से एक ने आत्महत्या की थी। क्या पहले ‘वक्ता’ ने दूसरे को स्विच बंद करते देखा था? यह स्पष्ट नहीं है। मान भी लें कि यह जानबूझकर किया गया, तो फिर वह इससे इनकार क्यों करेगा?
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रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि पायलटों ने इंजन फिर चालू करने की कोशिश की, लेकिन उनमें से एक इंजन फिर से चालू होता, बहुत देर हो चुकी थी। क्या इससे ‘आत्महत्या वाली बात’ खारिज नहीं होती? क्या यह संभव है कि पायलटों ने इंजन को वापस ‘रन’ पर स्विच करने की जी-तोड़ कोशिश की हो? स्विच का डिजाइन ही ऐसा है कि टॉगल करने पर एक खास ‘क्लिक’ की आवाज आती है, लेकिन शुरुआती रिपोर्ट का दावा है कि ऑडियो में ध्वनि नहीं है। तो क्या कोई इंसानी हस्तक्षेप था? क्या यह अनजाने में हुआ था? या यह कोई प्रणालीगत गड़बड़ी थी, जिसने आदेश को ट्रिगर किया? कोई नहीं जानता!
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सांसद और प्रशिक्षित कामर्शियल पायलट राजीव प्रताप रूडी कहते हैं कि जवाबदेही विमान निर्माताओं और वैश्विक नियामकों तक भी पहुंचनी चाहिए। वह पूछते हैं कि अमेरिकी संघीय उड्डयन प्रशासन (एफएए) द्वारा पहले जारी की गई सलाह, खासकर ईंधन स्विच लॉकिंग तंत्र की संभावित कमजोरियों को उजागर करने वाली, पर ज्यादा सख्ती से कार्रवाई क्यों नहीं की गई। क्या विमान का पूर्ण अधिकार डिजिटल इंजन नियंत्रण (एफएडीईसी) सिस्टम गलत शटडाउन संकेतों के प्रति संवेदनशील हो सकता है?
वह आगे कहते हैं, “ईंधन नियंत्रण स्विच हिले हुए थे। हमें नहीं पता कि ऐसा क्यों हुआ। जब तक हम नहीं जानते, अटकलें लगाना जल्दबाजी होगी- और जवाब जरूरी हैं।”
इस जांच का केन्द्र-बिंदु बोइंग 787 के ईंधन नियंत्रण ढांचे की भूमिका है। एफएडीईसी एक उन्नत इंजन प्रबंधन प्रणाली है जो ईंधन प्रवाह, थ्रॉटल कमांड और कई अन्य प्रदर्शन मापदंड नियंत्रित करती है। लेकिन इसकी परिष्कृतता में एक चेतावनी भी है- यह यांत्रिक गतिविधियां नहीं, बल्कि विद्युत संकेत रिकॉर्ड करती है। अगर स्विच मैन्युअल रूप से फ़्लिप किए गए हों, या किसी गड़बड़ी के कारण कोई गलत विद्युत कमांड जारी किया गया हो, तो एफएडीईसी डेटा रिकॉर्ड कर लेगा। जैसा कि अनुभवी विमानन सुरक्षा विशेषज्ञ, कैप्टन अमित सिंह कहते हैं: “विमानन में, ‘कमांड जारी’ का अर्थ हमेशा ‘स्विच हिलना’ नहीं होता। एफएडीईसी इरादे की पुष्टि नहीं करता, यह सिर्फ प्रतिक्रिया रिकॉर्ड करता है।”
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मामले को और ज्यादा जटिल बनाता है विमान का थ्रॉटल कंट्रोल मॉड्यूल (टीसीएम), जिसमें स्विच लगे होते हैं। एयर इंडिया के सूत्रों ने पीटीआई को पुष्टि की है कि बोइंग द्वारा जारी सर्विस बुलेटिन के बाद इस मॉड्यूल को दो बार बदला गया था- एक बार 2019 और फिर 2023 में। सही है कि यह बदलाव ईंधन स्विच में खराबी के कारण नहीं किए गए थे, लेकिन पीछे मुड़कर देखने पर, इनका समय महत्वपूर्ण लगता है।
2018 में, संघीय उड्डयन प्रशासन (एफएए) ने बोइंग विमानों में ईंधन स्विच के लॉकिंग तंत्र में संभावित कमजोरियां चिह्नित की थीं, जिसमें 787 के समान विन्यास वाले विमान भी शामिल थे। हालांकि, बुलेटिन अनिवार्य नहीं था और एयर इंडिया द्वारा इस पर कार्रवाई का कोई रिकॉर्ड नहीं है। बोइंग ने तब से यह डिजाइन सुरक्षित बनाए रखा है। एफएए ने भी कहा है कि फिलहाल किसी असुरक्षित स्थिति का कोई संकेत नहीं है। लेकिन 260 लोगों की जान गंवाने के सामने ऐसे आश्वासन खास राहत नहीं देते हैं।
विमानन पेशेवरों की जमात बंटी हुई है- कुछ का कहना है कि इसमें कॉकपिट एर्गोनॉमिक्स की भूमिका संभव है, लेकिन अन्य सॉफ्टवेयर या इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराते हैं। आईएफएएलपीए सहित पायलट यूनियनों ने जांचकर्ताओं से चालक दल के बारे में जल्दबाजी में कोई निष्कर्ष न निकालने का आग्रह किया है। स्विचों का डिजाइन, तथा एफएडीईसी की मंशा और आदेश के बीच अंतर करने में असमर्थता, अब अंतरराष्ट्रीय जांच के दायरे में है। अभी तक बोइंग या किसी नियामक ने 787 ड्रीमलाइनर के पूरे बेड़े को ही उड़ान से रोक देने का सुझाव तो नहीं दिया, लेकिन कुछ ऑपरेटरों ने ईंधन स्विच असेंबली की एहतियाती जांच जरूर शुरू कर दी है। डीजीसीए ने उसी समय भारतीय ऑपरेटरों को निर्देश जारी कर दिए थे, जब एतिहाद, सिंगापुर एयरलाइंस और कोरियन एयर ने ऐसे कदम उठाए थे।
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पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुणप्रकाश ने प्रारंभिक रिपोर्ट को “खासा पेचीदा” बताते हुए अधिकारियों से सतही निष्कर्षों से परे देखने का आग्रह किया। हैरान करने वाले घटनाक्रम पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने जोर दिया कि भरोसा बहाल करने के लिए गहन जांच कितनी जरूरी है। रूडी बताते हैं कि विस्तृत अंतिम रिपोर्ट जारी करने में दो साल तक का समय लग सकता है।
इस बीच, भारत में विभिन्न विमानों से जुड़ी प्रति माह औसतन एक घटनाएं जिस तरह सामने आती रही हैं, इंजन की खराबी भारत में परिचालन करने वाली एयरलाइनों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के एक आरटीआई प्रश्न के जवाब में नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) के जवाब के अनुसार, 2020 से 2025 (आज तक) के बीच देश में उड़ान के दौरान इंजन बंद होने की कुल 65 घटनाएं सामने आईं।
इनमें से प्रत्येक मामले में, पायलट अप्रभावित इंजन का इस्तेमाल करते हुए विमान को निकटतम हवाई अड्डे पर सफलतापूर्वक मोड़ने में सफल रहे। अब चाहे जांच चल रही हो या निष्कर्ष निकाले जा चुके हों, इनमें से कोई भी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। डीजीसीए के आंकड़े यह भी बताते हैं कि 1 जनवरी 2024 से 31 मई 2025 के बीच, 11 उड़ानों ने विभिन्न तकनीकी खराबी का हवाला देते और आपातकालीन लैंडिंग का अनुरोध करते हुए ‘मेडे!’ कॉल जारी किए। गौरतलब है कि इस आंकड़े में न तो एआई-171 और न ही 19 जून को तकनीकी समस्या के कारण डायवर्ट इंडिगो की घरेलू उड़ान शामिल है।
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हवाई यात्रा में भरोसा सिर्फ मशीनरी और इंजीनियरिंग पर ही नहीं, बल्कि उन संस्थानों में विश्वास पर भी टिका होता है जो विफलताओं की जांच और उनका समाधान करते हैं। 1,148 ड्रीमलाइनर (जिनमें से 32 एयर इंडिया के पास हैं) अब भी आकाश में उड़ान भर रहे हैं, और दुनिया देख रही है कि भारत, बोइंग तथा वैश्विक विमानन समुदाय आगे की राह किस तरह तय करते हैं।
इसमें अस्पष्टता यानी किस्से-कहानियों की कोई गुंजाइश नहीं है- महज पूर्ण पारदर्शिता, त्वरित जवाबदेही और सत्य की तलाश चाहिए। अंतिम रिपोर्ट जारी होने तक, हर संभावना खुली रहेगी- पायलट की गलती, यांत्रिक खराबी, एफएडीईसी प्रणाली की विफलता, लॉकिंग तंत्र की समस्याएं। AI-171 घटना पर एएआईबी की प्रारंभिक रिपोर्ट एक मौन केस स्टडी के तौर पर सामने खड़ी है: 32 सेकंड, दो स्विच और अनुत्तरित सवालों के एक लंबे क्रम से आकार लेती एक त्रासदी।
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