हालात

क्या मोदी सरकार भारतीय के बजाए अमेरिकी किसानों को दे रही तरजीह!

केंद्रीय कृषि मंत्री के बयान का खंडन करने वाला नीति आयोग का हालिया विवादास्पद कार्यपत्र वेबसाइट से चुपचाप हटा दिया गया।

Getty Images
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रेसीप्रोकल टैरिफ को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जो धमकी दी थी उसकी आखिरी तारीख यानी डेडलाइन अब आने ही वाली है। इसे लेकर तकरीबन पूरी दुनिया में ही कईं तरह की चिंताएं हैं। भारत में चिंताएं खासतौर पर दोनों देशों में होने वाले कृषि उत्पादों के कारोबार को लेकर हैं। 

नीति आयोग की तरफ से इसे लेकर आयोग के दो सदस्यों राका सक्सेना और रमेश चंद्र ने एक वर्किंग पेपर तैयार किया था। जिसका शीर्षक है- प्रोमोटिंग इंडिया यूएस एग्रीकल्चरल ट्रेड अंडर न्यू यूएस ट्रेड रिजाइम। 

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तीस मई को यह वर्किंग पेपर जारी किया गया और उसी दिन नीति आयोग के वेबसाइट पर भी डाल दिया गया। हालांकि यह पेपर भारत और अमेरिका के बीच कृषि उत्पादों के आयात निर्यात को लेकर कोई बहुत ठोस समाधान नहीं देता लेकिन उसमें जो निष्कर्ष दिए हैं उनमें से कुछ काफी विवादास्पद हैं। खासकर जींस संवर्धित यानी जीएम सोयाबीन और मक्का के ड्यूटी फ्री आयात को लेकर। 

इसी को देखते हुए इस वर्किंग पेपर का लिंक अब नीति आयोग के वेबसाइट से हटा लिया गया है। आयोग के वेबसाइट पर वर्किंग पेपर की सूची में इसका जिक्र है लेकिन उसकी पीडीएफ फाइल अब उपलब्ध नहीं है।

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कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने सबसे पहले इसकी ओर ध्यान खींचा। उन्होंने कहा कि बिहार के मक्का किसान और मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व राजस्थान के सोयाबीन किसानों की कीमत पर सरकार इसका फायदा अमेरिका के किसानों को देना चाहती है। उन्होंने कहा कि, "नीति आयोग के एक पेपर में अमेरिका से जेनेटिकली मॉडिफाइड मक्का और सोयाबीन के शुल्क मुक्त आयात की सिफारिश की गई है। मोदी सरकार के लिए बिहार के मक्का किसानों और मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व राजस्थान के सोयाबीन उत्पादकों की तुलना में अमेरिकी मिडवेस्ट के किसानों और बड़ी बहुराष्ट्रीय ट्रेडिंग कंपनियों के हित ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इस पेपर को जारी करने की अनुमति किसने दी? और क्या यह भारत-अमेरिका आगामी व्यापार समझौते की झलक है?"

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कुछ ही समय पहले कृषि मंत्री शिवाराज सिंह चैहान ने यह बयान दिया था कि सरकार ने अभी जीएम बीजों की ओर न जाने का फैसला किया है। यानी कपास और सरसों के जीएम बीजों के अलावा अन्य फसलों के जीएम बीज अभी देश में इस्तेमाल नहीं हांेगे। अगर हम वर्किंग पेपर के निष्कर्ष को कृषि मंत्री के इस बयान से जोड़कर देखें तो इसका अर्थ हुआ कि जीएम फसलों को फायदा अमेरिकी किसानों को तो लेने दिया जाएगा लेकिन भारतीय किसानों को इससे वंचित रखा जाएगा। 

वैसे नीति आयोग ने यह जो पेपर अपनी जारी किया था वह वर्किंग पेपर था, पाॅलिसी पेपर यानी कोई ऐसा नीति पत्र नहीं था। इसलिए जाहिर है कि इसके निष्कर्षों को सरकार की नीति नहीं कहा जा सकता। लेकिन इससे यह तो समझा ही जा सकता है कि नीति आयोग में या सरकार में किस तरह की सोच चल रही है। या सरकार की सोच किस तरफ बढ़ रही है। आने वाले दिनों में इसे लेकर जो होगा उसका असर भारत की कृषि नीति और किसानों की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ेगा। 

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