इजरायल के साथ स्पाइक मिसाइल का समझौता रद्द होने के बाद फिर से मंजूर हो गया है। इस रक्षा सौदे के फिर से होने की जानकारी इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के जरिए ही देश को मिली। बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत के दौरान इस समझौते पर दोबारा सहमति बनी। इस तरह से इजरायल की स्पाइक डील को भी उसी राजनीतिक चैनल के जरिए मंजूरी मिली जिसके जरिए फ्रांस के साथ राफेल डील को रद्द करने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान दी गई थी। इसी तरह से स्पाइक डील को इजरायल के प्रधानमंत्री के भारत यात्रा के दौरान मंजूरी दी गई।
राफेल के समय घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी और स्पाइक के समय घोषणा नेतन्याहू ने की। रक्षा समझौते पर इस तरह की राजनीतिक पैंतरेबाजी भारतीय लोकतंत्र में नई परिघटना है।
जेरुस्लम डेटलाइन से राइटर ने जो खबर प्रकाशित की उसमें नेतन्याहू को उद्धरित करते हुए कहा गया, अपने मित्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जो मेरी बातचीत के मद्देनजर भारतीय सरकार ने हमें बताया कि स्पाइक डील वापस ट्रैक पर है। ये बहुत अहम समझौता है और अभी और भी कई अहम समझौते होंगे। नेतन्याहू ने एक संक्षिप्त वीडियो वक्तव्य में यह बात कही।
इसके बाद से कयास जारी हैं कि आखिर स्पाइक समझौता भारत सरकार ने रद्द क्यों किया था और अगर रद्द किया था तो फिर आनन-फानन में क्या महज राजनीतिक दबाव में इसे मंजूर किया गया है। अब बताया जा रहा है कि यह सीधे सरकार से सरकार की खरीद होगी। यानी अब दोबारा टेंडर आदि की प्रक्रिया की जरूरत नहीं पड़ेगी और न ही इसे लेकर संसद में ज्यादा हंगामा हो सकेगा। इसमें अब तकनीक हस्तांतरण की शर्त भी उस तरह से नहीं शामिल होने की आशंका जताई जा रही है। इसे सीधे-सीधे खरीदा जाएगा और संभवतः अब यह इजरायल के लिए ज्यादा हितकारी होगा।
दरअसल, जब दिसंबर में यह खबर आई की भारत सरकार ने 500 मिलियन डॉलर की स्पाइक एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल्स (एटीजीएम) का समझौता रद्द कर दिया है, तभी से इस पर हैरानी जताई जा रही थी। बीजेपी और खासतौर से नरेंद्र मोदी सरकार का इजरायल प्रेम जगजाहिर है। ऐसे में इस हथियार सौदे के रद्द होने के पीछे कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे।
इस बारे में जब संवाददाता ने अमेरिकी कंपनी लॉकिंग मॉर्टिन, जो इस मिसाइल समझौते में इजरायल की प्रतिद्वंद्वी कंपनी थी, के कुछ अधिकारियों से बातचीत की थी, तो उन्होंने यही कहा था कि स्पाइक समझौता रद्द होने के बाद तार्किक ढंग से अमेरिका की जैवलीन मिसाइल को प्राथमिकता मिलनी चाहिए लेकिन ऐसा राजनीतिक वजहों से नहीं होगा। उनका सीधा आशय भारत और इजरायल के बीच राजनीतिक संबंधों से था, और हुआ भी ऐसा ही।
इस हथियार समझौते पर मोदी सरकार ने ही 2014 में हस्ताक्षर किए थे और कीमतों को लेकर भी मामला 2016 में फाइनल हो गया था। उस समय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर थे और उन्होंने इस समझौते को तेजी से आगे बढ़ाने में अपनी अहम भूमिका भी बताई थी। कीमतों के बारे में अंतिम दौर की बातचीत राफेल एडवांसड डिफेंस सिस्सटम से हुई था और बस उस बाबत हस्ताक्षर होने ही बाकी थे। समझौता चूंकि पक्का ही माना जा रहा था इसलिए राफेल ने कल्याणी ग्रुप के साथ हैदराबाद में मिसाइल सब-सिस्टम्स फैसेलिटी भी स्थापित कर दी थी।
रक्षा मंत्रालय में सूत्रों के मुताबिक स्पाइक कई दौर की टेस्टिंग में खरी नहीं उतरी थी। एक आशंका यह भी थी कि जिस तरह से एनडीए की पिछली सरकार के दौरान इजरायल से हुए रक्षा समझौते बीजेपी सरकार के लिए बाद में भारी पड़े थे, वैसे ही ये भी न पड़ जाए। पिछली एनडीए सरकार में साल 2000 में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडीस के समय अनेकों रक्षा समझौते इजरायल के साथ हुए थे जिसमें बराक मिसाइल का विवादित समझौता भी शामिल था। इसी में बाद में फर्नाडीस के ऊपर भ्रष्ट्राचार के आरोप भी सामने आए थे। संभवतः स्पाइक सौदे में खामियों के उजागर होने के डर से जून 2016 में रक्षा विशेषज्ञों की रिव्यू कमेटी ने इन मिसाइलों को खुद ही बनाने का सुझाव भी दे दिया था। और इसी का सहारा लेकर दिसंबर से लेकर जनवरी के बीच भारत सरकार ने यह कहते हुए स्पाइक समझौता खारिज कर दिया कि इन्हें डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन) बनाएगा।
इन तमाम घटनाक्रम के दौरान भी रक्षा मामलों के विशेषज्ञ ब्रिगेडियर गुरमीत कंवल ने संवाददाता को बताया कि भारत जिस पैमाने पर इजरायल से हथियार खरीदता है, उसमें इजरायल के हितों के खिलाफ जाना संभव नहीं है। वर्ष 2010-2016 में भारत पूरे उत्तर ग्लोब में इजरायल से हथियार खरीदने वाला नंबर वन देश है।
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