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जोशीमठ भू धंसाव मामला: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज, राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने जोशीमठ संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग करते हुए याचिका दी है। अब तक 782 मकानों में दरारों की खबर है जबकि 148 भवन ऐसे चिह्नित किए गए हैं जिन्हें सरकार ने रहने के लिए असुरक्षित माना है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

जोशीमठ में हो रहे भू धंसाव की स्थिति लगातार और भी गंभीर होती जा रही है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट जोशीमठ भू-धंसाव से जुड़ी याचिका पर आज सुनवाई करेगा। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने जोशीमठ संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग करते हुए याचिका दी है। इससे पहले चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने तत्काल सुनवाई के लिए याचिका को सूचीबद्ध करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि हर महत्वपूर्ण चीज सीधे इसमें नहीं आनी चाहिए। पीठ में शामिल न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा ने कहा था, इस पर गौर करने के लिए लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित संस्थाएं हैं।

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याचिका में कहा गया है कि यह घटना बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण के कारण हुई थी और उत्तराखंड के लोगों के लिए तत्काल वित्तीय सहायता और मुआवजे की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की ओर से पेश वकील परमेश्वर नाथ मिश्रा ने याचिका दायर की है।

याचिका में जोशीमठ के निवासियों को सक्रिय रूप से समर्थन देने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को निर्देश देने की मांग की गई है और इस बात पर जोर दिया गया है कि मानव जीवन और उनके पारिस्थितिकी तंत्र की कीमत पर किसी भी विकास की आवश्यकता नहीं है।

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700 से अधिक घरों में दरारें

अभी तक 700 से ज्यादा घरों में दरारें देखी गई हैं और जमीन धंसने की खबरें आ रही हैं। वहीं, 86 घरों को असुरक्षित चिह्नित किया गया है। इसके अलावा, 100 से ज्यादा परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जा चुका है।

अधिकारियों के मुताबिक, गांधीनगर में 134 और पालिका मारवाड़ी में 35 घरों में दरारें आ गई हैं। वहीं, लोअर बाजार में 34, सिंहधार में 88, मनोहर बाग में 112, अपर बाजार में 40, सुनील गांव में 64, पारासरी में 55 और रविग्राम में 161 घर भी असुरक्षित जोन में आ गए हैं। बताया जा रहा है कि जोशीमठ में अब तक भूस्खलन से 723 घरों में दरारें आ चुकी हैं।

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दूसरी ओर नाराज लोगों ने जोशीमठ के धंसाव के लिए NTPC की तपोवन-विष्णुगाड़ 520 मेगावाट जल विद्युत परियोजना की टनल को कारण बताया है। लोगों का आरोप है कि इस टनल से प्राकृतिक जलस्रोत को जमीन के अंदर नुकसान हुआ है, जिससे पूरा पहाड़ धंसने लगा है।

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