वक्फ संशोधन बिल कोई कानून नहीं है बल्कि एक राजनीतिक फायदा उठाने का हथियार है, जिससे देश की विविधता को एक खास तरीके से खत्म करने के लिए मोदी सरकार इस्तेमाल कर रही है। यह बात राज्यसभा में वक्फ बिल पर हुई चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कही। उन्होंने कहा कि लोकसभा में भले ही यह बिल पास हो गया हो लेकिन जो अंतिम नतीजा है उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि विभिन्न दलों के विरोध के बाद भी इसे मनमाने तरीके से लाया गया है।
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मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोदी सरकार के उस दावे की हवा निकाल दी जिसमें कहा जा रहा है कि यह बिल मुस्लिम समुदाय की भलाई के लिए लाया गया है। उन्होंने आंकड़े पेश करते हुए कहा कि तस्वीर मौजूदा सरकार द्वारा बीते पांच साल के दौरान अल्पसंख्यक विभाग के लिए बजट आवंटन से साफ हो जाती है। खड़गे ने कहा कि 2019-20 में इस विभाग का बजट आवंटन 4700 करोड़ रुपए था जो घट कर 2023-24 में 2608 करोड़ रह गया। 2022-23 में बजट आवंटन 2612 करोड़ रुपए था जिसमें से 1775 करोड़ रुपए का खर्चा मंत्रालय कर ही नहीं कर पाया। कुल मिला कर पांच सालों में बजट मिला 18274 करोड़ रुपया, जिसमें से 3574 करोड़ व्यय नही हो पाया।
खड़गे ने कहा कि मोदी सरकार ने 2020 से मौलाना आज़ाद फेलोशिप, पढ़ो प्रदेश योजना, निशुल्क कोचिंग, यूपीएससी और राज्य आयोगों में तैयारी के लिए अल्पसंख्यक छात्रों की सहायता की योजना बंद कर दी। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद 1954 और 1995 में कानूनी पहल हुई। 2013 में राज्य वक्फ बोर्डों की मजबूती के लिए अधिनियम में संशोधन हुआ। यूपीए के दौरान 2013 में केंद्रीय वक्फ में 2 मुस्लिम महिलाओं को शामिल करने का प्रावधान रखा गया था। खुद बीजेपी ने दोनों समय, 1995 और 2013 में इन संशोधनों का समर्थन किया था। 1995 में राज्य सभा में सिकन्दर बख्त और लोक सभा में बन्दरू दत्तात्रेय ने अपनी बात रखते हुए समर्थन किया था।
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कांग्रेस अध्यक्ष ने आगे कहा कि 2013 के संशोोधन के समय भी चर्चा के वक्त लोक सभा में सैयद शाहनवाज हुसैन और राज्य सभा में मुख्तार अब्बास नकवी ने अपनी बात रखी थी और बिल का समर्थन किया था। उन्होंने कहा कि आप महिलाओं, पसमंदा मुस्लिम के सशक्तिकरण (इम्पॉवरमेंट) की बात करते है। अगर सशक्तिकरण करना है, तो हिंदू समाज में भी कीजिए। दलित, आदिवासी, महिलाओं, और पिछड़ों को मंदिरों में एंट्री दीजिए। उन्हें बराबरी का दर्जा दीजिए।
राज्यसभा में विपक्ष के नेता खड़गे ने कहा कि हैरानी है कि तमाम विरोध के बाद भी इसकी मूल संरचना से लेकर स्वरूप में आप बदलाव क्यों करना चाहते हैं। गैर-मुस्लिम उनके बोर्ड में क्यों शामिल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि विभिन्न समुदायों का विश्वास, पूजा पद्धति और रीति-रिवाज अलग है। हिंदू मंदिर प्रबंधन बोर्डों का स्वरूप अलग है, अन्य धर्मों के पूजा स्थलों और धर्म स्थलों का स्वरूप अलग है। खड़गे ने कहा कि ऐसा कोई काम नहीं होना चाहिए जो हमारे धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट करे।
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उन्होंने कहा कि इस विधेयक में आपने विचित्र खंड जोड़ा है। केवल वही व्यक्ति जो पांच साल से मुस्लिम है, वक्फ को संपत्ति समर्पित कर सकता है। खड़गे ने सवाल उठाया कि क्या किसी हिंदू को चर्च में दान देने से रोकने वाला भी कोई कानून है। एक हिंदू अगर किसी गुरुद्वारे में धन दान देता है तो क्या उस पर प्रतिबंध है? ये दो विधान बनाने वाली बात है। अल्पसंख्यकों के लिए अलग और अपने लिए अलग।
मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि यह विधेयक किसी सुधार के लिए नहीं, बल्कि नियंत्रण के लिए हैं। यह बाबा साहेब और संविधान निर्माताओं की सोच के विपरीत है। आप जवाब दीजिए और देश को बताइये की क्या हम लोग हिंदू मठों-मंदिरों के बोर्डो में ऐसी व्यवस्था करेंगे। क्या ईसाई, सिखों या पारसियों के संस्थानों में ऐसा करेंगे।
उन्होंने साफ कहा कि मोदी सरकार सिर्फ वक्फ संपत्तियों पर हमला नहीं कर रही है बल्कि यह संवैधानिक लोकतंत्र के विचार पर हमला कर रही है।
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