कोल्हापुरी चप्पलों के अनधिकृत उपयोग के आरोप में प्राडा के खिलाफ बंबई उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर अनुरोध किया गया है कि भारतीय कारीगरों के डिजाइन की कथित रूप से नकल करने के लिए इतालवी फैशन ब्रांड को उन्हें मुआवजा दिए जाने का आदेश दिया जाए।
प्राडा ने अपने बसंत/ग्रीष्मकालीन संग्रह में अंगूठे वाली चप्पलें प्रदर्शित कीं जिसकी कीमत प्रति जोड़ी एक लाख रुपए है।
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याचिका में कहा गया है कि प्राडा द्वारा प्रदर्शित चप्पलों का डिजाइन कोल्हापुरी चप्पल से अत्यधिक मिलता जुलता है।
पुणे के छह वकीलों द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, ‘‘कोल्हापुरी चप्पल महाराष्ट्र का सांस्कृतिक प्रतीक है।’’
यह याचिका प्राडा समूह और महाराष्ट्र सरकार के विभिन्न अधिकारियों के खिलाफ दायर की गई है।
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इसमें प्राडा को बिना किसी अनुमति के इस चप्पल का व्यवसायीकरण एवं उपयोग करने से रोके जाने और फैशन समूह को सार्वजनिक रूप से माफी मांगने एवं कोल्हापुरी चप्पलों के उपयोग की बात स्वीकार करने का निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि कोल्हापुरी चप्पल पहले से ही माल के भौगोलिक उपदर्शन (पंजीकरण और संरक्षण) कानून के तहत भौगोलिक संकेतक (जीआई) के रूप में संरक्षित है।
जनहित याचिका में कहा गया है, ‘‘अदालत प्राडा द्वारा अनधिकृत जीआई उपयोग पर स्थायी रोक लगाने और कारीगरों के समुदाय को प्रतिष्ठा एवं आर्थिक नुकसान के लिए मुआवजा दिए जाने का आदेश दे।’’
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इसमें जीआई-पंजीकृत मालिकों और कारीगरों के समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए प्राडा के खिलाफ जांच का भी अनुरोध किया गया है।
जनहित याचिका में कहा गया है कि प्राडा ने निजी तौर पर स्वीकार किया है कि उसका यह संग्रह भारतीय कारीगरों से प्रेरित है लेकिन उसने अभी तक मूल कारीगरों से औपचारिक रूप से माफी नहीं मांगी या उन्हें मुआवजा नहीं दिया।
याचिका में कहा गया है, ‘‘निजी तौर पर स्वीकृति आलोचना से बचने का एक सतही प्रयास मात्र प्रतीत होता है।’’
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