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लोकसभा चुनाव में मतदान का आखिरी दौर क्या आखिरी कील साबित होगा बीजेपी के लिए !

लोकसभा चुनावों का आखिरी चरण आते-आते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ भी दावे करने की वजह यह है कि पूरे चुनाव अभियान में उन्हें अंदाजा हो गया कि अब उनकी पार्टी डूबने जा रही है। तब ही वह अपने बारे में भी अजीब-अजीब तरह के दावे करने लगे।

फोटो : Getty Images
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सभी फेज में बीजेपी को यूपी में सीटें कम मिलने का आभास पार्टी नेतृत्व को रहा। अंतिम फेज में भी यही स्थिति रहने की संभावना है। इस फेज में मोदी की सीट वाराणसी भी है। यहां भले ही वह जीतने की स्थिति में लग रहे हों, यह तो साफ है कि यहां जीत उन्हें थाली में परोसकर नहीं दी जा रही है। ऐन चुनाव के बीच सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने जिस तरह बीजेपी से नाता तोड़ लिया, वह मोदी की परेशानी का पहला कारण है।

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कभी बीजेपी और संघ में ऊंची पहुंच रखने वाले गोविंदाचार्य साल में छह माह से अधिक वाराणसी में ही रहते हैं। उनसे और केंद्रीय मंत्री उमा भारती से मोदी- अमित शाह के रिश्ते कितने अच्छे-बुरे हैं, यह सबको पता है। गोविंदाचार्य खेमा इस कोशिश में है कि यहां अधिक-से-अधिक लोग नोटा बटन का इस्तेमाल करें। यह मोदी के लिए खतरे की घंटी है। वह चुनाव भले ही जीत जाएं, इस बार जीत का मार्जिन बहुत घटेगा।

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अंतिम फेज में गोरखपुर सीट भी है। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने से पहले इसी सीट से लड़ते और जीतते रहे। योगी के सीएम बनने के बाद यहां पिछले साल हुए उपचुनाव में संयुक्त विपक्ष ने यह सीट बीजेपी से छीन ली। 2014 की तुलना में बीजेपी को करीब 1 लाख कम मत मिले। माना जाता है कि इस बार पार्टी उम्मीदवार बनाए गए फिल्म अभिनेता रविकिशन भी मोदी-शाह की पसंद हैं और इस मामले में योगीआदित्यनाथ की सहमति लेने की जरूरत नहीं समझी गई। ऐसे में, योगी अगर यहां चुनाव में रुचि नहीं ले रहे, तो इसमें आश्चर्य नहीं है और फिर, रविकिशन के भविष्य की स्थिति समझी जा सकती है।

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यूपी में चंदौली भी महत्वपूर्ण सीट है। यह वाराणसी के पास है और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह का इलाका है। फिर भी, यह सीट बीजेपी के लिए दुष्कर ही दिख रही है। बीजेपी ने मौजूदा सांसद महेंद्र नाथ पांडेय को मैदान में उतारा है। बीजेपी यह सीट 2014 में 42 फीसदी मत लेकर जीत गई थी। मगर इस सीट पर सपा-बसपा के पिछली बार मिले मतों को जोड़ दें, तो वही 47 प्रतिशत से अधिक है। यही हाल गाजीपुर में है। पिछली बार बीजेपी सिर्फ 31 प्रतिशत मत के भरोसे जीत गई थी। मगर यहां सपा-बसपा को पिछली बार 52 प्रतिशत से भी अधिक वोट मिले थे।

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के एनडीए से अलग होने का खामियाजा बीजेपी को कई सीटों पर भुगतना पड़ सकता है। ऐसी सीटें हैंः घोसी, बलिया, कुशीनगर, देवरिया और रॉबर्ट्सगंज।

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