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...ताकि बीएमसी चुनाव में मिले बप्पा का आशीर्वाद, इसलिए नेता लगा रहे हैं गणपति मंडलों की दौड़

इससे पहले कभी नहीं देखा गया कि सीएम और डिप्टी सीएम पूरे शहर के गणपति मंडलों में माथा टेकने के लिए दौड़ लगा रहे हों। यहां तक कि घरों में विराजमान छोटे गणपति के दर्शन भी कर रहे हैं। विश्लेषक कहते हैं कि यह सिर्फ बीएमसी चुनाव के लिए राजनातिक पैंतरा है।

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महाराष्ट्र के चार राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धी हिंदुत्व की राजनीति का इस बार गणपति मंडलों ने खूब फायदा उठाया है। उन्हें सभी दलों ने दोनों हाथ से सहयोग किया है और उनके बैंक खाते खूब फले-फूले हैं।

बीते दो साल से तो कोविड प्रतिबंधों और लॉकडाउन आदि के चलते न तो मुंबई शहर में और न ही महाराष्ट्र में गणपति उत्सव मनाया गया था। लेकिन इस बार गणपति पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। और इस साल गणपति उत्सव से ऐन पहले महाराष्ट्र में सरकार बदल गई और उद्धव ठाकरे की जगह एकनाथ शिंदे सीएम बन गए। एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाला गुट खुद को असली शिवसेना साबित करने की जुगत में है और इसके लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहा है। उधर शिवसेना के बागियों को एकजुट करने में महती भूमिका निभाने वाले डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस भी उद्धव ठाकरे के भाई और एमएनएस नेता राज ठाकरे को अपने खेमे में लाने की निरंतर कोशिश कर रहे हैं।

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बप्पा के सहारे बीएमसी चुनाव जीतने की जुगत

इस तरह शिवसेना, एकनाथ शिंदे गुट, बीजेपी और एमएनएस, ये चारों ही राजनीतिक दल लोगों को रिझाने के लिए जगह-जगह गणपति मंडलों को प्रायोजित कर रहे हैं। यह जाहिर है कि धर्म को राजनीति में मिलाने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा में माफी मांगने के बावजूद, उद्धव ठाकरे हिंदुत्व के एजेंडे से हटने को तैयार नहीं हैं। वैसे बीजेपी और शिंदे दोनों खेमे उन पर "बाल ठाकरे के हिंदुत्व" को भूलने का आरोप लगाते रहे हैं। बाल ठाकरे का हिंदुत्व हिंसक और मुस्लिम विरोधी था।

उद्धव ठाकरे अपने हिंदुत्व की व्याख्या एक शांतिवादी, समावेशी 'जियो और जीने दो' के सिद्धांत और राजनीतिक विचारधारा के रूप में करते रहे हैं। उनके इस रुख को महाराष्ट्र के ऐसे लोगों का समर्थन मिला है जो हिंसक और उग्रवादी के रूप में अपनी पहचान नहीं चाहते हैं। ऐसे में गणपति, जो बिना अस्त्र-शस्त्र वाले देवता हैं और अहिंसक माने जाते हैं, इस तरह की राजनीति के लिए एक आदर्श शुभंकर हैं।

और यही वह कारण है जिससे बीजेपी परेशान है। इसीलिए जहां उद्धव ठाकरे गणपति उत्सव जैसे विशाल और बेहद लोकप्रिय आयोजन में अपनी लगातार उपस्थिति बनाए हुए हैं, वहीं अपने राजनीतिक इतिहास में पहली बार, बीजेपी ने भी बप्पा को अपना बनाने की कोशिश की है।

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पानी की तरह बहाया जा रहा पैसा

अभी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मुंबई में थे और वे भी एक गणपति मंडल से दूसरे मंडल की दौड़ लगाते दिखे। उन्होंने मुंबई के प्रसिद्ध लाल बाग के राजा के भी दर्शन किए। लालबाग-परेल के बीच के इलाके को शिवसेना का गढ़ माना जाता है। वैसे भी म्यूनिसपल चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में बीजेपी और एकनाथ शिंदे गुट शिवसेना से बीएमसी छीनने की कोशिश में लगे हुए हैं।

लेकिन उनके लिए विडंबना यह है कि मुंबई के जितने भी प्रसिद्ध गणपति मंडल हैं, उनका नियंत्रण या आयोजन शिवसेना शाखाओं द्वारा किया जाता है। ये शाखाएं राजनीतिक दलों से मंडल के आसपास अपने बैंनर, होर्डिंग आदि लगाने के लिए मोटी रकम वसूलती हैं। बताया जाता है कि प्रति बैनर दाम 5,000 से लेकर एक लाख रुपए तक हो सकता है। वहीं होर्डिंग के लिए 15,000 से लेकर 2 लाख रुपए तक चुकाना होता है। बैनरों पर राजनीतिक दल का चुनाव चिह्न और पार्षद बनने की कोशिश कर रहे नेता, सांसद या विधायक की फोटो होती है।

शिवसेना को बीएमसी से बाहर करने के प्रयासों में लगे बागी गुट के नेता खुलकर इन मंडलों में अपने बैनर आदि लगवा रहे हैं, लेकिन इस हड़बड़ी मे भूल गए हैं कि इस तरह वे दरअसल असली शिवसेना की ही मदद कर रहे हैं, क्योंकि चुनाव में तो फंड की जरूरत होती है।

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एक मोटे अनधिकृत अनुमान के मुताबिक इस बार गणपति मंडलों ने करीब 100 करोड़ रुपए की कमाई की है। इस साल गणपति मंडल स्थापित करने के लिए बीएमसी के पास 3,064 आवेदन आए थे। इनमें से 2,465 मंडलों को बीएमसी ने मंजूरी दी थी। हर मंडल पर 20-25 बैनर-होर्डिंग आदि तो लगे ही हैं। साधारण जोड़ भी करें तो सामने आ जाता है कि राजनीतिक दलों ने इस बार कितना पैसा लगाया है।

एक और नई बात इस बार के उत्सव में देखने को मिली है। वह यह कि शिंदे, फडणविस, आदित्य ठाकरे और राज ठाकरे के पुत्र अमित ठाकरे, सभी इस बार छोटे से छोटे गणपति मंडल का भी दौरा कर रहे हैं। छोटी-छोटी हाऊसिंग सोसायटी में भी इन लोगों ने मौजूदगी दर्ज कराई है।

हिंदुत्व के नए शुभंकर की खोज

लेकिन गणपति को लेकर राजनीतिक दलों के इस नए प्रेम से महाराष्ट्र के लोग खुश हैं और वे क्या सोचते हैं?

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई का कहना है, “उत्सव का अब पूरी तरह राजनीतिकरण हो चुका है। मैंने अपने जीवन में इस तरह की सियासी हलचल गणपति के मौके पर कभी नहीं देखी। एक तरह से यह एक ऐसी दौड़ है जिसमें हर कोई खुद को कट्टर हिंदुत्व का अगुवा साबित करना चाहता है।”

देसाई की टिप्पणी में अमित शाह के हाल के मुंबई दौरे का संदर्भ निहित है कि महाराष्ट्र के लोग इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि भगवान राम का पूरी तरह राजनीतिक फायदा लेने के बाद बीजेपी अब गणपति को महाराष्ट्र में अपने हिंदुत्व के एजेंडे का आधार बनाना चाहती है।

राजनीतिक टिप्पणीकार सुरेंद्र जोंधाले की राय भी ऐसी ही है। वे कहते हैं कि इससे पहले तो कभी नहीं देखा गया कि सीएम और डिप्टी सीएम पूरे शहर में गणपति मंडलों में माथा टेकने के लिए दौड़ लगा रहे हों। यहां तक कि घरों में विराजमान छोटे गणपति के दर्शन भी कर रहे हैं। वे कहते हैं, “यह सिर्फ और सिर्फ बीएमसी चुनाव के लिए राजनातिक पैंतरा है।”

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बीएमसी पर कब्जे को लेकर क्यों लालायित हैं राजनीतिक दल!

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बीएमसी को लेकर राजनीतिक दलों में इतनी होड़ क्यों है? दरअसल बीएमसी का बजट करीब 46,000 करोड़ का होता है, जो कई छोटे राज्यों के कुल बजट से भी बड़ा होता है। बीएमसी में सत्ता हासिल करने वाली पार्टी का प्रभाव बहुत अधिक होता है और वह अपने पार्टी कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों के लिए सौगातों का ऐलान कर सकती है।

2017 के चुनाव में बीजेपी बहुत कम अंतर से बीएमसी चुनाव हार गई थी। उसके हिस्से में शिवसेना की 84 सीटों के मुकाबले सिर्फ दो सीटें कम यानी 82 सीटें आई थीं। हालांकि उस समय मुख्यमंत्री रहे देवेंद्र फडणवीस ने सरकार में अपनी सहयोगी शिवसेना को हराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी।

और अब बीजेपी किसी भी तरह ठाकरे की शिवसेना को बीएमसी से बाहर करना चाहती है। बीएमसी पर शिवसेना का 1985 से अब तक (सिवाए 1992 से 1997 के बीच) कब्जा है। यहां बताना जरूरी है कि शिवसेना के साथ बीजेपी हमेशा बीएमसी में सहयोगी रही है, भले ही फडणवीस अब कोई भी आरोप लगाएं।

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बीएमसी पर कब्जे के लिए बीजेपी ने एक बार फिर अपने बांद्रा से विधायक आशीष शेलर को कमान सौंपी है। शेलर कहते हैं कि, “मैंने अपने कार्यकर्ताओं से कह दिया है कि अगले कुछ महीनों तक आक्रामक रवैया अपनाना है। इसकी शुरुआत दही हांडी से हो चुकी है। और अब हम हर हिंदू उत्सव को पूरे उत्साह से मनाएंगे।”

वैसे उद्धव ठाकरे ने भी यह साबित करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है कि मुंबई शहर में अब भी उनका ही राज चलता है। लालबाग-परेल बेल्ट, जिसे गणपति उत्सव का केंद्र माना जाता है और जहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, उन पर अधिकतर ठाकरे वाली शिवसेना के नेताओं का ही वर्चस्व है। इनमें तमाम ऐसे मंडल हैं जिनके अगुवा बाल ठाकरे द्वारा तैयार किए गए मनोहर जोशी, सुधीर जोशी, प्रमोद नवालकर और नारायण राणे जैसे नेता रहे हैं। और अब गणेश गली, अभ्युदय, नारे पार्क, ला मैदान और चिंचपोकली जैसे सभी मुख्य गणेश मंडलों का नियंत्रण ठाकरे की शिवसेना के नेताओं के हाथ में है। लाल बाग का राजा मंडल के सचिव भी शिवसेना के शिवड़ी सीट के समन्वयक सुधीर साल्वे हैं।

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महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना नेता अजय चौधरी कहते हैं, “उनके पास पैसा है और वे इसे गणपति मंडलों पर लुटा रहे हैं, लेकिन उत्सव खत्म होते ही यह कहीं नजर नहीं आएंगे। इनके दिमाग में तो सिर्फ बीएमसी चुनाव है। चुनाव के बाद यह गायब हो जाएंगे, लेकिन हम तो गणपति के समर्पित भक्त हैं, और हमेशा रहेंगे।”

अब बप्पा का आशीर्वाद किसे मिलेगा, यह कहना तो अभी जल्दबाजी है, लेकिन जिस तरह से उन्हें सियासी मकसद के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, इससे निश्चित रूप से गणपति प्रसन्न तो नहीं होंगे।

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