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निर्वाचन आयोग पहुंचे 'इंडिया' गठबंधन के नेता, बिहार में मतदाता गहन पुनरीक्षण का विरोध किया, नहीं मिला ठोस जवाब

राजेश कुमार ने कहा कि हमारी बातों पर चुनाव आयोग का कोई भी सकारात्मक जवाब नहीं मिला। मानो चुनाव आयोग ठान बैठा हो कि वो बिहार में 20% वोटरों को वोट के अधिकार से वंचित करके रहेंगे। इंडिया गठबंधन के नेता मिलकर बिहार वासियों के वोट के अधिकार के लिए लड़ेंगे।

निर्वाचन आयोग पहुंचे 'इंडिया' गठबंधन के नेता, बिहार में मतदाता गहन पुनरीक्षण का विरोध किया, नहीं मिला ठोस जवाब
निर्वाचन आयोग पहुंचे 'इंडिया' गठबंधन के नेता, बिहार में मतदाता गहन पुनरीक्षण का विरोध किया, नहीं मिला ठोस जवाब फोटोः वीडियोग्रैब

बिहार में चुनाव से महज कुछ दिन पहले शुरु हुए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ 'इंडिया' गठबंधन के नेता बुधवार को निर्वाचन आयोग पहुंचे और अपनी चिंताओं से अवगत कराते हुए अपना विरोध दर्ज कराया। हालांकि कई घंटों के इंतेजार के बाद चुनाव आयुक्तों से हुई मुलाकात में आयोग के तरफ से कोई ठोस जवाब नहीं मिला।

मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) लिबरेशन समेत 11 दलों के नेताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और अन्य चुनाव आयुक्तों से मुलाकात की और राज्य में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले किए जा रहे विशेष पुनरीक्षण को लेकर आपत्ति जताई।

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मुलाकात के बाद कांग्रेस नेता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि उन्होंने चुनाव आयोग के उस नए निर्देश का भी विरोध किया, जिसमें आयोग से मुलाकात के लिए केवल पार्टी अध्यक्षों को ही इजाजत देने की बात की गई है। सिंघवी ने कहा, "पहली बार, हमें चुनाव आयोग में प्रवेश के लिए नियम बताए गए। पहली बार हमें बताया गया कि केवल पार्टी प्रमुख ही आयोग जा सकते हैं। इस तरह के प्रतिबंध का मतलब है कि राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग के बीच आवश्यक संवाद नहीं हो सकता"

सिंघवी ने कहा, "हमने (संवाद के लिए) एक सूची दी थी, किसी भी अनधिकृत व्यक्ति को अनुमति नहीं दी गई थी। पार्टियों को केवल दो लोगों को अधिकृत करने के लिए मजबूर करना दुर्भाग्यपूर्ण है।" उनके अनुसार, कुछ वरिष्ठ नेताओं को तीन घंटे तक इंतजार करना पड़ा। हमें कुछ नियम बताए गए और कहा गया कि हर पार्टी से सिर्फ 2 लोग ही अंदर जाएंगे- जिसकी वजह से कई नेता मीटिंग में नहीं जा पाए, जिसके बारे में हमने अपनी शिकायत दर्ज कराई है।

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सिंघवी ने कहा कि उन्होंने एसआईआर की प्रकिया के संबंध में कई मुद्दे उठाए। उन्होंने कहा, "हमने पूछा कि पिछले संशोधन 2003 के बाद आज तक बिहार में कम से कम 5 चुनाव हो चुके हैं, तो क्या वे सारे चुनाव गलत थे? अगर आपको एसआईआर यानी 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' करना था तो इसकी घोषणा जून के अंत में क्यों की गई, इसका निर्णय कैसे और क्यों लिया गया? अगर मान भी लिया जाए कि एसआईआर की जरूरत है तो इसे बिहार चुनाव के बाद इत्मीनान से किया जा सकता था। जब 2003 में यह प्रक्रिया अपनाई गई थी, तो उसके एक साल बाद राष्ट्रीय चुनाव था और दो साल बाद असेंबली का चुनाव था, इस बार केवल एक महीने का ही समय है।

सिंघवी ने कहा कि पिछले एक दशक से हर काम के लिए आधार कार्ड मांगा जाता रहा है, लेकिन अब कहा जा रहा है कि आपको वोटर नहीं माना जाएगा- अगर आपके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं होगा। एक कैटेगरी में उन लोगों के माता-पिता के जन्म का भी दस्तावेज होना चाहिए, जिनका जन्म समय 1987-2012 के बीच हुआ होगा। ऐसे में प्रदेश में लाखों-करोड़ गरीब लोग होंगे, जिन्हें इन कागजात को जुटाने के लिए महीनों की भागदौड़ करनी होगी। ऐसे में कई लोगों का नाम ही लिस्ट में शामिल नहीं होगा, जो कि साफतौर पर लेवल प्लेइंग फील्ड का हनन है। लेवल प्लेइंग फील्ड चुनाव का आधार है और चुनाव, गणतंत्र का आधार है।

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उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने ये निर्णय कब और कैसे लिया, क्योंकि जनवरी तक ऐसा कोई नियम नहीं था। आपने इसकी घोषणा नहीं की, बल्कि एक एसएसआर प्रकाशित किया। आपने जनवरी 2025 में एसआईआर की कोई घोषणा नहीं की, एसआईआर का कहीं नाम तक नहीं लिया। ऐसे में अचानक जून के अंत में ये निर्णय कैसे लिया गया? हमने इस विषय में सुप्रीम कोर्ट के कई सारे फैसलों का उदाहरण दिया और अपनी बात रखी। हमने उन्हें बताया कि अदालत का मानना है कि इलेक्टोरल रोल से किसी को वंचित रखना गंभीर प्रताड़ना है।

बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार ने कहा कि बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने जिस तरह से एक तुगलकी फरमान जारी कर राज्य के लोगों को वोटिंग के अधिकार से वंचित करने की कोशिश की है, उसी को लेकर हमारा एक डेलीगेशन चुनाव आयोग से मिलने आया था। लेकिन हमें काफ़ी आश्चर्य हुआ कि चुनाव आयोग हमारी बात सुनने को तैयार नहीं था और चर्चा में जाने से पहले हम आधे घंटे तक जूझते रहे। चर्चा के दौरान चुनाव आयोग सिर्फ अपनी बातें कहने में व्यस्त रहा और हमें स्पेशल इंटेंशिव रिवीजन की प्रक्रिया समझाता रहा।

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राजेश कुमार ने कहा कि हमने यह भी कहा कि अगर चुनाव आयोग के लोग दक्षिणी बिहार में स्पेशल इंटेंशिव रिवीजन के लिए जाएंगे, तो उन्हें घरों में लोग मिलेंगे ही नहीं, क्योंकि वे बाहर के राज्यों में काम करते हैं। ऐसे में वो कैसे अपनी जानकारी दे पाएंगे? आने वाले समय में उत्तरी बिहार के लोग बाढ़ से प्रभावित होंगे। ऐसे में बाढ़ से घिरे लोग कैसे कागजात की व्यवस्था कैसे करेंगे और प्रक्रिया में शामिल कैसे हो पाएंगे- जिनका ख़ुद का जीवन असुरक्षा की भावना से घिरा हुआ होता है। हमारी इन बातों पर चुनाव आयोग का कोई भी सकारात्मक जवाब नहीं मिला। मानो चुनाव आयोग ठान बैठा हो कि वो बिहार में 20% वोटरों को वोट के अधिकार से वंचित करके रहेंगे। इन्हीं सब चिंताओं को देखते हुए हमने ठाना है कि बिहार में इंडिया गठबंधन के नेता एकसाथ मिलकर बिहार वासियों के वोट के अधिकार के लिए लड़ेंगे।

आरजेडी नेता मनोज झा ने सवाल किया कि क्या यह कवायद लोगों को मताधिकार से वंचित करने के बारे में है? उन्होंने कहा, "क्या आप बिहार में संदिग्ध मतदाताओं को ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं?" भाकपा (माले) लिबरेशन के नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने इस बात का उल्लेख किया कि बिहार में 20 प्रतिशत लोग काम के लिए राज्य से बाहर जाते हैं। भट्टाचार्य ने कहा, "चुनाव आयोग कहता है कि आपको सामान्य निवासी बनना होगा। इसलिए वे प्रवासी श्रमिक बिहार में चुनाव आयोग के मतदाता नहीं हैं। हमने कहा कि गरीबों के पास ये प्रमाणपत्र नहीं होंगे।"

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बता दें कि मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण की कवायद बिहार में शुरू हो चुकी है। इसे बाद में पांच और राज्यों- असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में लागू किया जाना है, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। बिहार में चुनाव से महज कुछ दिन पहले मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू करने पर विपक्ष ने सवाल उठाए हैं और इसे बीजेपी की साजिश बताया है।

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