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कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रही LNJP की ‘योद्धा’ डॉक्टर की जुबानी राजधानी की दास्तान, कहा- ये लड़ाई नहीं आसान

एलएनजेपी (लोकनायक) अस्पताल की एमएस डॉक्टर ऋतु सक्सेना ने कहा कि सभी डॉक्टर्स, नर्सों और सहयोगियों में इस रोग का डर था जिसके कारण न तो कोई वार्ड में जाना चाहता था और नही रोगियों से मिलना ही चाहता था।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

कोरोना वायरस के रूप में जाना जाने वाला कोविड-19 ने जीवन की पूरी अवधारणा को तोड़ दिया है जिसे हम सभी आज तक जानते हैं। हाल के दिनों में, किसी भी बीमारी ने इस तरह का कहर पैदा नहीं किया है। हर कोई इस से डरता है, फिर भी किसी को नहीं पता कि अपने आपको इससे कैसे बचाएं, कैसे अपने आस-पास और अपने लोगों से कैसे निपटें।

लेकिन इस तरह के परिदृश्य में, हर कोई आसानी से भूल गया है या यह नहीं जानता है कि सामने की रेखा या रक्षा की अंतिम रेखाएं क्या हैं यानी डॉक्टरों ने इस अवसर को बढ़ा दिया है, बावजूद वे खुद हम सभी की तरह अंधेरे में थे कि इस तरह की महामारी से कैसे निपटा जाए।

इसलिए, थोड़ा प्रकाश डालने के लिए मैं यानी डॉ ऋतु सक्सेना, एमएस, एलएनजेपी (लोकनायक) अस्पताल, दिल्ली सरकार से बात की। एलएनजेपी सबसे बड़ा और पहला अस्पताल, जिसे दिल्ली में कोविड ट्रीटमेंट हॉस्पिटल घोषित किया गया, ताकि इस संबंध में आने वाली चुनौतियों के बारे में पता चल सके।

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“दिल्ली में दंगे होने के तुरंत बाद हम डॉक्टरों के लिए एक नयी चुनौती थी कोरोना से जंग।शुरू में हमने कोशिश की क़ि हम सब को इस संक्रामक रोग के साथ लड़ने के लिए प्रशिक्षण दें। शुरुआत से ही हम यह अनुमान लगा रहे थे कि कई मरीज, जिनकी संख्या हज़ारों में हो सकती है, प्रभावित हो सकते हैं।

सबसे पहले हमारे पास वे यात्री आ रहे थे जिनका अंतरराष्ट्रीय यात्रा का इतिहास था और वे केवल हवाई अड्डे या राम मनोहर लोहिया अस्पताल (आरएमएल) से ही आ रहे थे। बाद में, हमारे रोगियों की संख्या में वृद्धि हुई और हमने अपने सामान्य वार्डों को भी कोविड वार्ड में परिवर्तित करना शुरू कर दिया।

यह आसान नहीं था क्योंकि हमें संक्रमण नियंत्रण नीति का पालन करना था और मौजूदा सेटअप में कई बदलावों की आवश्यकता थी जो कि मरीजों के इतने बड़े भार से निपटने के लिए कभी नहीं बनाया गया था। इसलिए, दिल्ली सरकार ने एलएनजेपी अस्पताल को एक समर्पित कोविड उपचार अस्पताल में बदलने का साहसिक निर्णय लिया। लेकिन यह इतना आसान काम नहीं था।सभी डॉक्टर्स, नर्सों और सहयोगियों में इस रोग का डर था जिसके कारण न तो कोई वार्ड में जाना चाहता था और नही रोगियों से मिलना ही चाहता था।

इसके लिए मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता थी और ऐसा करने के लिए, ऊपर से नीचे तक पूरे अस्पताल के कर्मचारियों के प्रशिक्षण और परामर्श सत्र आयोजित किए गए, जिसका जरुरी प्रभाव यह पड़ा कि उनका डर काफी हद तक कम हो गया था।

एलएनजेपी अस्पताल का आपात कालीन विभाग पहला और आखिरी स्टॉप सेंटर था जो अस्पताल में आने वाले / रेफर किए जाने वाले मरीजों से निपटता था। मेरे नेतृत्व में एलएनजेपी अस्पताल के इमरजेंसी विभाग के पूरे स्टाफ ने, उनके प्रोत्साहन और पूर्ण समर्पण के साथ, कार्यभार संभाला। सीमित डॉक्टरों और कर्मचारियों के बावजूद, एलएनजेपी अस्पताल के आपातकालीन विभाग को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जिसमें मरकज और गैर – मरकज़ रोगियों को क्वारंटाइन केंद्र से लाना और ले जाना भी शामिल है। सबसे बड़ी चुनौती उन्हें प्राप्त करने और उचित दस्तावेज और डेटा प्रबंधन के साथ भेजने की थी।

एक सबसे बड़ी चुनौती तब सामने आयी जब चिकित्सा निदेशक और उच्च प्रशासनिक अधिकारीयों का लगातार स्थानांतरण हो गया। बार-बार बदलती नीतियों के तनाव के कारण रोगी प्रबंधन का काम और बिना गलती के उसका अनुसरण करना आसान काम नहीं था। कोविड की इस यात्रा में जिसका आरंभ 17 मार्च, 2020 को शुरू हुआ था, जब एलएनजेपी अस्पताल के आपातकालीन विभाग को पहला मामला मिला, तो इसे कई कठिनाइयों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। शायद ही कभी एलएनजेपी अस्पताल के आपातकालीन विभाग को अधिकारियों और रोगियों द्वारा सराहना मिली होगी।

हमें कई तरह की जांच और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा परन्तु सौभाग्य से हम हर बार इन परिस्थियों से बाहर निकल आये।

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इन्फ्रास्ट्रक्चर और मैन पावर के मद्देनजर भी कई समस्याएं सामने आयी जिनका सामना सफलतापूर्वक करते हुए हम लगातार काम करते रहे। अनेका एक शिकायतों और समाधानों का सामना करते हुए हम कभी नहीं रुके। अनेक लोगों ने हमारा मनोबल गिराने की कोशिश की लेकिन उस पर हमने कभी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। मैं, खुद भूल गयी हूं कि एक अच्छी रात की नींद क्या होती है। मुझे याद नहीं कि आखिरी बार कब मैं पूरी रात सोई थी। मेरा फोन 17 मार्च, 2020 से 24x7 बजता रहता है। मैं अपने परिवार की देखभाल उस प्रकार नहीं कर पायी जिस प्रकार मुझे करनी चाहिए थी।

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लेकिन ये वे बलिदान है जिनका मुझे उन मरीजों के बड़े कल्याण के लिए कोई अफसोस नहीं है जिनके लिए हम एकमात्र प्रकाश के पुंज हैं। हम एलएनजेपी अस्पताल के आपातकालीन विभाग के कर्मचारी इस गति के साथ काम करते रहेंगे इस तथ्य को जानते हुए कि अभी इस कोविड का सबसे बुरा दौर आना बाकी है और हमें इसे सीमित संसाधनों के साथ संभालना है लेकिन मैं( डॉ.रितु सक्सेना) टीम लीडर के रूप में कामना करती हूं कि हम सभी इस महामारी से बाहर निकलें और सभी को यह साबित कर दें कि हमने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है और हम सर्वश्रेष्ठ हैं।”

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