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बीजेपी के लिए अशुभ है कम वोटिंग, अपने कोर वोटरों की उदासीनता से परेशान हैं पार्टी नेता

चुनाव के 4 चरण का मतदान हो चुका है, लेकिन मतदाताओं में चुनाव को लेकर कोई विशेष उत्साह नहीं दिख रहा। कमोबेश 2014 या उससे कम वोटिंग हो रही है। इसी कम मतदान प्रतिशत ने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है और अपने कोर वोटरों की उदासीनता से बीजेपी नेता परेशान हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

वोटरों के कम टर्नआउट से बीजेपी की परेशानी समझी जा सकती है। वह घबराहट में है। सर्वेक्षण एजेंसी एक्सिस माय इंडिया के चेयरमैन प्रदीप गुप्ता इसे ठीक ढंग से समझाते हैं। वह कहते हैं कि अभी किसी अंतिम नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी, लेकिन यह जानना जरूरी है कि कम टर्नआउट का नुकसान अलग-अलग जगह अलग-अलग होगा। यानी, जिन राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं, वहां कम टर्नआउट बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगा।

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जैसे, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा-जैसे राज्यों में कम टर्नआउट बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगा। अभी 15 राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं जिनमें 5 में बीजेपी गठबंधन की सरकारें भी शामिल है। यहां होने वाला कम टर्नआउट बीजेपी के लिए नुकसानदेह हो सकता है।

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सेंटर फॉर द स्टडीज़ ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएसडीएस) के निदेशक प्रोफेसर संजय कुमार भी ये बातें दूसरे ढंग से कहते हैं। वह भी कम टर्नआउट को बीजेपी के लिए अशुभ संकेत कहते हैं। मतदान प्रतिशत में कमी आना या 2014 जितना ही रहना ऐसे संकेत हैं।

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वह कहते हैं, हमने मतदान से लगभग पंद्रह दिन पहले एक सर्वे किया था। उसमें हमने पाया कि मतदाता, खासकर बीजेपी समर्थित मतदाता बहुत उत्साहित थे। लग रहा था कि ये वोट देने जरूर जाएंगे। लेकिन कांग्रेस और रीजनल पार्टियों के मतदाताओं में ऐसा जोश नहीं दिखा था। उन्हें लगता था कि ठीक है, वोट दे देंगे। लेकिन कुल टर्नआउट में बहुत ज्यादा इजाफा नहीं हुआ है।

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आमतौर पर होता यह है कि जब टर्नआउट बढ़ता है तो माना जाता है कि यह सत्ताधारी पार्टी को नुकसान पहुंचाएगा। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। पहले, दूसरे और तीसरे चरणों में भी टर्नआउट 2014 के मुकाबले या तो एक डेढ़ प्रतिशत बढ़ा या बराबर रहा। इन राज्यों में, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्य भी हैं जहां बीजेपी को एकजुट विपक्ष का सामना करना पड़ रहा है।

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मैं एक बात और सोच रहा था कि 2014 में जब पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ एक रोष था, तब भी उनके कार्यकर्ताओं ने एसपी, बीएसपी, आरजेडी और कांग्रेस को वोट दिया था। लिहाजा वे इस बार तो जरूर ही वोट कर रहे होंगे। मेरा मानना यह है कि बीजेपी शासित राज्यों में तो टर्नआउट बढ़ना चाहिए था, लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि वहां भी ऐसा नहीं हुआ। यह बीजेपी के लिए शुभ संकेत नहीं है।

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प्रो. कुमार यह भी कहते हैं कि नरेंद्र मोदी के प्रति लोगों का भरोसा पहले जैसा ही है लेकिन भरोसे और समर्थन में फर्क होता है। 2014 में मोदी के प्रति किसी का आलोचनात्मक रवैया नहीं था। इसी बात ने उनके पक्ष में एक लहर पैदा कर दी थी। इस बार ऐसी कोई लहर नहीं दिखाई दे रही है। लोगों का भरोसा अब भी मोदी पर है लेकिन यह भरोसा कितने मतों को आकर्षित कर पाएगा, यह आने वाला समय बताएगा।

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बीजेपी को पिछली बार उत्तर प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में अधिकांश सीटें मिली थीं जबकि राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड और दिल्ली में सभी सीटें उसके हिस्से में आई थीं। तब बीजेपी पीक पर थी।

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इस बार उसकी सीटें कम होनी हैं। ऐसे में बीजेपी होने वाले नुकसान की भरपाई कहां से करेगी, इस सवाल के जवाब में प्रो. कुमार कहते हैं, यह सच है कि इन सीटों की पूर्ति करना आसान नहीं है। उनकी निगाहें निश्चित रूप से उड़ीसा और कर्नाटक पर होंगी। हालांकि यह भी सच है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में बीजेपी मुख्य प्रतियोगी पार्टी है लेकिन यहां 2014 की तरह बीजेपी को बंटे हुए विपक्ष का नहीं बल्कि एकजुट विपक्ष का सामना करना है। विपक्षी गठबंधन बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती पेश करेंगे, ऐसा मेरा मानना है।

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बीजेपी उड़ीसा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अपने लिए कोई उम्मीद खोज सकती है लेकिन इन राज्यों में भी बीजेपी को तृणमूल कांग्रेस और नवीन पटनायक की बीजेडी से कड़ी चुनौती मिल रही है। और यही बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है।

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प्रो. कुमार का साफ तौर पर मानना है कि2014 की तरह कांग्रेस के खिलाफ मतदाताओं के मन में किसी तरह का रोष नहीं है, इसी तरह बीजेपी को लेकर उनके मन में किसी तरह का उत्साह भी नहीं है (विरोध है या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता) बल्कि मतदाताओं के भीतर बीजेपी को लेकर एक मायूसी है। यह मायूसी इसलिए हो सकती है कि बीजेपी उम्मीदों के मुताबिक डिलीवर नहीं कर पाई या जिस तरह के कामों की मतदाताओं ने उनसे अपेक्षा की थे, वे पूरे नहीं हुए।

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जाहिर है, इससे बीजेपी को नुकसान हो सकता है और होगा। अगर कम टर्नआउट की बड़ी वजह यह मायूसी है तो इसका परिणामों पर असर जरूर दिखाई देगा। प्रो. कुमार एक बात और साफ शब्दों में कहते हैं कि ऐसा कोई थर्मामीटर नहीं बना है जो सही-सही बता सके कि मतदाता कहां जा रहा है। यह सब आंकड़ों के आधार पर किया गया विश्लेषण ही है।

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प्रसिद्ध चुनाव विश्लेषक महेश रंगराजन टर्नआउट के संकेतों पर कुछ नहीं कहना चाहते। वह कहते हैं, चुनावी गणित पर 23 मई से पहले टिप्पणी करना मुझे उचित नहीं लगता। लेकिन दूरगामी राजनीति पर कुछ बातें कही जा सकती हैं। पहली बात यह कि 2014 में जिस तरह दस साल सत्ता में रह चुकी कांग्रेस के प्रति विरोध था, वैसा अब नहीं है। इस बार मतदाता मोदी सरकार के कामकाज पर वोट करेगा। किस तरफ वोट करेगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता।

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इस बार अलग- अलग राज्यों में अलग-अलग गठबंधन भी दिखाई दे रहे हैं। जैसे, बिहार में पहले नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और बीजेपी अलग-अलग थे, इस बार ये साथ हैं। इसी तरह यूपी, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश वगैरह अन्य राज्यों में भी अलग-अलग गठबंधन हैं। नए गठबंधनों और नए समीकरणों में मतदाताओं के मन की बात जानना आसान नहीं है। सब लोग सबको अपने मन की बात बताते भी नहीं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान-जैसे कुछ राज्यों में कांग्रेस को फायदा हो सकता है।

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