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महाराष्ट्र: बीजेपी का शिंदे-पवार के साथ खेल, और महायुति के भ्रम से विपक्ष को मिलता बल

बीजेपी के पास इन चुनावों में मोदी के कथित विकास के अलावा कोई मुद्दा नहीं है, जबकि विपक्ष के पास लोकतंत्र और संविधान को बचाने के साथ बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और केंद्रीय एजंसियों के गलत इस्तेमाल करने और मराठा आरक्षण के मुद्दे हैं।

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महाराष्ट्र में सीटों के बंटवारे के घमासान के बीच चुनावी हलचल भी तेज है। इस राज्य पर पूरे देश की नजर है। वजह है कि लोकसभा की 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र में ही सबसे ज्यादा 48 सीटें हैं। इसलिए यह राज्य न सिर्फ बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि विपक्ष के लिए भी मायने रखता है। इन सीटों की घटत-बढ़त से नरेंद्र मोदी के 400 पार के सपने का गणित प्रभावित हो सकता है। इसी गणित के चक्कर में बीजेपी कुछ अलग गणित पर भी काम कर रही है जिसमें वह उलझी हुई दिखती है। उलझन का ही नतीजा है कि भाजपानीत महायुति के पास आम जनता से जुड़ा कोई ठोस चुनावी मुद्दा नहीं है। महायुति के नेता मोदी के 10 साल के कथित विकास कार्यों को लेकर आम जनता के पास जा रहे है।

आरएसएस के एक पुराने स्वयंसेवक ओमप्रकाश अग्रवाल का कहना है कि ‘इस बार के चुनाव में एक ही मुद्दा है मोदी को जिताना है। कोई सामाजिक मुद्दा नहीं है जिसके सहारे लोगों से वोट मांगे जा सके।‘ वहीं उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना के नगरसेवक रामदास कांबले कहते हैं कि 'बीजेपी के पास कोई मुद्दा नहीं है। हिंदुत्व की बात करने वाली बीजेपी ने सत्ता के लालच में बाला साहेब ठाकरे की हिंदूवादी पार्टी शिवसेना को तोड़ने का काम किया। लेकिन उद्धव ठाकरे की शिवसेना के पास लोकतंत्र और संविधान को बचाने सहित कई देशहित के मुद्दे हैं जिसके लिए हम लोगों से वोट मांगेंगे।‘

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मुद्दा विहीन बीजेपी कुछ ऐसे काम कर रही है जिससे महायुति की सहयोगी पार्टियों में मतभेद के साथ मनभेद भी पैदा हो गया है। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि सीटों के बंटवारे में जिस तरह से एकनाथ शिंदे गुट और अजित पवार गुट को दबाने की कोशिश हो रही है उससे चुनाव में अच्छे नतीजे की उम्मीद नहीं की जा सकती है। बाहरी लोगों को टिकट दिए जा रहे हैं। इससे बागी तो खड़े होंगे ही।

हालांकि, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने सफाई देते हुए कहते हैं कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री अजित पवार के बीच मतेभद नहीं हैं। बावनकुले सफाई में कुछ भी कह लें लेकिन राज्य में जो परिदृश्य दिख रहे हैं उसमें सब कुछ साफ-साफ है। बीजेपी अपने दबाव तंत्र से काम कर रही है ताकि अपने हिस्से ज्यादा से ज्यादा सीटें ले ले और सहयोगी दल उनके रहमोकरम पर रहें। लेकिन इस दबाव का सबसे ज्यादा विरोध शिंदे गुट कर रहा है। शिंदे गुट के छह वर्तमान सांसदों के घर बैठने की नौबत आ गई है। शिंदे गुट के नेता संजय शिरसाट ने बीजेपी के कथित आंतरिक सर्वे का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि ‘हमारे सांसदों की सीटों पर आंतरिक सर्वे कराने वाली बीजेपी कौन है। हमारे सांसदों के बारे में फैसला लेने वाला हमारे नेता एकनाथ शिंदे हैं।' वे आगे कहते हैं कि बीजेपी ने सर्वे कराया और उसने निगेटिव बातें बताई लेकिन सर्वे में पोजेटिव क्या है वो क्यों नहीं बता रही है।‘

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सीटों को लेकर मारामारी से शिंदे गुट ने आठ सीटों पर अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। इस सूची में शिंदे के पुत्र श्रीकांत शिंदे का नाम नहीं है। शिंदे गुट महसूस कर रहा है कि सत्ता में जब एनसीपी के अजित गुट को शामिल किया गया था तब से शिंदे गुट कमजोर पड़ गया है।

शिंदे गुट की स्थिति पर तंज कसते हुए उद्धव गुट के प्रवक्ता संजय राऊत ने कहा है कि ‘50-50 खोके लेने वाले अब बीजेपी के गुलाम हैं। ये गुलाम आवाज कैसे उठा सकते हैं।‘

महाराष्ट्र की राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले राजनीतिक पंडितों की राय है कि बीजेपी अपनी उसी गलती को दोहरा रही है जो उसने बाला साहेब ठाकरे के बाद उनके पुत्र उद्धव ठाकरे के साथ की थी। अब बीजेपी जिस तरह का रवैया शिंदे और अजित गुट के साथ कर रही है उसका नतीजा भले ही लोकसभा में कम दिखे लेकिन राज्य में कुछ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में स्पष्ट रूप से दिख सकता है।

इस बीच बीजेपी उत्तर भारतीय विरोधी राज ठाकरे की पार्टी मनसे को भी महायुति में शामिल करने की कोशिश में जुटी हुई है।

बीजेपी ने इन गलतियों और भ्रम से विपक्ष को राजनीतिक बल मिल रहा है। यह सच है कि विपक्ष में भी सीटों को लेकर उठापटक है। लेकिन विपक्ष के पास लोकतंत्र और संविधान को बचाने के साथ बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और केंद्रीय एजंसियों के गलत इस्तेमाल करने और मराठा आरक्षण के मुद्दे हैं।

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प्रकाश आंबेडकर कितने प्रासंगिक

चुनावी राजनीति में हर दल के नेताओं की अपनी महत्वाकांक्षा होती है। ऐसी महत्वाकांक्षा से वंचित बहुजन आघाड़ी के नेता प्रकाश आंबेडकर भी परे नहीं हैं। पहले तो उन्होंने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से गठबंधन किया। इसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र के विपक्ष के महाविकास आघाड़ी के जरिए इंडिया गठबंधन का भी हिस्सा बनने का प्रयास किया। लेकिन इस गठबंधन से जुड़ने की शर्त पर उन्होंने सीटों की मांग की। कांग्रेस ने उन्हें सीट देने का वादा किया। बावजूद इसके आंबेडकर ने अपनी सीटों की मांग बढ़ा दी। मांग पूरी न होते देख आंबेडकर ने वंचित के आठ उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। इसके साथ ही उन्होंने नागपुर में कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन देने की भी घोषणा की।

इधर उद्धव गुट के नेता संजय राऊत ने कहा है कि आंबेडकर को आघाड़ी में वापस लाने के लिए बात की जा रही है। उन्होंने कहा कि ‘देश की लड़ाई में और संविधान को बचाने के लिए आंबेडकर को विपक्ष को सहयोग करना चाहिए।‘

आंबेडकर बाबा साहेब आंबेडकर के पोते हैं। 2019 में उन्होंने एआईएमआईएम और मुस्लिम संगठनों से गठजोड़ करके वंचित बहुजन आघाड़ी के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। लेकिन उनके एक भी उम्मीदवार को जीत नहीं मिली थी। 10 सीटों पर उनके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर थे। इससे कांग्रेस और एनसीपी के वोटों में सेंध लगी और 9 सीटों पर बीजेपी-शिवसेना को जीत मिली थी।

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आंबेडकर के वंचित में इस बार एआईएमआईएम साथ नहीं है। उनसे कोरेगाव भीमा आंदोलन और मुस्लिम समाज के लोग भी नाराज हैं। क्योंकि, उन्होंने उनके लिए कुछ नहीं किया है। यह माना जा रहा है कि 2019 के मुकाबले वंचित की ताकत कम हुई है। वैसे, आंबेडकर ने मराठा आंदोलन के कार्यकर्ता मनोज जरांगे को भी वंचित में शामिल होने का प्रस्ताव दिया है। जरांगे ने कहा है कि वह इस बारे में 30 मार्च को अपनी भूमिका स्पष्ट करेंगे।

राज ठाकरे करेंगे खुलासा

महाराष्ट्र में गठबंधन की राजनीति में नए-नए मोड़ देखने को मिल रहे हैं। बीजेपी की महायुति में राज ठाकरे के भी शामिल होने की अटकलों से राजनैतिक माहौल बदला हुआ दिख रहा है। चर्चा तो यह भी है कि राज की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का एकनाथ शिंदे की शिवसेना में विलय हो जाएगा। मनसे को दो या तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का भी मौका मिलेगा। ये सारी बातें मीडिया में है। राज ने इस बारे में अभी तक कुछ नहीं कहा है।

मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी यह सब उद्धव ठाकरे के मराठी वोट को बांटने के लिए कर रही है। लेकिन उसके लिए राज का उत्तर भारतीय विरोधी चेहरा भी परेशानी का सबब बना हुआ है। इसलिए बीजेपी राजनीतिक गणित दुरूस्त करके राज को महायुति में शामिल करने का खेल खेलने की जुगत में है।

राज दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात और बात कर चुके हैं। इसके बाद मुंबई में एक पांच सितारा होटल में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ भी गुफ्तगू हो चुकी है। मनसे नेता बाला नांदगांवकर ने कहा है कि ‘राज ने बीजेपी से लोकसभा की तीन सीटों की मांग की है।‘ अब गुड़ी पड़वा (9 अप्रैल) के दिन राज बताएंगे कि उनकी पार्टी महायुति में शामिल हो रही है या नहीं। मनसे को शिंदे की शिवसेना में विलय कराना है या नहीं। 

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