भारत में मोटापा कम करने और टाइप-2 डायबिटीज के लिए आने वाली दवाओं के बाजार में अब प्रतिस्पर्धा कड़ी होने लगी है। अमेरिका की बड़ी दवा कंपनी एलि लिली ने भारतीय बाजार में वजन कम करने के इंजेक्शन बेचने का ऐलान किया है, लेकिन इनकी कीमत 14 से 17 हजार रुपए तक है। हालांकि भारतीय दवा कंपनियां भी इस क्षेत्र में हैं, लेकिन बहस इस बात की छिड़ गई है कि मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भरता के साथ ही लोगों को किफायती दवा मुहैया कराने के नारे का क्या होगा, क्योंकि भारतीय कंपनियां भी देखा-देखी अपने दाम बढ़ा सकती हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मोटापे और उससे होने वाले खतरे का जिक्र करते हुए लोगों से खाने में कम तेल के इस्तेमाल की वकालत की थी। इसके कुछ ही दिनों बाद अमेरिका की बड़ी दवा कंपनी एली लिली ने भारतीय बाजार में वजन कम करने वाले इंजेक्शन बेचने का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री ने अपने कार्यक्रम में लांसेट के एक अध्य्यन का जिक्र करते हुए कहा था कि 2050 तक भारत में 4.4 करोड़ भारतीय मोटापे से ग्रसित हो सकते हैं। भारत में फिलहाल मधुमेह (डायबिटीज) के शिकार लोगों की संख्या करीब 10.10 करोड़ है।
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दरअसल मोटापे को एक बार-बार होने वाली बीमारी के साथ ही डायबिटीज होने के प्रमुख कारणों में से एक के तौर पर जाना जाता है, साथ ही मोटापा करीब 200 किस्म के स्वास्थ्य संबंधी विकारों के लिए भी जिम्मेदार है। इनमें हाईपरटेंशन, हाई ब्लड प्रेशर (उच्च रक्तचाप), डिस्लिपिडेमिया, कोरोनरी हृदय रोग और ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया आदि जैसी बीमारियां शामिल हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2023 तक, भारत में वयस्क मोटापे से करीब 6.5 प्रतिशत आबादी प्रभावित या ग्रसित है, जो करीब 10 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है।
भारत में बढ़ते मोटापे और डायबिटीज को देखते हुए वैश्विक दवा कंपनियां इस मौके का फायदा उठाना चाहती हैं। एली लिली और डेनिश दवा कंपनी नोवो नॉर्डिस्क जैसी बड़ी कंपनियों ने अब भारत में वजन घटाने वाली दवाएं लॉन्च की हैं। इनकी मंहगी कीमतों के कारण अगर कोई मरीज इन कंपनियों की दवा इस्तेमाल करता है तो साल में 1.5 लाख रुपये से ज़्यादा का खर्च आएगा, जो कि ज़्यादातर भारतीयों की पहुंच से बाहर है। इतना ही नहीं, एली लिली ने भारत में इस दवा को एक विशेष कीमत पर पेश किया है, जिसकी न्यूनतम खुराक पर मरीज को हर महीने 14,500 रुपये खर्च करने होंगे। अमेरिका में यही इंजेक्शन कंपनी 86 हज़ार से एक लाख रुपये प्रति महीने की कीमत पर बेचती है।
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भारतीय जेनेरिक दवाओं पर अगले महीने से लागू होने वाले अमेरिकी टैरिफ के मंडराते खतरे से अमेरिकी बाजार में सस्ती भारत निर्मित दवाओं की आपूर्ति में भी रुकावट आ सकती है। मौजूदा समय में अमेरिका में खपत होने वाली सभी जेनेरिक दवाओं में से लगभग आधी भारत से आती हैं, जिनमें हाई ब्लड प्रेशर और मानसिक स्वास्थ्य विकारों के लिए जीवन रक्षक उपचार शामिल हैं। विडंबना यह है कि जिस तरह भारत मोटापे से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा है, उसी तरह अमेरिका भारत में निर्मित जेनेरिक दवाओं तक पहुंच को प्रतिबंधित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, जो डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशन जैसी मोटापे से संबंधित स्थितियों के इलाज के लिए महत्वपूर्ण हैं।
एली लिली और नोवो नॉर्डिस्क के नए वजन घटाने वाले इंजेक्शन ने एक तीखी बहस छेड़ दी है। एक तरफ कुछ लोग मोटापे से जूझ रहे लोगों के लिए इन दवाओं को एक गेम-चेंजर के तौर पर देख रहे हैं, वहीं अन्य लोग सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे पर पैसे कमाने की नैतिकता पर सवाल उठा रहे हैं। आलोचकों का तर्क है कि मोटापे के उपचार के इस व्यावसायीकरण से स्वास्थ्य संबंधी असमानताएं बढ़ सकती हैं। यह बहस सार्वजनिक स्वास्थ्य की वकालत और दवा कंपनियों की फायदा कमाने वाली रणनीतियों के बीच अंतर को रेखांकित करती है।
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फिलहाल एली लिली को सबसे पहले भारत में अपनी दवा लॉन्च करने का फायदा मिल सकता है, वहीं नोवो नॉर्डिस्क भी कतार में है, क्योंकि इस कंपनी को भी भारतीय विनियामकों ने वजन घटाने वाली दवा पेश करने की मंजूरी दे दीई है। एली लिली को सन फार्मा, सिप्ला, डॉ. रेड्डीज और ल्यूपिन जैसी भारतीय दवा कंपनियों से चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जो वजन घटाने वाली दवाओं के जेनेरिक संस्करण बनाने की होड़ में हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात पर हैरान हैं कि क्या महंगी वजन घटाने वाली दवाओं की बढ़ती मांग भारत के मोटापे की समस्या का वास्तविक समाधान पेश करती है, या फिर यह सिर्फ बड़ी फार्मा कंपनियों के लिए एक आकर्षक अवसर के रूप में काम करती है, जबकि सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बोझ बढ़ता ही जा रहा है?
और क्या यह सिर्फ संयोग है कि प्रधानमंत्री ने जब मन की बात में मोटापे का जिक्र किया और इसके कुछ ही समय बाद एलि लिली ने भारत में अपनी दवा लॉन्च कर दी?
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