उत्तर प्रदेश की राजधानी से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर लखनऊ-रायबरेली मार्ग पर एक टिन शेड के नीचे चलाए जा रहे एक छोटे से भोजनालय के सामने खाद्यान्न से भरा ट्रक रुका। ट्रक के ऊपर बैठे करीब 43 लोगों ने चाय बेचने वाले से पानी मांगा। चाय बेचने वाले ने उनसे नीचे उतरने के लिए कहा लेकिन उन लोगों ने मना कर दिया। ट्रक के ऊपर खड़े मैले-कुचैले कपड़े पहने एक युवक ने कहा, "नीचे आए तो जगह चली जाएगी।" वह 34 वर्षीय भूषण है और आजमगढ़ में अपने घर की ओर जा रहा है।
वह महाराष्ट्र के सतारा में एक मोटर मैकेनिक के रूप में काम कर रहा था। जब लॉकडाउन 2.0 शुरू हुआ, तो वह एक दोस्त के साथ साइकिल पर मुंबई गया। उसने बताया, "मैं लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार कर रहा था, लेकिन जब इसे फिर से बढ़ाया गया, तो मेरे दोस्तों और मैंने घर लौटने का फैसला किया।" भूषण और उसके दोस्त 2 मई को मुंबई से पैदल ही निकल पड़े।
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उसने कहा, "हम लंबी दूरी तक चले और लिफ्ट लेकर ट्रकों से भी यात्रा की। कुछ ड्राइवरों ने तरस खाकर हमें लिफ्ट दे दिया और कुछ ने रुखाई से मना कर दिया। बीच में, जहां भी भोजन और पानी वितरित किया जा रहा था, हमने वहां आराम भी किया।" भूषण और उसके दोस्त राज्य सरकार द्वारा प्रवासी कामगारों को दी जाने वाली मदद से अनजान हैं। उसने कहा, "हमको तो कुछ नहीं मिला। कोरोना क्या करेगा? मरना होगा तो मर जाएंगे।"
समूह को इस तथ्य के बारे में भी पता नहीं है कि जब वे अपने गांवों में पहुंचेंगे, तो उन्हें क्वारंटाइन कर दिया जाएगा। लॉकडाउन के पहले नवी मुंबई की एक कपड़े की फैक्ट्री में काम करने वाले कमलेश पाठक (30) ने कहा, "ये क्या होता है?"
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ट्रक ड्राइवर, इस बीच, समूह को नीचे आने और फ्रेश होने के लिए कहता है। अगले आधे घंटे के लिए, लड़के पास के एक नलकूप पर स्नान करते हैं। वे फोटो खिंचवाने से मना कर देते हैं- उनमें से एक ने कहा, 'पुलिस पकड़ लेगी।' लोगों का कहना था कि उनके पास केवल 310 रुपये बचे हैं। चाय बेचने वाला केवल 100 रुपये लेता है और वह सबको चाय और समोसा देता है। वह बची हुई रकम भी नहीं मांगता है। चाय विक्रेता उदय कुमार गंभीरता के साथ कहते हैं, "मुश्किल वक्त है। इंसान की मदद तो इंसान ही करेगा।"
ये लोग मध्य प्रदेश में ट्रक पर सवार हुए थे। जैसे ही समूह ट्रक के ऊपर चढ़ता है, ट्रक चालक कहता है कि पुलिसकर्मियों ने कुछ चौकियों पर मुसीबत खड़ी कर दी थी। वह कहता हैं, "मैं इन लोगों से लेट जाने के लिए कहता हूं, ताकि पुलिस न देख सके। मैं जौनपुर जा रहा हूं और उन्हें वहां छोड़ दूंगा। वहां से उन्हें अपने दम पर प्रबंध करना होगा।"
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इन लोगों ने अपने परिवारों को अपनी यात्रा के बारे में सूचित नहीं किया है। भूषण कहते हैं, "मोबाइल में पैसा नहीं है, फोन डिस्चार्ज भी हो गया है।" इस बीच, लॉकडाउन हटने के बाद ज्यादातर लोग अपने काम पर लौटने के लिए तैयार हैं। कमलेश कहते हैं, "हमारे मालिक ने कहा कि हम यहां क्या करेंगे? हमें वापस जाना होगा और वहां कुछ काम करना होगा। हम केवल इसलिए महाराष्ट्र गए क्योंकि यहां कोई काम नहीं था।" उसने कहा कि मालिक ने कहा है कि जैसे काम शुरू होगा वे उन्हें सूचित करेंगे।
समूह के अधिकांश लोग 30 की उम्र के आसपास के हैं और उन्हें बस इस बात का अफसोस है कि वे अपने परिवार की मदद के लिए पैसा नहीं ले जा रहे हैं। बलिया जिले के रहने वाले सुरजीत ने कहा कि लॉकडाउन में गुजारा करने के चक्कर में ही सारे पैसे खत्म हो गए। मैं पहली बार अपनी तीन बहनों के लिए मिठाई का डिब्बा तक नहीं ले जा रहा हूं।
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