चीन मसले को लेकर कांग्रेस लगातार मोदी सरकार को घेर रही है। आज कांग्रेस ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन के साथ पुराने और गहरे संबंध होने के बावजूद चीन हमारी जमीन पर कब्जा करता है और लगातार आगाह किये जाने के बाद भी सरकार इस बारे में मौन रहती है तो इस चुप्पी की वजह देश को बतायी जानी चाहिए। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने वीडियो कांफ्रेंसिंग कर कहा कि आज देश की सीमाओं पर एक गंभीर चुनौती आई है। सरकार के सामने दो विकल्प हैं, या तो पूरे देश को साथ लेकर सेना के पीछे खडे होकर चीन का मुकाबला करें और या शुतुरमुर्ग की तरफ रेत मे सर छुपाकर यह मान लें कि LAC पर कोई घुसपैठ हुई ही नहीं।
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उन्होंने कहा कि अफसोस कि मोदी सरकार ने एक तीसरा रास्ता चुना, जहां जो सेवानिवृत सेना अधिकारी, सुरक्षा विशेषज्ञ, विपक्ष, मीडिया कोई भी अगर सरकार से सीमाओं की अखंडता पर प्रश्न पूछे या सरकार को आगाह करें तो उन्हें लाल आंख दिखाई जा रही है और देश के दुश्मन को क्लिन चिट दी जा रही है। प्रधानमंत्री का वक्तव्य कि कोई घुसपैठ हुई ही नहीं आज तक चीन पूरे विश्व समुदाय को मोदी जी द्वारा दी गई एक क्लिन चिट के तौर पर दिखा रहा है। मोदी जी कहते हैं कि चीन आया ही नहीं और चीन भी कह रहा है कि हम तो अपने भूभाग पर हैं और गलवान हमारा भूभाग है।
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कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि यह जगजाहिर है कि मोदी के संबंध चीन के साथ बहुत पुराने और बहुत गहरे भी है। मोदी के साथ ही बीजेपी के भी चीन और वहां की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गहरे संबंध रहे हैं। बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और अमित शाह ने इन संबंधों को और आगे बढ़ाने का काम किया है।
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उन्होंने कहा कि मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो चीन सहित कुछ देशों के शीर्ष नेताओं से उनसे गहरे संबंध थे। इन्हीं संबंधों के कारण मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए चार बार चीन की यात्रा गये थे। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने 2014 में श्री मोदी की तारीफ करते हुए लिखा था कि चीन मोदी के साथ काम करने में ज्यादा सहज महसूस करती है। यहां तक कि गुजरात विधानसभा चुनाव के समय भी ग्लोबल टाइम्स ने कहा था कि चीनी कंपनियां चाहती हैं कि गुजरात में बीजेपी जीते।
पवन खेड़ा ने आगे कहा कि चीन के कहने पर मोदी सरकार उसके अनुसार निर्णय लेती रही है। कुछ साल पहले चीन के कहने पर ही सरकार ने सीमा पर अपने बंकर हटाए और इस शर्त के पूरा होने के बाद ही चीन पीछे हटा। मतलब की भारतीय सीमा ने जो बंकर अपनी सीमा में बनाए थे, उनसे उन्हें चीन के कहने पर पीछे हटने को कहा गया। उन्होंने कहा कि डोकलाम में 73 दिन का गतिरोध रहा और फिर बातचीत के बाद दोनों सेनाएं पीछे हटी। इसके बावजूद चीन वहां लगातार निर्माण करता रहा लेकिन पीएम मोदी कुछ नहीं बोले।
उन्होंने आगे कहा कि 2014 के बाद का इतिहास भी सबके सामने है। मोदी जी बतौर प्रधानमंत्री 5 बार चीन गए और 3 बार चीन के राष्ट्रपति को भारत आमंत्रित किया। 2014 में अहमदाबाद, 2016 में गोवा और 2019 में महाबलिपुरम में। हम सब ने देखा कि एक तरफ मोदी जी और चीन के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जी साबरमती के किनारे झुला झुलते हुए फोटो खिंचवा रहे थे और वहीं दूसरी तरफ चीन के सैनिक लद्दाख के चुमार इलाके में घुसपैठ कर रहे थे। साथियों चुमार पर चीन सशर्त पीछे हटा भारत के तिबले में जो Observation Hut थी उसको भी हटाना पड़ा।
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उन्होंने आगे कहा कि आज जब चीन की सेना ने भारत के लद्दाख में गलवान घाटी वाले इलाकों में घुसपैठ की है। तमाम सेना मामलों के जानकार यह बता रहे हैं, भारतीय जनता पार्टी कि लद्दाख की सभासद Urgain बता रही हैं कि चीन लद्दाख के गलवान घाटी इलाके बहुत आगे तक आ चुका है और सरकार ध्यान नहीं दे रही तो हम तो आपसे नहीं पूछ रहे मोदी जी कि आपके जो चीन से संबंध हैं उस घनिष्टता का क्या राज है और उन संबंधों से भारत को नुकसान क्यों हो रहा है? हम तो आपसे यह पूछ रहे कि पिछले डेढ दशक से राजनाथ सिंह जी हों, नितिन गडकरी जी हों, भारतीय जनता पार्टी के जितने भी अध्यक्ष रहे हों चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी से संबंध बनाते रहे तो उसका देश को क्या लाभ हुआ ?
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