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सरकारी बिग बाजार में ‘सेल’: मुनाफा कमा रहे तीन स्टील प्लांट बेचने की तैयारी में मोदी सरकार

जीएसटी लागू होने के बाद से सरकार के राजस्व में आई कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया तेज़ कर दी है। इसी कड़ी में सरकार ने अब स्टील बनाने वाले सरकारी कारखानों की ‘सेल’ लगा दी है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

नरेंद्र मोदी सरकार ने 2019-20 के बजट में 1 लाख 5 हजार करोड़ के विनिवेश का लक्ष्य रखा है। इससे पहले 2018-19 में 80 हजार करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा था। सरकार को इस मद में 84,971 करोड़ रुपये की प्राप्ति हुई है। इससे उत्साहित होकर सरकार ने इस साल बजट लक्ष्य में लगभग 30 फीसदी का इजाफा किया है, जो आय के सभी स्रोतों में सबसे अधिक है।

दरअसल, नोटबंदी और जीएसटी के बाद सरकार की राजस्व हानि में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इसे काबू करने के लिए सरकार ने सरकारी संपत्तियों को बेचने पर अपना ध्यान बढ़ा दिया है। इसे ही सरकारी भाषा में पूंजी विनिवेश कहा जाता है। पूंजी विनिवेश की जिम्मेवारी निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (डीआईपीएएम) की है। विभाग की वेबसाइट बताती है कि 2014-15 से 2018-19 के बीच 2,79,620 करोड़ रुपये का विनिवेश किया गया है।

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विनिवेश का सिलसिला कई सालों से चल रहा है और हर बजट में विनिवेश का बजट रखा जाता है। विनिवेश का आधार यह होता रहा है कि जो सरकारी उपक्रम लगातार नुकसान में चल रहे हैं, उन्हें बेच दिया जाएगा। लेकिन निजी निवेशक उन उपक्रमों में अधिक रुचि नहीं लेते हैं जो घाटे में हों। इसीलिए हर बजट का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता। उदाहरण के लिए, 2011-12 के बजट में डीआईपीएएम का लक्ष्य 40 हजार करोड़ रुपये रखा गया था लेकिन विनिवेश हो सका 13,894 करोड़ का ही। इसी तरह 2012-13 में 30 हजार करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा गया। लेकिन हुआ 23,957 करोड़ रुपये का। 2013-14 में 40 हजार करोड़ रुपये के लक्ष्य के मुकाबले 15,819 करोड़ रुपये ही हासिल किए जा सके।

लेकिन, मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बजट में अनुमानित लक्ष्य के मुकाबले अधिक राशि हासिल होने लगी है जबकि लक्ष्य भी लगभग दोगुना हो गया है। इसकी वजह जानकार बताते हैं कि लाभ अर्जित कर रहे उपक्रमों को विनिवेश की सूची में डालने के बाद से यह विभाग सरकार की आमदनी का बड़ा हिस्सा बन चुका है। मतलब, जिन कंपनियों को लाभ हो रहा है, उन्हें भी बेचने की सूची में डाला जा रहा है। रेलवे और हवाई कंपनियों के मामले में यही हो रहा है।

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इसी तरह सरकार की इस सूची में महारत्न कंपनी- स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) के कई स्टील प्लांट शामिल हैं। इनकी बिडिंग की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इनमें पश्चिम बंगाल, दुर्गापुर स्थित सेल का अलॉय स्टील प्लांट, तमिलनाडु स्थित सलेम स्टील प्लांट और कर्नाटक के भद्रावती स्थित विश्वेश्वरैया ऑयरन एंड स्टील प्लांट शामिल हैं। सरकार के 100 दिनों के एजेंडे में ये तीन प्लांट भी शामिल हैं। 8 अगस्त, 2019 को उन निजी कंपनियों की घोषणा की जाएगी जिन्हें ये प्लांट दिए जाने हैं।

1973 में स्थापित सेल भारत सरकार की महारत्न कंपनी है जिसके कुल नौ स्टील प्लांट हैं जिनमें से तीन स्पेशल प्लांट हैं। सेल को साल 2018-19 में 66,967 करोड़ रुपये का राजस्व मिला था। 31 मार्च, 2019 को सेल की ऑथराइज्ड कैपिटल 5,000 करोड़ रुपये आंकी गई। इसमें 75 फीसदी हिस्सेदारी भारत सरकार की है जबकि 25 फीसदी हिस्सेदारी पब्लिक की। डीआईपीएएम की वेबसाइट पर अपलोड डॉक्यूमेंट के मुताबिक, 3 जुलाई, 2019 को सेल की मार्केट कैपिटल 21,352 करोड़ रुपये थी।

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इतनी बड़ी कंपनी की संपत्ति(प्लांट्स) पर सरकार की नजर 2016 से थी। इसको अमली जामा नीति आयोग ने पहनाया। नीति आयोग ने 2 अगस्त, 2016 को एक रिपोर्ट जारी की जिसमें केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की कई कंपनियों के विनिवेश की सलाह दी गई। इसमें सेल के तीन स्पेशल प्लांट- अलॉय स्टील प्लांट, तमिलनाडु स्थित सलेम स्टील प्लांट और कर्नाटक के भद्रावती स्थित विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील प्लांट शामिल थे। नीति आयोग ने सलाह दी कि इन तीनों प्लांटों के प्रबंधन निजी हाथों को सौंप दिए जाएं। 27 अक्टूबर, 2016 को कैबिनेट कमेटी ने नीति आयोग के इस प्रस्ताव को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी। प्रस्ताव जब सेल के पास पहुंचा तो 11 अगस्त, 2017 को सेल बोर्ड ने तीनों स्पेशल प्लांट में 100 फीसदी हिस्सेदारी के विनिवेश को मंजूरी दे दी।

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आइए, सबसे पहले विश्वेश्वरैया स्टील प्लांट का ‘बहीखाता’ देखते हैं। इस प्लांट की स्थापना 1923 में मैसूर के इंजीनियर स्टेट्समैन के नाम से मशहूर सर एम. विश्वेश्वरैया ने की थी। उस समय इसका नाम मैसूर आयरन एंड स्टील वर्क्स था। इस प्लांट के लिए जमीन मैसूर के महाराजा ने तोहफे में दी थी। 1989 में कर्नाटक सरकार और भारत सरकार के शेयर सेल ने इसे खरीद लिया और तब से सेल ही इसका संचालन करता है। इस प्लांट में हाई क्वालिटी का अलॉय (मिश्र धातु) और स्पेशल स्टील का उत्पादन होता है। स्पेशल स्टील से आशय है कि प्लांट में बीएफ- बीओएफ-एलआरएफ-वीडी रूट से स्टील का उत्पादन होता है। ऐसा बहुत कम प्लांट में होता है। उनमें से तीन सेल के पास हैं।

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वैसे तो राजा ने कुल 1661 एकड़ जमीन दी थी लेकिन स्टील प्लांट 571.27 एकड़ में है। विनिवेश के लिए जो प्रस्ताव तैयार किया गया है, उसमें प्लांट की जमीन के साथ लगती कीमती जमीन को भी शामिल किया गया है जो कुल 847.25 एकड़ बैठती है। इसके अलावा दो खानें भी प्राइवेट कंपनी को दी जाएंगी और परिसर में बनी रिहाइशी कॉलोनी को लीज पर देने का भी प्रावधान है। जहां तक नफा- नुकसान की बात है तो इस प्लांट ने टैक्स चुकाने से पहले 75.72 करोड़ का लाभ अर्जित किया है। हालांकि इससे पिछले साल 108.9 करोड़ और उससे पहले 116.90 करोड़ रुपये का लाभ अर्जित किया। इससे यह लगता है कि इस स्टील प्लांट से सेल का मुनाफा लगातार कम हो रहा है, लेकिन ध्यान से देखें तो पता चलता है कि पिछले तीन साल से यहां से दूसरी यूनिट को स्टॉक ट्रांसफर लगातार बढ़ रहा है। जैसे कि 2017 में 20.78 करोड़ में 18.36 और 2019 में फिर अचानक लगभग तीन गुना 52.80 करोड़ रुपये का स्टॉक ट्रांसफर कर लिया गया।

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एक और पुराना स्पेशल स्टील प्लांट भी बेचा जा रहा है। पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर स्थित एलॉय स्टील प्लांट की स्थापना 1965 में की गई थी। इसकी कुल क्षमता 2.46 लाख टन लिक्विड स्टील और 1.84 लाख टन सेलेबल स्टील की है। इस स्टील प्लांट का कुल परिसर 1,154 एकड़ है। इसमें से प्लांट की चारदीवारी 681 एकड़ में है और 412 एकड़ को खाली छोड़ा गया है। प्लांट को वित्त वर्ष 2019 में टैक्स चुकाने के बाद 40.64 करोड़ का मुनाफा हुआ, हालांकि इससे पहले 2018 में 47.46 करोड़ और 2017 में 33.25 करोड़ का मुनाफा हुआ था। 2015 में यह मुनाफा 134.15 करोड़ रुपये का था और अचानक से मुनाफा घटने क्यों लगा, इसकी पड़ताल कर सुधारने की बजाय स्टील प्लांट को बेचने की तैयारी कर ली गई है।

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इसी तरह तमिलनाडु के सलेम जिले में स्थित सलेम स्टील प्लांट को भी बेचा जा रहा है। इस प्लांट की स्थापना 1972 में की गई थी। अपनी खूबियों के कारण इसे भी स्पेशल स्टील प्लांट का दर्जा प्राप्त है। दूसरों के मुकाबले इस प्लांट के पास जमीन अच्छी-खासी है। यह तकरीबन 3973 एकड़ में फैला है। इसमें प्लांट एरिया 2,762 एकड़, टाउनशिप 801 एकड़ के अलावा और भी सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसमें से 1,708 एकड़ जमीन का विनिवेश किया जाएगा। प्लांट का मुनाफा भी अच्छा- खासा है।

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वित्त वर्ष 2019 में प्लांट को टैक्स चुकाने से पहले 259 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ, जबकि 2018 में यह 211 करोड़ रुपये था और इससे पहले 234.99 करोड़ रुपये। यानी कि इस स्टील प्लांट में भी मुनाफा कम हो रहा है। इन तीनों प्लांट की बैलेंस शीट बताती है कि 2017 से इन प्लांट्स के मुनाफे में कमी आ रही है। शायद, यह संयोग ही हो कि नीति आयोग द्वारा तीनों प्लांट्स के विनिवेश के प्रस्ताव के बाद से ही ऐसा हो रहा है। जानकार इस पर सवाल उठा रहे हैं।

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अब छह ही बचेंगे स्टील प्लांट

सेल के पास कुल नौ स्टील प्लांट हैं। इनमें से तीन के विनिवेश की प्रक्रिया शुरू होने के बाद ये छह बचेंगेः भिलाई स्टील प्लांट, बोकारो स्टील प्लांट, दुर्गापुर स्टील प्लांट, राउरकेला स्टील प्लांट। इसको स्टील प्लांट और फेरो एलॉयप्लांट है। इन सबसे सेल ने 2018-19 में 66,967 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया है। वैसे, सेल में पहले भी विनिवेश हो चुका है। पहले सेल में भारत सरकार की हिस्सेदारी 85.82 फीसदी थी, लेकिन सरकार ने अपने हिस्से के 10.82 फीसदी शेयर बेच दिए थे और अब सेल में भारत सरकार की हिस्सेदारी 75 फीसदी है।

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दरअसल, सरकार एक और प्रस्ताव पर काम कर रही है। इसमें सरकार की मंशा लगभग सभी सरकारी कंपनियों (पीएसयू) में अपनी हिस्सेदारी 49 फीसदी या उससे कम करना है। हालांकि सरकार ने हाल ही में संसद में इस तरह के प्रस्ताव से इंकार किया है, लेकिन सांसद इस बारे में सरकार से लगातार सवाल जरूर कर रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो लगभग सभी सरकारी कंपनियों पर निजी कंपनियों का कब्जा हो जाएगा। अब तक का नियम है कि पीएसयू में कमसे कम 51 फीसदी शेयर सरकार के होते हैं, जिस कारण कंपनियों का प्रबंधन सरकार के पास ही रहता है।

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