बिहार में अब भी लाखों परिवार ऐसे हैं जहां तीन-तीन पुश्तों से बंटवारा नहीं हुआ। जमीन है, मगर बंटवारे के लिए वैसी मारामारी नहीं। लोग आपसी सहमति पर जमीन बेच लेते हैं। लाखों रजिस्ट्री में 10-20 ऐसे मामले आते हैं जहां रजिस्ट्री करने वाले के परिवार का कोई व्यक्ति बाद में उस जमीन पर दावा करने चला आता है। जिसके दखल में दशकों से जो जमीन है, उस पर नया कोई पक्ष कम ही सामने आता है। लेकिन, बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने जमीनी विवाद के इन तथ्यों पर सर्वेक्षण कराए बगैर रजिस्ट्री के नियमों में बड़ा बदलाव का फरमान जारी कर दिया। ठीक उसी तरह, जैसे शराब को क्रमिक तौर से बंद करने के निर्णय के बावजूद नीतीश कुमार ने अचानक तमाम तरह की शराब के साथ होम्योपैथिक दवाओं तक पर रोक लगा दी थी।
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जमीन रजिस्ट्री में जमाबंदी और होल्डिंग नंबर की अनिवार्यता के नीतीश सरकार के फैसले पर हाईकोर्ट ने 24 अक्टूबर को तीन हफ्ते के लिए रोक लगा दी है, लेकिन मुख्यमंत्री के फैसले को सही साबित करने में सरकार का हर विभाग जी-जान से जुटा हुआ है। यहां तक कि जमीन रजिस्ट्री की संख्या में अचानक आई गिरावट के आंकड़े को भी झुठलाने की कोशिश की जा रही है। सरकार को तीन हफ्ते में जवाब देना है और विभाग इसे अपने हिसाब से दिखाने पर अड़ा है। इस तरह के फैसले को लागू करने से पहले जो तैयारी करनी चाहिए, वह भी सरकार नहीं कर सकी है।
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10 अक्टूबर, 2019 को बिहार सरकार ने गजट अधिसूचना के जरिये इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट, 2008 की धारा तीन में संशोधन कर नई व्यवस्था लागू की थी। यह संशोधन पहले 2 अक्टूबर को प्रभावी करने की तैयारी थी लेकिन अंतिम समय में सरकार के विधि विशेषज्ञों ने नीतीश के इस निश्चय में कैबिनेट की मुहर को जरूरी बताया। तब राज्य सरकार ने आनन-फानन में कैबिनेट में इसे स्वीकृत कर 10 अक्टूबर को गजट प्रकाशित करा दिया। संशोधन के बाद बिहार में सिर्फ उसी जमीन की रजिस्ट्री होगी जिसमें विक्रेता या हस्तांतरण करने वाले का नाम हो। यानी, सरकार के जमाबंदी रजिस्टर में जिनके नाम से जमीन होगी, रजिस्ट्री का अधिकार सिर्फ उन्हीं के पास होगा। यह फैसला बड़ी आबादी को परेशान करने वाला था।
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समझने के लिए 200 वर्गमीटर के एक प्लॉट को उदाहरण के रूप में लें। आज से 60 साल पहले यह किसी ईश्वरचंद्र ने खरीदी थी। आज उसकी तीसरी पुश्त सामने है। ईश्वरचंद्र के दो बेटों में एक की मौत हो गई। जिसकी मौत हुई, उसकी एक जीवित संतान है। जो बेटा जिंदा है, उसके दो बेटे हैं। दोनों अलग-अलग देशों में रहते हैं। अबतक परिवार में सबकुछ अच्छा रहा है। अब ईश्वरचंद्र के मर चुके बेटे के बेटे को अपने हिस्से की जमीन बेचनी है। जमीन की जमाबंदी ईश्वरचंद्र के नाम पर है तो नीतीश सरकार के नए नियम के तहत जरूरतमंद पोते को पहले सारे हिस्सेदारों के साथ लिखित समझौता कर जमाबंदी रजिस्ट्रर में अपने हिस्से का अंकन करवाना ही होगा, वरना वह जमीन नहीं बेच सकता, भले ही अन्य हिस्सेदारों की लिखित स्वीकृति भी है और खरीदार इससे सहमत भी। अब तक खरीदार की सहमति और तमाम संभावित हिस्सेदारों के शपथपत्र के आधार पर जमीन की बिक्री बिहार में होती रही है।
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जमाबंदी के बगैर जमीन की रजिस्ट्री नहीं होने की सरकारी तैयारी की जानकारी जन-जन को थी इसलिए सितंबर में बिहार के अंदर जमीन खरीद-बिक्री में रिकॉर्ड उछाल आया। राज्य में औसतन पांच हजार जमीन की रजिस्ट्री हर महीने होती है लेकिन अगस्त में राज्य में करीब 98 हजार रजिस्ट्री हुई और सितंबर में आंकड़ा 1.13 लाख तक पहुंच गया। इससे बिहार को राजस्व में जबरदस्त फायदा हुआ, लेकिन निर्णय लागू करते ही राजस्व विभाग की सारी खुशियां गुम हो गईं। राज्य के विभिन्न निबंधन कार्यालयों में रजिस्ट्री में औसत से भी 85-90 फीसदी की गिरावट आई है।
दरअसल, नीतीश सरकार ने गांधी जयंती पर इस फैसले को लागू करने की घोषणा तो कर दी थी लेकिन अपनी तैयारी भी पूरी नहीं की थी। बिहार के भू-राजस्व विभाग ने जमीन की जमाबंदी को ऑनलाइन अपडेट करने का लक्ष्य पूरा नहीं किया और यह निर्णय आ गया। नई व्यवस्था के लिए भू-राजस्व विभाग, रजिस्ट्री और अंचल कार्यालय को नए सॉफ्टवेयर से जोड़ा तो गया लेकिन भू-राजस्व का डाटा अपडेट नहीं होने के कारण सभी जमीन के बारे में ऑनलाइन यह पता नहीं चल रहा कि उसका वास्तविक मालिक कौन है। ऐसे में रजिस्ट्री के पहले जमीन बेचने वाले को जमाबंदी रसीद दिखाकर भू-राजस्व विभाग की वेबसाइट से उसका सत्यापन ऑनलाइन कराना पड़ रहा है। ऑनलाइन सत्यापन नहीं होने पर जमीन की रजिस्ट्री नहीं होगी, यह नियम पहले से बिहार में लागू है। इसके लिए जमीन के दाखिल-खारिज के आंकड़े का ऑनलाइन अपडेशन जरूरी है लेकिन बिहार के अंचल कार्यालयों ने यह काम पूरा ही नहीं किया है।
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