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सिर्फ पेट्रोल-डीजल ही नहीं, खाने के तेल में भी लगी है आग, 50 फीसदी तक बढ़ चुके हैं दाम

कोरोना ने सबकी आमदनी कम की है। ऐसे में आपकी रसोई का बजट लगातार गड़बड़ा रहा है, तो कैसा आश्चर्य? वैसे भी, खाने-पीने की बाकी चीजों की कीमतों के भाव आसमान छू ही रहे हैं। आप खाने वाले तेल की मात्रा भले ही घटा लें, अपना बजट, आखिर, किस प्रकार संतुलित कर सकते हैं।

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फोटो : Getty Images Priyanka Parashar/Mint

आपने इस महीने भी चाहे जिस भाव खाद्य तेल खरीदा हो, जून के दूसरे हफ्ते में सरकार के इस दावे पर यकीन कर लीजिए कि इस महीने इसके दाम कम हो गए हैं। मई में इसके दाम पिछले 11 साल में सबसे ज्यादा थे।

केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय के आंकड़े ही बता रहे हैं कि पैक्ड सरसों तेल का खुदरा मूल्य पिछले साल 12 जून को 132 रुपये किलो था जो इस साल 12 जून को बढ़कर 181 रुपये किलो हो गया। मूंगफली के तेल की कीमत इस साल 12 जून को 200 रुपये किलो थी जबकि एक साल पहले इसी दिन कीमत 179 रुपये प्रति किलो थी। वनस्पति तेल की कीमत इस साल 12 जून को 142 रुपये प्रति किलो थी जबकि एक साल पहले कीमत 106 रुपये प्रति किलो थी। सोयाबीन तेल की कीमत पिछले साल 12 जून को 117 रुपये प्रति किलो थी जबकि इस साल 12 जून को 159 रुपये रही। सूरजमुखी तेल की कीमत इस 12 जून को 193 रुपये प्रति किलो रही जबकि पिछले साल की इसी तारीख को यह 128 रुपये थी। पाम ऑयल की कीमत इस 12 जून को 130 रुपये प्रति किलो थी जबकि पिछले साल यह 95 रुपये थी।

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दीपावली से पहले इनकी कीमत कम होने के आसार काफी कम हैं। पहली बात तो यही है कि पेट्रोलियम पदार्थों की तरह खाद्य तेलों की कीमतें भी बहुत कुछ आयात पर निर्भर करती हैं। 2019-20 में 61 हजार करोड़ मूल्य के तेल आयात किए गए थे। अगर सरकार आयात पर शुल्क कम करे, तब थोड़ा-बहुत अंतर हो सकता है लेकिन तेल व्यापारी चाहते हैं कि सरकार चुनिंदा बिक्री केंद्रों के जरिये सब्सिडी दे, तब ही आम लोगों को फायदा होगा। वजह यह कि जैसे ही आयात शुल्क में राहत दी जाएगी, अंतरराष्ट्रीय कीमतों में बढ़ोतरी हो जाएगी जिसका फायदा न व्यापारियों को मिलेगा, न लोगों को।

अभी कीमतें न घटने की एक और वजह है। प्रमुख उत्पादक देशों- इंडोनेशिया, मलेशिया, अर्जेंटीना, यूक्रेन और रूस में मौसम अनुकूल न रहने के कारण उपज कम हुई हैं और कीमतें बढ़ गई हैं। इस बार ब्राजील और अमेरिका में खराब मौसम के कारण सोयाबीन की फसल चौपट हो गई है जबकि मलेशिया और इंडोनेशिया में पाम ऑयल का उत्पादन कम हुआ है क्योंकि बुवाई करने वाले मजदूरों का बड़ा हिस्सा महामारी की वजह से अपने घर- बांग्लादेश चले गए। यह हालत रातोंरात सुधरने वाली नहीं है।

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कृषि मंत्रालय के मुताबिक, 2015-16 से 2019-20 के दौरान खाद्य तेलों की मांग 2.34-2.59 करोड़ टन रही जबकि घरेलू उत्पादन 86.3 लाख से लेकर 1.06 करोड़ टन रहा। इसलिए 2019-20 में 1.33 करोड़ टन तेल का आयात करना पड़ा।

किसान लगातार मांग कर रहे हैं कि अगर सरकार कीमतों को लेकर आश्वस्त करे, तो वे तिलहन की फसल उगाने पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। लेकिन न तो आयात शुल्कों या सब्सिडी के मसलों पर ध्यान दिया जा रहा है, न वह किसानों को कोई आश्वासन दे रही है। किसानों के आंदोलन की ओर तो, लगता है, सरकार का ध्यान ही नहीं है। कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर, विकास सेस और सामाजिक कल्याण सेस समेत आयात शुल्कों की प्रभावी दरें 2 फरवरी, 2021 से 35.75 प्रतिशत हैं। शोधित, प्रक्षालित (ब्लीच्ड) और बदबू हटाए गए (डियोडोराइज्ड) पाम आयल की प्रभावी आयात दरें 59.4 प्रतिशत तक हैं। इसी तरह, कच्चे और रिफाइंड सोयाबीन तेल और सूरजमुखी के तेल की प्रभावी आयात दरें 38.50 प्रतिशत से 49.50 प्रतिशत तक हैं।

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कोरोना ने हम सबकी आमदनी कम की है। ऐसे में, हमारी-आपकी रसोई का बजट लगातार गड़बड़ा रहा है, तो कैसा आश्चर्य? वैसे भी, खाने-पीने की अन्य सभी चीजों की कीमतों के भाव आसमान छू ही रहे हैं। आप खाने वाले तेल की मात्रा भले ही घटा लें, अपना बजट, आखिर, किस प्रकार संतुलित कर सकते हैं।

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