हाईस्पीड, बुलेट ट्रेन के बाद अब रेलवे 'स्वदेशी' हाइपरलूप पर काम कर रहा है। देश में रेल के सफर को फास्ट, आसान और आधुनिक बनाने की दिशा में भारतीय रेलवे ने ये अहम कदम उठाया है। कार्बन उत्सर्जन और ऊर्जा खपत को कम करने के लक्ष्य में भी इससे मदद मिलेगी। दरअसल देश में हाइपरलूप तकनीक की चर्चा पहली बार नहीं हो रही है। इससे पहले, देश में साल 2017 में तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने हाइपरलूप को लेकर चर्चा शुरू की थी। तब से रेलवे और हाइपरलूप वन के बीच प्रस्तावित परियोजना पर कई दौर की बातचीत हुई।
हाइपरलूप ऐसी तकनीक है जिसमें कम दबाव वाली ट्यूब में चुंबकीय क्षेत्र का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी मदद से बिना घर्षण के लोगों और माल को तेज गति से लाया-ले जाया जा सकेगा। हाइपरलूप प्रौद्योगिकी आधारित परिवहन प्रणाली और इसकी उप-प्रणालियों को स्वदेशी रूप से विकसित करने के लिए भारतीय रेलवे के साथ सहयोग करने के वास्ते आईआईटी मद्रास द्वारा अनुसंधान प्रस्ताव प्रस्तुत किए जाने के बाद रेल मंत्रालय की स्वीकृति प्राप्त हुई है। इस पर सरकार की ओर से 8.4 करोड़ रुपये की मदद दी जाएगी।
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आईआईटी मद्रास पहुंचे केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने गुरुवार शाम न्यू एकेडमी कॉम्प्लेक्स में आईआईटी छात्रों द्वारा विकसित हाइपरलूप पॉड मॉडल पर एक प्रदर्शन भी देखा। रेल मंत्रालय के अनुसार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के छात्रों का दल 'टीम आविष्कार हाइपरलूप' इस परिवहन माध्यम पर काम कर रहा है। टीम आविष्कार द्वारा प्रस्तावित मॉडल 1,200 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की शीर्ष गति प्राप्त कर सकता है। यह पूरी तरह से स्वायत्त, सुरक्षित और स्वच्छ है।
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टीम आविष्कार का लक्ष्य आईआईटी मद्रास में दुनिया के सबसे बड़े छात्र-विकसित हाइपरलूप परीक्षण प्रतिष्ठान का निर्माण करना है और इस साल तक मुख्य परिसर से लगभग 35 किलोमीटर दूर डिस्कवरी कैंपस, सैटेलाइट कैंपस आईआईटी मद्रास में 500 मीटर लंबे इस हाइपरलूप प्रतिष्ठान का निर्माण पूरा होने की उम्मीद लगाई जा रही है।
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