भारत, पंजाब और पाकिस्तान के लिए 9 नवंबर का दिन यकीनन ऐतिहासिक बन गया है। आयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद जहां पूरा देश कथित तौर पर 'राममय' हो जाने का आभास दिया गया, वहींं पंजाब खुद-ब-खुद अमन और सद्भाव की नई इबारतें लिखता हुआ, 'नानकमय' बन गया। वाया करतारपुर कॉरिडोर पंजाब से सद्भावना का नया और पुख्ता संदेश पाकिस्तान गया है और पाकिस्तान ने भी सिख संगत की मेहमाननवाज़ी कर पहली बार सकारात्मक जवाब दिया है। करतारपुर गलियारे ने भारत-पाक तनावपूर्ण संबंधों में उम्मीद की नई रोशनी को जन्म दे दिया जो भविष्य के लिए कारगर साबित हो सकती है। हालांकि दोनों देशों की धर्मपरस्त और परस्पर विरोधी कूटनीति इसे धुंधला कर सकती है, यह खतरा भी अपनी जगह बना हुआ है।
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9 नवंबर को अयोध्या का फैसला आया तो इधर पंजाब में करतारपुर कॉरिडोर खुल गया। दोनों घटनाओं के मद्देनजर जश्न का माहौल था, पर बहुत बड़े अंतर के साथ। एक फैसले को ‘न किसी की जीत, न किसी की हार’ के रूप में स्थापित किया जा रहा था, तो दूसरा सच्चीआस्था से ओत प्रोत था।
बेशक करतारपुर कॉरिडोर पर सियासत, खासतौर से बीजेपी-अकाली गठबंधन की राजनीति पर कहीं ना कहीं सिख समुदाय की सच्ची भावना हावी रही और कांग्रेस ने सरेआम इसका सत्कार किया, जिसके चलते पूर्वाग्रही दांव पेंच हाशिए को हासिल हो गए। इसी का नतीजा था कि पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में इकट्ठा हुए पूर्व मुख्यमंत्री और अकाली सरपरस्त प्रकाश सिंह बादल, शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल के तेवर सूबे के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के प्रति आश्चर्यजनक रुप से बेतहाशा नरम रहे। यहां तक कि पहली बार प्रकाश सिंह बादल ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को 'सरदार अमरिंदर सिंह' कहकर संबोधित किया।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बादलों से ज्यादा तरजीह अमरिंदर को दी। मोदी प्रोटोकॉल दरकिनार कर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी मिले। मनमोहन सिंह की मौजूदगी में मोदी ने अमरिंदर सिंह को सफल आयोजन के लिए बधाई दी। सूत्रों के मुताबिक ऐसा हुआ और बादलों को यह रास नहीं आ रहा।
दरअसल, शिरोमणि अकाली दल की मंशा और राजनीति भांंपते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पहले ही एलानिया कह दिया था कि उन्हें गुरु नानक देव जी के 550वेंं प्रकाश उत्सव की बाबत श्री अकाल तखत साहिब और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का हर फैसला मंजूर होगा, जिसके तहत समागम स्थल पर एक मंच स्थापित करने का फैसला किया गया। जबकि अकाली अलहदा स्टेज के लिए अड़ा हुआ था। अकाली इस प्रकरण को धर्म बनाम स्टेट का मामला भी बनाना चाहते थे, पर कांग्रेस की अगुवाई वाली पंजाब सरकार ने ऐसा होने नहीं दिया।
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उधर, करतारपुर साहिब गए पहले जत्थे में शामिल पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पाकिस्तान में इमरान खान और उनके मंच से निर्णायक दूरी बनाकर रखी। हालांकि इमरान सरकार आने वाली सिख संगत को पलकों पर बिठाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही।
यह इस्लामिक स्टेट करार दिए गए पाकिस्तान के मुखिया का नया चेहरा था कि इमरान खान ने अपने भाषण में कश्मीर का जिक्र कम किया, और जोर श्री गुरु नानक देव के कर्म और संदेश पर दिया। इमरान ने जर्मन और फ्रांस की तर्ज पर भारत पाक बॉडर खोलने की वकालत की। उन्होंने यह भी कहा कि जिस तरह से पाकिस्तान ने करतारपुर साहिब कॉरीडोर का निर्माण किया और भारत जाने वाली संगत को गुरुद्वारा साहिब के दर्शन की इजाजत दी है, हम चाहते हैं कि उसी तरह पाकिस्तान की सिख संगत को भी डेरा बाबा नानक के दर्शन की इजाजत भारतीय सरकार दे।
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हालांकि कॉरीडोर के जरिए पाकिस्तान जाने वाले पहले जत्थे में वीवीआईपी की तादाद ज्यादा थी और आम लोग कुछ कम। वैसे वहां जाकर लौटे तमाम लोग गदगद हैंं। सभी का एकसुर में मानना है कि पाकिस्तान ने कॉरीडोर बनाने और उम्दा इंतजामों में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक अधिकारी के मुताबिक उन्हें श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारे में भारत पाक कटु संबंधों की काली छाया दिखाई नहीं दी। इधर पंजाब के पंजाबी मीडिया ने भी करतारपुर कॉरीडोर की शुरुआत को भारत पाक रिश्तो के लिए उम्मीद की बड़ी किरण बताया है।
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