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बिहार में वोटबंदी के खिलाफ विपक्ष की मोर्चेबंदी

मतदाता पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर पूरे बिहार में भ्रम और अराजकता का माहौल है। अल्पसंख्यक, प्रवासी और वंचित-गरीब समुदायों के लोगों के मताधिकार छिन जाने का मंडरा रहा खतरा है।

बिहार में मतदाता पुनरीक्षण को लेकर लोगों में जबरदस्त बेचैनी है
बिहार में मतदाता पुनरीक्षण को लेकर लोगों में जबरदस्त बेचैनी है 

राशिद कहते हैंः ‘मैंने न आवेदन किया और न फॉर्म भरा, फिर भी आवेदन आयोग के पोर्टल पर अपलोड मिला।’ अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाताओं को मताधिकार से वंचित किए जाने की चर्चाओं के बीच उन्होंने चैन की सांस जरूर ली है, लेकिन उन्हें दूसरा डर सता रहा है- अगर उनका फॉर्म ‘अपने आप’ अपलोड हो गया, वैसे ही हट भी तो सकता है! वह कहते हैं, ‘मेरे पास कोई सबूत नहीं है कि मैंने फॉर्म जमा किया था। जब मैं डुप्लीकेट फॉर्म मांगता हूं, तो मुझे टरका दिया जाता है।’ 

राशिद की भेंट पटना के सुल्तानगंज इलाके में एक दरगाह के पास नीम के पेड़ के नीचे इकट्ठा कुछ मुस्लिम युवकों से हुई। उन्होंने खुद को स्वयंसेवक बताया जो लोगों को फॉर्म भरने और जमा करने में मदद कर रहे हैं। इनमें से एक युवक, जो कंप्यूटर एप्लीकेशन में मास्टर्स का छात्र है, राशिद का समर्थन करता है। वह कहता है, ‘हम ऑनलाइन फॉर्म जमा करना पसंद करते हैं, क्योंकि हमारा मानना है कि यह बीएलओ को फॉर्म सौंपने से कहीं सुरक्षित है। अक्सर फॉर्म अपने आप भर दिए जाते हैं या उनसे छेड़छाड़ की जाती है। हमें नहीं पता कि डेटा कौन दर्ज कर रहा है।’ क्या यह अकेली घटना है या कोई तकनीकी गड़बड़ी? या फिर कोई बड़ा षड्यंत्र? कोई नहीं जानता। 

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यूट्यूबर अजीत अंजुम ने कई वीडियो में बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) को जनवरी 2025 में प्रकाशित संशोधित मतदाता सूची के आधार पर खाली फॉर्म भरते दिखाया है। उन्हें न केवल फॉर्म भरते बल्कि उन मतदाताओं की ओर से हस्ताक्षर करते भी देखा जा सकता है जो इससे बिल्कुल अनजान हैं। राशिद जैसे जागरूक मतदाता तो खतरा समझ गए हैं, लेकिन ज्यादातर मतदाता अनजान हैं। राशिद के परिवार के तीन सदस्यों के अपडेटेड फॉर्म उनकी जानकारी के बिना अपलोड कर दिए गए, जबकि दो अन्य फॉर्म जमा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

विपक्ष इस मामले में कड़ी टक्कर देता दिख रहा है। मनमाने तरीके से लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाने के खिलाफ इंडिया ब्लॉक आंदोलन कर रहा है। राज्य में मुख्य विपक्षी दल राजद ने ‘मतदाता बचाओ अभियान’ आंदोलन चलाया है। राजद सूत्रों का कहना है कि समन्वयकों, आयोजकों और स्वयंसेवकों को एक-एक विधानसभा क्षेत्र सौंपा गया है ताकि वे लोगों की मदद करें और मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की निगरानी कर सकें। मतदाता सूची के पुनरीक्षण का यह काम 25 जुलाई तक पूरा होना है।

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पटना में आरजेडी कार्यालय के बाहर बड़े बैनर पर लिखा है, ‘आरएसएस के सर्वे में तेजस्वी की सरकार बन रही, इसलिए भाजपा चुनाव आयोग से धांधली करवा रही।’ पटना में राजद कार्यालय में स्वयंसेवक स्थानीय इकाइयों और जिला प्रमुखों को फोन करने में जुटे हैं; उनसे लोगों को एकजुट करने को कहा जा रहा है। एक स्वयंसेवक कहते हैःं ‘लक्ष्य हर बूथ स्तर के मतदाता तक पहुंचना है, ताकि वोटबंदी को रोका जा सके।’ वह कहते हैं कि पूरे बिहार से ऐसी खबरें आ रही हैं कि अधिकारी मतदाताओं द्वारा भरे गए फॉर्म स्वीकार नहीं कर रहे- खासकर जहां इंडिया ब्लॉक की पार्टियां सक्रिय हैं। 

राजद टीम का दावा है कि एसआईआर में शैतानी इरादों के खासे सबूत मौजूद हैं। दरभंगा में भाजपा जिला महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष एक सरकारी कार्यालय में एक बीएलओ के बगल में बैठकर एसआईआर फॉर्म देखते कैमरे में कैद हुईं। गोपालगंज में जिला मजिस्ट्रेट ने कथित तौर पर स्वयंसेवकों को बताया कि 17 जुलाई के बाद फॉर्म नहीं लिए जाएंगे, जबकि ऐसी कोई समय सीमा घोषित नहीं की गई है। ऐसी ही शिकायत पश्चिमी चंपारण के बगहा से भी मिली है। दलित ईसाई नेता और राजद मुख्यालय के प्रभारी मुकुंद सिंह कहते हैं, ‘यह लोगों को मताधिकार से वंचित करने की सोची-समझी रणनीति है।’

कांग्रेस और भाकपा (माले) ने भी लोगों को मतदाता के रूप में नामांकित करने में मदद के लिए समानांतर अभियान चला रखा है।

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पटना से 400 किलोमीटर दूर किशनगंज में कांग्रेस प्रवक्ता तमजीद अहमद कहते हैं, ‘भारतीयों से विवाहित और दशकों से किशनगंज और आसपास रह रही कई नेपाली मूल की महिलाओं को भारतीय नागरिकता साबित न कर पाने पर मतदाता सूची से बाहर किया जा रहा है।’ उन्होंने ‘संडे नवजीवन’ को बताया कि हालांकि आयोग ने कहा है कि नेपाली और बांग्लादेशी मूल के नागरिकों के लिए अलग प्रक्रिया अपनाई जाएगी, लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा कुछ नहीं। 

भाकपा (माले) ने भी जन अभियान शुरू किया है। पार्टी की छात्र और युवा शाखाएं लोगों की मदद कर रही हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक पार्टी ने 2021 में राज्य के 38 जिलों में से केवल 12 में उम्मीदवार उतारकर विधानसभा में 16 सीटें जीती थीं। पार्टी सांसद सुदामा प्रसाद के नेतृत्व में चलाए जा रहे अभियान में भाकपा (माले) कार्यकर्ता एसआईआर फॉर्म स्वीकार करने से इनकार करने को रिकॉर्ड कर रहे हैं। बक्सर से राजद सांसद सुधाकर सिंह कहते हैं, ‘यह राजनीतिक लड़ाई ही नहीं, संविधान बचाने की भी लड़ाई है। हमने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली, चुनाव आयोग से संपर्क किया और अब सड़कों पर हैं ताकि मतदाता मताधिकार से वंचित न हों।’ अगर एसआईआर में गड़बड़ी होती है, तो क्या इंडिया ब्लॉक चुनाव बहिष्कार करेगा, सिंह ने कहा- ‘हम पलायनवादी नहीं, हम लड़ेंगे। बिहार के लोग अपना वोट छीनने नहीं देंगे।’ एसआईआर ने भ्रम, अराजकता और टकराव को जन्म दिया है। 25 जुलाई में चंद दिन बचे हैं और मतदाता अब भी भ्रमित और अधिकारी बेखबर हैं।

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कई सवाल हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं। यह सब अब क्यों हो रहा है, खासकर जब मतदाता सूची जनवरी में ही अपडेट हुई है? जनवरी से अब तक क्या बदला है? इसका फायदा किसे होगा, और नुकसान किसे और कैसे? इस प्रक्रिया का प्रबंधन कौन कर रहा है? कोई जवाबदेही क्यों नहीं है?

क्या यह मतदाता सूची का नवीनीकरण है या पिछले दरवाजे से एनआरसी और नागरिकता को जांचना? सरकारी अधिकारी भी अनिश्चित हैं। जिस समय, बड़े पैमाने और असामान्य जल्दबाजी के साथ यह प्रक्रिया की जा रही है, उसने भाजपा समर्थकों को भी हैरान कर दिया है। भाजपा का आधार माने जाने वाले आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (ईबीसी) के कई लोगों के पास जमीन के रिकॉर्ड या दसवीं के प्रमाण पत्र नहीं हैं, जिनसे साबित हो सके कि वे संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों के नागरिक और निवासी हैं।

‘अगर नाम अंतिम सूची में नहीं आया, तो क्या होगा?’ यह सवाल न केवल टैक्सी चालक दौलत राम, बल्कि आबादी के एक बड़े हिस्से को सता रहा है। बक्सर स्थित राजद कार्यालय में एक राजपूत किसान कहते हैं- मैं यहीं पैदा हुआ और हर चुनाव में वोट डालता रहा, अब वे मुझे नागरिकता साबित करने को कह रहे? 

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तरह-तरह के फॉर्म प्रचलन में हैं। कुछ अंग्रेजी में, तो कुछ हिन्दी में। इन्हें बीएलओ, नगर निगम के कर्मचारी और यहां तक कि सफाई कर्मचारी भी बांट रहे हैं। लगभग एक जैसे फॉर्म, लेकिन अक्सर एक या दूसरे में कुछ न कुछ जानकारी गायब होने की वजह से भ्रम बढ़ गया है। पटना में ही कई रिहायशी इलाकों में लोगों को दो फॉर्म मिले हैं। एक तो बीएलओ ने भरकर ले लिया था। क्या उन्हें दूसरा भी भरना चाहिए और अगर नहीं भरा तो क्या होगा? ये शंकाएं लोगों की चिंता बढ़ा रही हैं।

गांव के गांव ऐसे हैं जहां से 40 फीसद वयस्क पुरुष पलायन कर गए हैं। हाजीपुर के एकहारा गांव में अजीत अंजुम को कई महिलाओं ने बताया कि पुरुष रोजी-रोटी की तलाश में चेन्नई चले गए हैं। वे साल में एक बार त्योहारों में शामिल होने या वोट डालने आते हैं। ज्यादातर के पास साधारण मोबाइल फोन है। जबकि आयोग चाहता है कि वे आवेदन पत्र डाउनलोड करें और उन्हें वैध दस्तावेजों के साथ ऑनलाइन अपलोड करें! 

विपक्षी दलों का मानना है कि आयोग सत्तारूढ़ दल के एक राजनीतिक एजेंडे को बढ़ा रहा है जो बिहार का मतदाता आधार बदल देगा। इंडिया ब्लॉक पहले ही इसे असंवैधानिक बताते हुए सड़कों पर उतर चुका है। लोगों में गुस्सा और बेचैनी है। लोगों के मूड को भांपते हुए राज्य सरकार एसआईआर, बढ़ती अराजकता, बेरोजगारी और असंतोष से ध्यान हटाने के लिए मुफ्त बिजली, शिक्षकों की भर्ती जैसी घोषणाएं कर रही है। इस अनिश्चित समय में, जमीनी हालात विस्फोटक हैं। आग भड़कने के लिए बस चिंगारी का इंतजार है।

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