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क्या राहुल गांधी ने बड़ी लकीर खींच दी इस राष्ट्रीय संकट की घड़ी में ! क्या है राजनीतिक विश्लेषकों की राय

राहुल गांधी ने कोरोना संकट पर प्रेस कांफ्रेंस में जो रुख अख्तियार किया और जिस परिपक्वता से सवालों के जवाब दिए, उसे देश की राजनीति के एक नए रूप में देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी ने अपने शब्दों से राजनीति में एक बड़ी लकीर खींची है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

राजनीतिक विश्लेषकों की बात मानें तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मौजूदा कोरोनाग्रस्त राष्ट्रीय संकट की इस घड़ी में एक बड़ी लकीर खींच दी। संकट में सबको मिलकर चलने की मजबूत लाइन ली और आलोचना के बजाय देशवासियों, सरकार को यह संदेश पूरी मजबूती से देने की कोशिश की है कि भारत इस लड़ाई को राष्ट्रीय एकता की भावना और देश के हरेक नागरिक को साथ लेकर आसानी से जीत सकता है। राहुल गांधी ने दलगत राजनीति से कहीं ऊपर उठकर नपे तुले शब्दों में अपनी बात दुनिया के स्टेट्समैन की तरह रखी।

सबसे अहम बिंदु को उन्होंने छुआ और मजबूती से अपनी बात रखी कि कोरोना को भारत से जड़ से मिटाने की लड़ाई इतनी आसान नहीं है। इसलिए लड़ाई से पहले ही इस महामारी पर विजय की घोषणा करने के अहंकार से बचना चाहिए।

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राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद पाहवा कहते हैं, "राहुल गांधी निश्चित ही एक नए अवतार के रूप में दिखे। उनका एक एक शब्द गहरा व नपा तुला था। उनको पत्रकारों ने कई तरह के टेढ़े व कड़वे सवाल पूछकर उन्हें कुछ ऐसा उगलवाने की कोशिश की कि मोदी या उनकी सरकार द्वारा इस महामारी को हैंडल करने के बारे में आलोचना के लिए कुछ बोल पड़ें। लेकिन राहुल ने प्रश्नों के जाल में फंसे बगैर अपनी बात भी पूरी कह दी और सरकार पर अप्रत्यक्ष कटाक्ष करने पर नहीं चूके।"

अंग्रेजी दैनिक टेलीग्राफ के वरिष्ठ पत्रकार संजय के झा के इस सवाल को भी राहुल गांधी चतुराई से टाल गए कि क्या कोरोना संकट के बाद देश में कोई बड़ा लोकतांत्रिक बदलाव आएगा।

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राहुल गांधी एक मंझे हुए राजनेता की तरह कम मौकों पर ही इस रूप में लोगों को दिखायी दिए। चीन व विदेश नीति मामलों के वरिष्ठ पत्रकार शास्त्री रामचंद्रन कहते हैं, "राहुल गांधी ने भरपूर आत्मविश्वास से यह साबित किया कि देश के समक्ष खड़े हरेक मुद्दे पर उनकी पकड़ है। जो ज्वलंत मसले हैं उन पर उन्हें बेहतरीन दिलो दिमाग रखने वाले लोग पूरी शिद्दत से परामर्श दे रहे हैं।"

भले ही इस महामारी से निपटने की लचर तैयारियों, टेस्ट किटों के संकट और 24 मार्च को अचानक घोषित लंबे लॉकडाउन के दुष्परिणामों से देशभर में व्याप्त अराजकता के हालात पर मोदी सरकार पर हमला बोल सकते थे। लेकिन वे इसमें नहीं पड़े। इसके विपरीत उन्होंने न्यूनतम आय गांरटी स्कीम जैसी योजनाओं के बारे में सरकार को उपाय सुझाए। बकौल उनके ऐसे दौर में जबकि बीजेपी व संघ परिवार के लोग नेहरू गांधी परिवार की राजनीति विरासत पर बेसिरपैर का विषैला दुष्प्रचार करते आए हैं, राहुल ने जता दिया कि उनकी सोच न केवल मौजूदा सत्तासीनों के अहंकार से एकदम अलग है बल्कि आज के संकट के क्षणों में सटीक व व्यावहारिक भी है।

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वरिष्ठ वकील अशोक कुमार ठाकुर कहते हैं, "राहुल गांधी ने जो भी बातें उठाईं उन पर मोदी सरकार को इस संकट की घड़ी में विचार करना चाहिए। सबसे बड़ी बात तो यह है कि कोरोना से मुक्त या कमी वाले क्षेत्रों को आने वाले दिनों में कैसे खोला जाएगा। साथ ही हॉटस्पॅाट की पहचान और संक्रमण से आशंकित लोगों को क्वॉरंटाइन कैसे किया जा सकेगा। सरकार को राहुल गांधी की इस बात को गहराई से सोचना चाहिए कि कोरोना पर काबू पाना बहुत मुश्किल व चुनौतीपूर्ण है। सिर्फ लॉकडाउन समाधान नहीं।

राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि राहुल गांधी ने बहुत ही संतुलन बनाते हुए कहा कि महामारी से निपटने में वे और उनकी पार्टी सरकार के साथ है। इस मामले को हम राजनीति से जोड़कर नहीं देखेंगे बल्कि सरकार के साथ सहयोग करेंगे।

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इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व ब्यूरो चीफ रहे वरिष्ठ पत्रकार देवसागर सिंह कहते हैं, "राहुल ने संतुलित ढंग से अपनी बातें कहीं। उन्होंने इशारों में सरकार की अतिश्योक्ति और कमियों को बिना किसी कड़वाहट के सामने लाने में गुरेज नहीं किया। जैसे कि कोरोना को लेकर मोदी सरकार के कदमों के दावे। लॉकडाउन को लेकर सरकार की खुशफहमी से परहेज करने की भी कांग्रेस नेता ने गहरी नसीहत दी और अधिकतम कोरोना टेस्ट कराने पर सरकार को फोकस तेज करने की नसीहत दी।"

आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ मोहन गुरुस्वामी के मुताबिक राहुल गांधी का भाषण सकारात्मक था। सामाजिक राजनीतिक कड़वाहट के इस दौर में इसी तरह के सकारात्मक सोच व राष्ट्रीय विमर्श की नई शुरुआत हो सकती है। उनकी बातों में पूरा दम है।

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