
कहने को देलवाड़ा एक कस्बा ही है पर विकास के नक्शे पर उसका नाम कई संदर्भों में उभरता है। चाहे जलसंरक्षण के कार्य हों या स्वच्छता के या महिलाओं के हस्तशिल्प और उद्यम के, चाहे धरोहर संरक्षण का संदर्भ हो या नए विकास कार्यों का, देलवाड़ा की उपलब्धियां चर्चा में रही हैं।
इन उपलब्धियों के बारे में चर्चा करने के साथ यह सवाल उठाना भी जरूरी है कि इस विकास-यात्रा की पृष्ठभमि कैसे तैयार हुई। देलवाड़ा की उपलब्धियों की शुरुआत उस समय से हुई जब यहां के लोगों ने आपसी भेदभाव मिटाने के और सभी समुदायों में एकता और सहयोग के प्रयास तेज किए। बस इस बढ़ते सद्भावना और एकता ने विकास की अनेक उपलब्धियों का आधार भी तैयार किया।
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देलवाड़ा राजस्थान में उदयपुर ये लगभग 30 किमी. की दूरी पर स्थित है। इसके प्राचीन व मध्य इतिहास के बारे में बहुत कुछ कहा-सुना जाता है। यहां लगभग 18 मोहल्ले हैं और सभी मोहल्लों की पहचान विभिन्न समुदायों से हैं।
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कुछ दशक पहले इस क्षेत्र की एक जानी-मानी संस्था सेवा मंदिर ने यहां कार्य आरंभ किया तो उसने सबसे पहला ध्यान विभिन्न धर्मों और जातियों से जुड़े समुदायों के बीच भेदभाव मिटाने व सब की समानता आधारित एकता बढ़ाने का प्रयास किया। विडंबना यह थी कि कस्बे को स्वच्छ रखने वाले समुदाय से ही सबसे अधिक भेदभाव हो रहा था। अब उन्हें ‘आरोग्य मित्र’ का नाम दिया गया और उनसे समानता के संबंध बनाने पर विशेष ध्यान दिया गया।
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इस कस्बे के निवासी और लेखक मुरलीधर ने बताया कि इस सांप्रदायिकता और भेदभाव के जाल से मुक्त हुए तो प्रगति की राह पर आए और गांव में तरह-तरह के रचनात्मक विकास कार्यों में तभी से तेजी आई जो सब समुदायों के आपसी सहयोग से आगे बढ़ी।
लिंग आधारित भेदभाव मिटाने पर भी विशेष जोर दिया गया। वरिष्ठ कार्यकर्ता प्रेमा देवी ने बताया कि उन्होंने घर-घर में जाकर इसके लिए प्रयास किए व महिलाओं को संगठित किया। परिणाम यह हुआ कि जहां से पहले नशे व घरेलू हिंसा की शिकायतें मिल रही थीं वहां से महिलाओं के नए हस्तशिल्पों से जुड़ने के समाचार मिलने लगे। सेवा मंदिर से जुड़ी विख्यात संस्था साधना ने यहां कढ़ाई, सिलाई आदि के कार्य आरंभ किए व आज यहां की महिलाओं का हुनर फैब इंडिया जैसे मशहूर उत्पादों के लिए भी उपयोग हो रहा है।
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महिलाओं के बचत समूहों का गठन हुआ व उनकी बचत धीरे-धीरे इतनी बढ़नी लगी कि महिलाओं ने नए उद्यम आरंभ किए। नसीमा बानो ने बताया कि महिलाओं के पास बचत आई तो उसका उपयोग बच्चों की शिक्षा जैसे कार्यों में अधिक हुआ।
सभी लोगों का आपसी-सहयोग बढ़ा तो जल-संरक्षण जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों को बढ़ावा मिला। यहां प्राचीन जल-स्रोत हैं पर उन्हें स्वच्छ रखने पर अब नए सिरे से अधिक ध्यान दिया गया। कस्बे की सहायता बढ़ाने के लिए भी सामूहिक प्रयास हुए व अधिक निर्धन परिवारों के लिए शौचालय बनाए गए।
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विभिन्न विकास कार्यों को आगे ले जाने के लिए नए सामुदायिक संगठन बनाए गए व उनके माध्यम से सभी समुदायों की भागेदारी से ही सभी विकास कार्य आगे बढ़े।
साबिया ने बताया कि अब बाहर से कोई मिलने आते हैं तो वे स्वयं कहते हैं कि इस गांव कस्बे में कुछ ऐसा है कि हमें दूसरी जगहों से अलग व अच्छा लग रहा है।
लोगों ने बताया कि बदलाव की शुरुआत जाजम या दरी पर एक साथ बैठने से हुई ताकि भेदभाव दूर हो। पहले कुछ लोग कुछ अलग होकर बैठते थे पर फिर भेदभाव दूर होते गए।
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यह आपसी सहयोग का ही परिणाम है कि आज यह कस्बा कुछ नई शुरुआतों के बारे में भी सोच रहा है। यहां के युवा चाहते हैं कि इस क्षेत्र के ऐतिहासिक जल-स्रोतों व जैन मंदिरों का ध्यान में रखते हुए इसे एक ‘हैरीटेज विलेज’ का दर्जा दिया जाए। इस दिशा में एक शुरुआत तो यहां के निवासियों ने कर ही ली है और एक हैरीटेज वाॅक का आयोजन यहां किया जाता है। पास ही स्थित एक किले को एक भव्य होटल के रूप में विकसित किया गया है।
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