हालात

पुलवामा हमले में इस्तेमाल आरडीएक्स अंगीठी के कोयले में छिपाकर लाया गया था, कई महीने से आ रही थी खेप !

पुलवामा में आत्मघाती हमला करने के लिए आरडीएक्स थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कश्मीर लाया गया। इसे अंगीठी के कोयले में छिपाकर लाया जाता था, ताकि जांच होने पर पकड़ा न जा सके। हमले की जांच में जुटी एजेंसियों को शुरुआती तफ्तीश में यह जानकारी मिली है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

पाकिस्तानी आतंकी गुट जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी बीते कई महीने से घाटी में आरडीएक्स इकट्ठा कर रहे थे। आरडीएक्स को छोटी-छोटी मात्रा में कश्मीर लाया जाता है। इसे लाने के लिए आतंकी अंगीठी में इस्तेमाल होने वाले कोयले का इस्तेमाल करते थे, और आरडीएक्स को इसी में छिपाकर लाया जाता था।

हिंदी दैनिक अमर उजाला में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक पुलवामा हमले की जांच में जुटी एजेंसियों को शुरुआती तफ्तीश में जो जानकारियां हाथ लगी हैं, उससे सामने आया है कि आरडीएक्स को अंगीठी के कोयले में छिपाकर लाया जाता था। एजेंसियों के सूत्रों के मुताबिक आरडीएक्स को कोयले में गोंद में लपेट कर रखा जाता था, और उसमें ऊपर से राख मिला दी जाती थी।

सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान से घुसपैठ करके आए आतंकी जब आरडीएक्स लेकर जाते तो स्थानीय पुलिस को जांच में आरडीएक्स की हवा तक नहीं लगती।

फिलहाल अभी तक यह साफ नहीं है कि पुलवामा हमले में कितना आरडीएक्स इस्तेमाल किया गया, लेकिन शुरुआती जांच में सामने आया है कि इस हमले में आरडीएक्स का इस्तेमाल तो निश्चित तौर पर हुआ है, लेकिन उसकी मात्रा बहुत अधिक नहीं थी। एजेंसियों को लगता है कि हमले के लिए इस्तेमाल विस्फोटक में अमोनियम नाइट्रेट और दूसरे रसायन अधिक मात्रा में रहे होंगे।

अमर उजाला क मुताबिक जांच से जुड़े सूत्र बताते हैं कि अगर सौ किलो या उससे ज्यादा आरडीएक्स होता तो सिर्फ एक बस नहीं, बल्कि सौ मीटर के दायरे में मौजूद दर्जनों वाहन उड़ जाते। ऐसी स्थिति में जान-माल का जबरदस्त नुकसान हो सकता था।

सूत्रों के मुताबिक इस हमले में जितना भी आरडीएक्स इस्तेमाल हुआ, उसे पाक सीमा से घुसपैठ करके लाया गया। सूत्रों के हवाले से अखबार ने खबर दी है कि पाकिस्तान की सीमा में चल रहे आतंकी ट्रेनिंग कैंपों में आतंकवादियों को जब भारतीय सीमा में धकेला जाता है, तो उन्हें आरडीएक्स की बहुत छोटी मात्रा बारीक कोयले के बीच रखकर थमा दी जाती है।

सूत्र बताते हैं कि इसके बाद आतंकी जब सीमा पार कर अपने ठिकानों पर पहुंचते हैं वे अपने स्थानीय संपर्कों और सेल के साथ मिलकर विस्फोट की योजना बनाते हैं। आरडीएक्स को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए उसे कोयले के बीच इस तरह मिला दिया जाता है कि जांच में उसे आसानी से नहीं पकड़ा जा सकता।

गौरतलब है कि दक्षिण कश्मीर में बड़े पैमाने पर अंगीठी इस्तेमाल होती है, इसलिए कोयले की खेप आती-जाती रहती है। स्थानीय नागरिक आमतौर पर प्लास्टिक की थैली या बोरी में कोटला ले जाते हैं। इसी के बीच आरडीएक्स को गोंद में लपेटकर छिपाया जाता है।

गौरतलब है कि साल 2016 के कथित सर्जिकल स्ट्राइक के समय नार्दर्न कमांड का नेतृत्व कर चुके लेफ्टिनेंट जनरल डी एस हुड्डा ने भी कहा था कि विस्फोटक एक बार में नहीं लाया जा सकता था।

विशेषज्ञों के मुताबिक आरडीएक्स मूल रुप से नमक जैसा होता है और उसका रंग भी सफेद होता है। बाद में इसे मोबिल ऑयल या कार्बन में रखा जाता है। जब विस्फोट होता है कि उस दौरान इसका तापमान करीब 33 सौ डिग्री तक होता है।

Published: 18 Feb 2019, 11:08 PM IST

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: 18 Feb 2019, 11:08 PM IST