बंबई हाईकोर्ट ने इतालवी फैशन हाउस प्राडा के खिलाफ प्रसिद्ध कोल्हापुरी चप्पलों के कथित अनधिकृत इस्तेमाल के लिए दायर जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले पांच वकीलों के ‘अधिकार क्षेत्र’ और वैधानिक अधिकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे पीड़ित व्यक्ति या कोल्हापुरी चप्पल के पंजीकृत प्रोपराइटर या स्वामी नहीं हैं।
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अदालत ने पूछा, ‘‘आप इस कोल्हापुरी चप्पल के मालिक नहीं हैं। आपका अधिकार क्षेत्र क्या है और जनहित क्या है? कोई भी पीड़ित व्यक्ति मुकदमा दायर कर सकता है। इसमें जनहित क्या है?’’
याचिका में कहा गया था कि कोल्हापुरी चप्पल को वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम के तहत भौगोलिक संकेत (जीआई) के रूप में संरक्षित किया गया है।
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इसके बाद पीठ ने कहा कि जीआई टैग के पंजीकृत स्वामी अदालत में आकर अपनी कार्रवाई के बारे में बता सकते हैं। अदालत ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि वह बाद में विस्तृत आदेश पारित करेगी।
प्राडा ने अपने वसंत/ग्रीष्म संग्रह में, अपने ‘टो-रिंग सैंडल’ प्रदर्शित किए, जिनके बारे में याचिका में कहा गया है कि वे कोल्हापुरी चप्पलों से मिलते-जुलते हैं। इन सैंडल की कीमत एक लाख रुपये प्रति जोड़ी है।
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